बेतुके काल में मोदी जी की जहरखुरानी !
क्या ज़हर पिया है मोदीजी आपने ? 2001 के दंगों ने आपको हिन्दू ह्रदय सम्राट के तौर पर स्थापित किया। अपना राजधर्म न निभाने के बावजूद, आप मुख्यमंत्री बने रहे।
New Delhi, Oct 11 : ये बेतुका मौसम है। ये वाहियात काल है , देश का। कुछ भी कह दो , कुछ भी कर दो , फिर उसे सही ठहराने के लिए कुछ भी तर्क दे दो। कुछ मिसालें पेश करना चाहूँगा आपके सामने। आग़ाज़, मोदीजी के दर्द- ए -दिल से। उनपर हुए अत्याचार से। गौर कीजिये वडनगर की अपनी हाल की यात्रा में क्या कहा था उन्होंने। “भोले बाबा के आशीर्वाद ने मुझे जहर पीने और उसे पचाने की शक्ति दी। इसी क्षमता के कारण मैं 2001 से अपने खिलाफ विष वमन करने वाले सभी लोगों से निपट सका। इस क्षमता ने मुझे इन वर्षों में समर्पण के साथ मातृभूमि की सेवा करने की शक्ति दी।’’ मोदी आगे ये भी कहते हैं , ‘‘मैंने अपनी यात्रा वडनगर से शुरू की और अब काशी पहुंच गया हूं। “ज़हर पीने की शक्ति दी ?
क्या ज़हर पिया है मोदीजी आपने ? 2001 के दंगों ने आपको हिन्दू ह्रदय सम्राट के तौर पर स्थापित किया। अपना राजधर्म न निभाने के बावजूद, आप मुख्यमंत्री बने रहे। ये मेरे शब्द नहीं , किसके हैं, आप भी जानते हैं। आपके समर्थक वर्ग का एक बहुत बड़ा तबका, आपको सर आखों पर २००१ के इन्ही दंगों की वजह से रखता है। 2014 की ज़मीन, कहीं न कहीं 2001 में तैयार होनी शुरू हुई थी। क्योंकि आपने खुद को अपने समर्थकों के सामने पीड़ित के तौर पर पेश किया। आप पीड़ित तब होते अगर आप अपनी इस लड़ाई में अकेले होते। अगर आपको हर तरफ से निशाना बनाया जा रहा होता। आपको एक पूरी पार्टी हासिल था।जिस अडवाणी को अपने मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया , वह भी आपके पक्ष में थे। आपने गुजरात में अपनी प्रशासनिक नाकामी को अपने सियासी फायदे में तब्दील कर दिया। आप पीड़ित कैसे हो गए? पीड़ित तो गोधरा में मारे गए हिन्दुओं के परिवार हैं, या उसके परिणाम में मारे गए मुसलमान हैं, जो अब भी इन्साफ का इंतज़ार कर रहे हैं। आपका मुकाम तो लगातार बढ़ता रहा। और आप ही के शब्द दोहराता हूँ , क्या कहा था आपने,
“‘मैंने अपनी यात्रा वडनगर से शुरू की और अब काशी पहुंच गया हूं। ”बिलकुल सही! अब आप गुजरात से काशी पहुंच गए हैं। या ये कहा जाए दिल्ली पहुँच गए हैं, जिस दिल्ली के इंतेज़ामिया को आप पानी पी- पी कर कोसते थे। अब आप उसी लुट्येन्स में ढल गए हैं। वादे 2014 के सब ख़ाक हो गए हैं। अच्छे दिन फुर्र हो गए हैं।दरअसल सवाल सिर्फ मोदीजी के इस बयान का नहीं। बेतुकी और तर्कहीन और कभी कभी जो संवेदनहीन बयानबाज़ी मोदी सरकार के मंत्री करते हैं वो तमाम रिकॉर्ड तोड़ रही है। नौकरियों के नाम पर अच्छे लाने का वादा करने वाली मोदी सरकार के रेल मंत्री पियूष गोयल के मुख से निकले ब्रह्मवाक्य पर गौर कीजिये। कहते हैं ,” अगर उद्योग नौकरियों में कटौतियां कर रहे हैं, तो यह एक शुभ संकेत है !” शुभ संकेत ? वाकई गोयल साहब? नौकरियों से निकाला जाना कब से शुभ संकेत हो गया ? गोयल साहब आगे कहते हैं ,” आज का युवा सिर्फ रोज़गार हासिल करने वाला नहीं बनना चाहता, वो रोज़गार मुहैय्या कराने वाला बनना चाहता है। ”वाह! यानी के मोदी सरकार के तीन सालों में आज का युवा रोज़गार मुहैय्या करवा रहा है। गज़ब बोले हैं सिरजी! गोयल साहब के इस बयान को तर्क और तथ्य की ज़मीन पर परखते हैं, खुद उन्ही के , यानी सरकारी आंकड़ों से। इंडियन एक्सप्रेस आंकड़ों के आधार पर जो जानकारी अर्जित की है, उसके मुताबिक, रोज़गार पैदा करने या स्टार्टअप्स को लेकर दिनबदिन हालात बदतर होते जा रहे हैं।2015 की तुलना में 50 फीसदी अधिक स्टार्ट अप्स बंद हुए , करीब 212 . 2017 में दो बड़े स्टार्ट अप्स , stayzilla और taskbob बंद हो गए। 2017 के पहले 9 महीनों में सिर्फ 800 स्टार्ट अप्स शुरू हुए २०16 में ये आंकड़ा 6000 था। यानी ढलान जारी है। और गोयल साहब फिर भी आशावादी हैं , जो एक अच्छी चीज़ हैं। क्योंकि वर्तमान हालात में जब युवा के पास नौकरी नहीं, तब एक आशावादी रवैय्या ही उसे बिखरने से बचा सकता है। और चिंता की बात ये आपके भक्त इसे निगल भी लेते लेते हैं। बिलकुल वैसे जैसे मोदीजी ने पिछले 16 सालों में भोले बाबा की तरह विष पिया।
यानि के मोदी सरकार आपको लगतार प्रेरणा दे रही है…. अगर रोटी नहीं है तो क्या हुआ , आलू के पराठे खाओ और वह भी घी से लबालब।अरे अब तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी भारत की विकास दर को घटकर 6. 7 कर दिया। जीएसटी को लेकर व्यापारियों में हाहाकार है , मगर बकौल वित्त मंत्री अरुण जेटली , जीएसटी में तब्दीली बेहद सुखद और सुचारु रहा है। यानी के जो हाहाकार मचा हुआ है , उसे ही नकार दो?ये बात यहाँ नहीं थमती, जब जीएसटी से मचे हाहाकार के बाद कुछ संशोधन किये थे , जिसमे गुजरात चुनावों ,मद्देनज़र खाखरा पर टैक्स काम कर दिया गया था , तब याद है आपको मोदीजी ने द्वारका में क्या था ? याद है , के भूल गए ? के व्यापारियों की 15 दिन पहले दिवाली आ गयी। यानी के पहले तो ऐसे हालात पैदा करो के इंसान परेशान हो जाए , फिर वापस पहले जैसे हालात कर दो। और सामान्य हालात को दिवाली का नाम देदो। वाह! समझ रहे हैं न आप? ये है अच्छे दिन। नोटबंदी हो या जीएसटी , पहले तो ये सरकार मानती ही नहीं के हालात बिगड़े हुए हैं , फिर चुनावों के दबाव में कुछ संशोधन कर दो और उसे दिवाली या अच्छे दिनों का नाम देदो। और आप, यानी जनता भी खुश !यही बेतुका काल जारी है देश में। और जनता , यानी आप प्रसन्न हैं। मुझे इंतज़ार है के भक्ति रास का नशा कब उतरेगा , तब तक के लिए मस्त रहिये।