ईज़ आफ डूइंग बिजनेस अगर सुधर रहा है तो फिर बिजनेस क्यों नहीं हो रहा ?

ईज़ आफ डूइंग बिजनेस की प्रक्रिया को मैं ठीक से नहीं समझा फिर भी लिखने का प्रयास करता हूं। इसमें भारत का रैंक 30 पायदान ऊपर चढ़ा है

New Delhi Nov 01 : ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत का रैंक 30 पायदान ऊपर चढ़ा है, जो उल्लेखनीय उपलब्धि है। भारत पहली बार 100 की सूची में पहुंचा है बल्कि 100 पर ही है। वित्त मंत्री कह रहे हैं कि हम 50 तक पहुंचेंगे, पहुंच भी जाएंगे। हेडलाइन के भीतर की लाइनें कहती हैं कि भारत अभी भी बिजनेस शुरू करने के मामले में बेहतर नहीं हुआ है। जबकि इस रिपोर्ट के अनुसार 15 साल पहले 127 दिन लगता था, अब 30 दिन लगता है। इस मामले में भारत का रैंक 156 है। आज किसी अनुबंध यानी कांट्रेक्ट के पालन में पहले से ज़्यादा समय लगता है। 15 साल पहले 1420 दिन लगते थे, आज 1445 दिन लगते हैं। इस मामले में भारत का रैंक 164 है। बिजली लेने में भारत का रैंक 29 है और अल्पसंख्यक( धर्म वाला नहीं) निवेशक की रक्षा के मामले में 4 रैंक है। ठेके के परमिट के मामले में भारत का रैक 181 है। टैक्स देने के मामले में भारत का रैंक 119 है। क्यों अब तो टैक्स पेयर बढ़ गए हैं, आधार आ गया, नोटबंदी हो गई, जी एस टी हो गया इसके बाद भी हमारे टैक्स चुकाने के मामले में 119 वें रैंक पर हैं। कुछ अजीब नहीं लग रहा है आपको !

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ईज़ आफ डूइंग बिजनेस अगर सुधर रहा है तो फिर बिजनेस क्यों नहीं हो रहा है। जुलाई 2017 के आंकड़े बताते हैं कि इस साल कर्ज़ लेने में ऐतिहासिक गिरावट आई है। 1.5 लाख करोड़ कम कर्ज़ लिया गया है बैंकों से। आज के इंडियन एक्सप्रेस में छपा है कि खेती और सेवाओं के सेगमेंट में भी क्रेडिट लेने में तेज़ गिरावट आई है। इंडस्ट्री ने भी कम क्रेडिट लिया है। ऐतिहासिक गिरावट के स्तर पर है। बेसिक मेटल, मेटल उत्पाद, टेक्सटाइल, खाद्य प्रसंस्करण में क्रेडिट लेने में तेज़ी आई है। CRISIL ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पावर सेक्टर में 4 लाख करोड़ NPA बनने जा रहा है अगर सरकार ने कोयला की कीमतों को लेकर तुरंत कोई कदम नहीं उठाए तो। 31 अक्तूबर के इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर संदीप सिंह की रिपोर्ट छपी है कि 2017 में IPO के ज़रिए कंपनियों ने शेयर बाज़ार से 46, 239 करोड़ जमा किए। जो पिछले 16 साल में एक रिकार्ड है। लेकिन चिंता की बात यह है कि मार्केट से जो पैसा लिया गया उसका मात्र 20 फीसदी ही कंपिनयों के विस्तार में लगा।

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मैं इस प्रक्रिया को ठीक से नहीं समझा फिर भी लिखने का प्रयास करता हूं। संदीप लिखते हैं कि 80 फीसदी यानी 37,089 करोड़ OFFER FOR SALE के लिए है। आफ फार सेल के ज़रिए सारा पैसा उस निवेशक के पास चला गया जो अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहता था। थोड़ा बहुत समझ में यह आया कि मार्केट के इस उछाल का फायदा चंद लोगों को हुआ और कंपनियों का नियंत्रण चंद लोगों के हाथ में गया। ऐसा करना ग़लत नहीं है, निवेशक अपना मुनाफा लेकर निकलते रहते हैं मगर इस रिपोर्ट में एक्सपर्ट ने कहा है कि यह अर्थव्यस्था के लिए अच्छा ट्रेंड नहीं हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में समाचार छपा है कि कोर सेक्टर में पिछले छह महीने में सबसे अधिक उछाल दर्ज हुआ है। यह उछाल कोयला, रिफाइनरी और गैस सेक्टर में सुधार के कारण आया है। सीमेंट सेक्टर में भी उछाल देखा गया है।

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28.10.2017, फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने लिखा है कि भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत अगले पांच साल में 7 लाख करोड़ का निवेश होगा लेकिन CRISIL ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के लिए इसके लिए ज़रूरी पैसे को जुटाना मुश्किल होगा क्योंकि इसके लिए जो प्राइवेट निवेश चाहिए, वो पिछले कुछ सालों में ध्वस्त हो गया है। COLLAPSE ! इसके कारण कई बड़े प्रोजेक्ट गंभीर मुश्किल में हैं। 2007-12 के दौरान इंफ्रा सेक्टर में निवेश 23.8 लाख करोड़ था। 2013-2017 के दौरान यह बढ़कर 37.2 लाख करोड़ हो गया। देखने में तो यह बहुत शानदार लगता है मगर औरिजिनल टारगेट तो 55.7 लाख करोड़ का था। यह इसलिए घटा क्योंकि प्राइवेट निवेश भरभरा गया। इस सेक्टर में प्राइवेट निवेश 8.8 लाख करोड़ से बढ़कर 26.8 लाख करोड़ होना था मगर हुआ 12.8 लाख करोड़ ही।

अगर प्राइवेट सेक्टर का निवेश 35 प्रतिशत के स्तर पर ही रहा इसका मतलब है कि पब्लिक सेक्टर को सारा बोझ उठाना पड़ेगा। सरकार का निवेश 2013-17 में 24.4 लाख करोड़ से बढ़कर 2017-2022 में 32.5 लाख करोड़ होना होगा। यह काफी बड़ा उछाल है। प्राइवेट सेक्टर संकट में है। उससे उम्मीद करना इस वक्त बेकार है। क्यों हुआ, जबकि हम ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में अच्छा कर रहे थे? आपने देखा कि बैंकों से निवेश के लिए कर्ज़ लेने में कमी है, शेयर मार्केट से जो पैसा कंपनियां उठा रही हैं, वो निवेश में नहीं लगा रही हैं। जब ईज़ आफ डूईंग बिजनेस में हम इतना अच्छा कर ही रहे हैं तो फिर बिजनेस हो क्यों नहीं रहा है। ये रैंकिंग सुनकर तो ठीक लगती है मगर अंदर की हकीकत कुछ और होती है। जीएसटी के बाद कई सेक्टर के व्यापारी ईज़ आफ डूईंग की जगह क्राईंग कर रहे हैं। उनकी आवाज़ तो इस रिपोर्ट में है ही नहीं। ईज़ ऑफ डूईंग बिजनेस की रैंकिंग में ब्रूनई दारुस्लाम 56 वें रैंक पर है। कोसोवो 40 वें रैंक पर है। उज़ेबेकिस्तान 74 और ज़ांबिया 85 वें रैंक पर है। अल सल्वाडर 73 वें रैंक पर है।

इन देशों में न कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा जग प्रसिद्ध नेता है, अमित शाह जैसा संगठनकर्ता और न अरुण जेटली जैसा वित्त मंत्री। ईज़ ऑफ डूईंग बिजनेस विश्व बैंक की बताई हुई नीति है, किसी की भी सरकार होती है, इस पर चलते रहना होता है। ईज़ आफ डूईंग बिजनेस की एक तस्वीर यह भी है जो टाइम्स आफ इंडिया के भीतर छपी है ।अगर वाकई इसने एक लाख लोगों के सर्वे के बाद यह छापा है तो कोई नई जानकारी नहीं है। यही हकीकत है। तभी नेता चुनावों के समय इतना मौज करते हैं। ख़ूब नोट उड़ाते हैं। आप ग्रीज़ ऑफ डूइंग बिजनेस का यह नया डेटा भी देखिए और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस का भी जश्न मनाइये। (वरिष्‍ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)