‘नफरत’ में बदल गई है ‘मोहब्‍बत’ की निशानी, आजम खान ने कह दिया गिरा दो संसद भवन

ताजमहल को मोहब्‍बत की निशानी माना जाता है। लेकिन, अब इसके नाम पर नफरत शुरु हो गई है। आजम खान संगीत सोम से दो कदम आगे निकल गए हैं।

New Delhi Oct 17 : ताजमहल और मुगल शासकों के इतिहास को लेकर देश में राजनैतिक घमासान मचा हुआ है। कहावत है कि ना कि लंका में सब 52 गज के होते हैं। इसी तरह राजनीति लंका में भी हर नेता 52 गज से कम का नहीं दिख रहा है। वार और पलटवार में हर किस्‍म की सीमाएं और मर्यादाएं टूटती जा रही हैं। अभी कल की बात है कि जब मेरठ के सरधना से बीजेपी विधायक संगीत सोम ने ताजमहल को भारतीय संस्‍कृति पर धब्‍बा बताया था और कहा था कि मुगल सम्राटों के इतिहास को बदलने की जरूरत है। संगीत सोम के इस बयान में ओवैसी के बाद अब आजम खान और ममता बनर्जी भी कूद पड़ी हैं। जो इस विवाद को शांत करने की बजाए और भी भड़काने का काम कर रहे हैं।  

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संगीत सोम के बयान की प्रतिक्रिया में आजम खान कहते हैं कि अगर ताजमहल गुलामी की निशानी है तो संसद भवन और राष्‍ट्रपति भवन भी तो गुलामी की ही निशानियां हैं। इन्‍हें भी गिरा देना चाहिए। आजम खान का कहना है कि गुलामी की निशानियों को ना मिटाना राजनीतिक नपुंसकता है। इससे पहले ओवैसी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल कर चुके हैं क‍ि क्‍या वो लाल किले से तिरंगा नहीं फहराएंगे इसे भी तो मुगल सम्राटों ने ही बनवया था। वहीं आजम खान ने संगीत सोम पर सीधा हमला किया। लेकिन, नाम नहीं लिया। आजम खान का कहना है कि मैं किसी को जवाब नहीं दे रहा। उनका कहना है कि मीट के कारखाने चलाने वालों को राय देने का अधिकार मुझे नहीं है। उन्‍होंने कहा कि उन सभी इमारतों को गिरा देना चाहिए जिनसे मुगल शासकों की बू आती है।

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आजम खान डंके की चोट पर ये कह रहे हैं कि मैंने तो पहले भी कहा था कि ताजमहल ही क्‍यों संसद भवन, राष्‍ट्रपति भवन, कुतुब मीनार हर उस चीज को गिरा दो जिसे मुगल शासकों ने बनवाया। हम बादशाह से अपील करते हैं कि पहला फावड़ा वो चलाएं दूसरा हमारा होगा। लेकिन, कहने के बाद पीछे मत हटिए क्‍योंकि ये राजनैतिक नंपुसकता होगी। उधर, पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी भी बीजेपी पर तीर कमान साधे हुए खड़ी हैं। उन्‍होंने कहा कि अगर ताजमहल गद्दारों ने बनवाया तो फिर ब्रिटिश स्मारकों पर ये लोग क्या कहेंगे ? ममता बनर्जी का कहना है कि मुझे इस पर टिप्पणी करने में भी शर्म आती है। ब्रिटिश काल में जो भी बना आज वो हेरीटेज है। जिसका संरक्षण होना चाहिए सियासत नहीं।

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गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी के किसी भी नेता की ओर से किसी भी ऐतिहासिक इमारत को गिराने की कोई बात नहीं की गई। हां मुगल सम्राटों के क्रूर इतिहास को जरूर बताया गया। ये बताया गया कि उन्‍होंने किस तरह से हिंदुओं पर अत्‍याचार किया। किस तरह से मंदिरों को तुडवाकर मस्जिदें बना दी। ऐसे में इतिहास में बदलाव की जरूरत है। ताजमहल पर जो विवाद है वो भी इस बात को लेकर है कि यूपी सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से जारी बुकलेट में इसका नाम नहीं दर्ज किया गया। बहस इस मुद्दे पर होनी चाहिए ना कि संसद भवन, राष्‍ट्रपति भवन, कुतुब मीनार और ताजमहल को गिराने के मसले पर। इस तरह के बयान मुद्दे को भटकाने की कोशिश है। विवाद इमारत से ज्‍यादा इतिहास की पढ़ाई पर है। इतिहास से भी ज्‍यादा लड़ाई वोट बैंक और राजनीति की है। हर कोई इस मसले को अपने नफे-नुकसान की नजर से देख रहा है।