लौह पुरुषाय नम: भारतीय जनता पार्टी में लौह पुरुष की वैकेंसी

मोदीजी भी रोते हैं और योगीजी भी। वे संसद में बिलख-बिलख कर रो चुके हैं। इसलिए तर्कशास्त्र कहता है कि अगला लौह पुरुष उन्हे ही होना चाहिए।

New Delhi Nov 01 : सरदार पटेल के अवसान के बाद लौह पुरुष की पदवी लंबे अरसे तक खाली रही। कोई दावेदार सामने नहीं आया। भारतीय राजनीति में आडवाणी युग के आगमन के बाद ही लौह पुरुष की खाली वैकेंसी भरी जा सकी। आडवाणी ने जब लौह पुरुष की अर्जी लगाई तो झट से स्वीकृत हो गई। कारण ये कि कोई दूसरा दावेदार था ही नहीं। जो लोग सरदार पटेल के बारे में ठीक से जानते तक नहीं थी, उन्होने भी फोटो-फोटो से मिलाकर पुष्टि कर दी— हां आडवाणी जी एकदम सरदार पटेल की तरह गंजे हैं, इसलिए लौह पुरुष उपाधि उन्हे सूट करेगी। सरदार पटेल ने अपने फौलादी इरादो से देश को जोड़ा था, इसलिए लौह पुरुष कहलाये थे। आडवाणी ने भी अपनी तरह से देश को जोड़ा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पटेल ने जो भारत बनाया था, उसपर रथ हांककर आडवाणी ने बता दिया कि महापुरुषों के दिखाये मार्ग पर चलना क्या होता है।

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1989 से लेकर 6 दिसंबर 1992 तक भारत की राष्ट्रीय एकता का स्वर्णिम काल था। राष्ट्रीय एकता इन्ही प्रयासों के बदले आडवाणी देश के उप-प्रधानमंत्री बने। उस समय प्रधानमंत्री नेहरूवादी रूझान वाले संघी अटल बिहारी वाजपेयी थे। लोगो को लगा कि इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है, नेहरू और पटेल के बाद वाजपेयी और आडवाणी। लौह पुरुष द्वितीय में काफी लौह तत्व अब भी बाकी था। लेकिन उनसे लोहा लेकर नरेंद्र मोदी अगले लौह पुरुष बन गये। आडवाणी जंग खाये पुराने बर्तन की तरह ऐसे कबाड़ में पहुंच गये जिसके लिए मार्गदर्शक मंडल नाम का सम्मानसूचक शब्द इस्तेमाल किया जाता है। देश पूछ रहा है कि क्या अब मोदीजी से लोहा लेकर योगी आदित्यनाथ अगले लौह पुरुष बनेंगे?

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लौह पुरुष के कुछ खास ट्रेडमार्क होते हैं। अपनी एक बॉडी लैंग्वेज होती है। सरदार पटेल को छोड़ दीजिये बाकी के दो लौह पुरुषों और तीसरे लौह पुरुष इन मेकिंग योगी आदित्यनाथ पर गौर कीजिये। तीनो में एक बात बिल्कुल एक जैसी है। आडवाणी, मोदी और योगी तीनो तर्जनी उठाकर बात करते हैं। उंगली इतनी सीधी और कड़क कि लगता है, जैसे सचमुच लोहे की बनी हो। जनसभाओं में उठी फौलादी उंगली देखकर लगता है, जैसे लौहपुरुष ने अभी-अभी गोवर्धन पर्वत जमीन पर वापस रखा हो या फिर अपने सुदर्शन चक्र के वापस लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं। नये वाले लौह पुरुष बहुत ऊंचा बोलते हैं, सुनते कैसा हैं, ये पता नहीं। मैने यू ट्यूब पर सरदार पटेल के कई भाषण सुने हैं। वे कभी चीखकर बात नहीं करते थे। लेकिन नये वाले लौह पुरुष कुछ इस अंदाज़ में बात करते हैं कि आवाज़ सीधे सरदार पटेल तक पहुंच जाये। आडवाणी की आवाज़ उनका कमज़ोर पक्ष था, लेकिन मोदीजी के पास सुदर्शन व्यक्तित्व के साथ बेहतर ऑडियो क्वालिटी भी है, इसलिए वे आडवाणी से ज्यादा उच्च क्वालिटी के लौह पुरुष लगते हैं।

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लेकिन मोदीजी का रोना मुझे समझ में नहीं आता। सरदार पटेल के रोने का कोई किस्सा मैने नहीं सुना। आडवाणी भी सार्वजनिक तौर पर कभी नहीं रोये। लेकिन मोदीजी रोते हैं। आंसू भी यकीनन फौलादी ही होते होंगे। लोहा पिघलता है तो तलवार बनती है। वीरो के आंसू कभी व्यर्थ नहीं जाते। वे भक्तों में आल्हा-उदल जैसा जोश भरते है। योगी आदित्यनाथ लौह पुरुष इन मेकिंग हैं। वे संसद में बिलख-बिलख कर रो चुके हैं। मोदीजी भी रोते हैं और योगीजी भी। इसलिए तर्कशास्त्र कहता है कि अगला लौह पुरुष उन्हे ही होना चाहिए। वैसे योगी जी के बारे में मशहूर है कि वे रोने के साथ रुलाते भी हैं। हर कहानी के दो-तीन कथानक ज़रूर होते हैं। इसलिए कहानी बदल जाये तो पता नहीं, लेकिन सुना है कि योगीजी की सरकार ने जेल में बंद दलित नेता चंद्रशेखर रावण को इतना पिटवाया है कि बेचारा व्हील चेयर पर आ गया है। लौह पुरुष चतुर्थ को मैं सिर्फ कबीरदास का एक दोहा याद दिलाना चाहता हूं! निर्बल को ना सताइये जाकी मोटी हाय, मरे खाल की श्वास से लोहा भस्म हो जाये! (वरिष्‍ठ पत्रकार राकेश कायस्‍थ के फेसबुक वॉल से साभार)