लूट लिया देश व प्रदेश को ‘अलोपीदीनों’ ने !
आज भी सरकारें बातें तो बड़ी-२ करती हैं लेकिन चलती हैं, भ्रष्ट अलोपीदीनों के सहारे । बंशीधर जैसे ईमानदार तब भी नौकरी से बाहर निकाले जाते थे और आज भी।
New Delhi Nov 02 : मुंशी प्रेमचंद का एक पात्र… धनलोलुप, भ्रष्ट ‘अलोपीदीन’ तब भी सफल था और आज तो और भी अधिक कामयाब है …….. कर्तव्यपरायण, ईमानदार पात्र, ‘बंशीधर’ आज भी मौजूद हैं लेकिन संख्या कम होती जा रही है। आज भी सरकारें बातें तो बड़ी-२ करती हैं लेकिन चलती हैं , भ्रष्ट अलोपीदीनों के सहारे ही हैं……बंशीधर जैसे ईमानदार तब भी नौकरी से बाहर निकाले जाते थे और आज भी सरकारों को बर्दाश्त नहीं हैं …..और न ही आज की ‘अहंकारी सरकारें’, अलोपीदीन की तरह प्रायश्चित ही करने को तैयार हैं। सरकारों में भ्रष्ट मंत्री व संतरी तब भी थे और आज भी हैं….. हालाँकि संख्या थोड़ी कम-या-बरती हो सकती है।
बात समझ में तब आएगी जब कहानी का निम्न शारांश पढ़ेंगे !!! कहानी का शारांश: प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘नमक-का-दारोग़ा’ में दो पात्र अहम् हैं : एक नायक है, ‘वंशीधर’ नामक दारोग़ा-बेहद ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है, जो समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिशाल कायम करता है…..दूसरा पात्र है, नमक का व्यापारी, खलनायक-पंडित ‘अलोपीदीन’ जो शहर के सबसे अधिक अमीर और इज्जतदार व्यक्ति थे।
जिनकी राजनीति में भी अच्छी पकड़ थी। अधिकांश अधिकारी उनके अहसान तले दबे हुए थे। अलोपीदीन ने धन के बल पर सभी बर्गों के व्यक्तियों को गुलाम बना रखा था……. एक दिन दरोगा मुंशी वंशीधर अलोपीदीन की नमक की गाड़ियों को पकड़ लेता है, और अलोपीदीन को अदालत में गुनाहगार के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन वकील और प्रशासनिक आधिकारी उसे निर्दोष साबित कर देते हैं, जिसके बाद वंशीधर को नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है।
इसके उपरांत पंडित अलोपीदीन, वंशीधर के घर जाके माफी माँगता है और अपने कारोवार में स्थाई मैनेजर बना देता है तथा उसकी ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा के आगे नतमस्तक हो जाता है। (उत्तर प्रदेश के पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्यप्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार। ये लेखक के निजी विचार हैं। जरूरी नहीं हैं कि www.indiaspeaks.news उनके निजी विचारों से सहमत हो, सूर्य प्रताप सिंह प्रदेश में कई बड़े प्रशासनिक पदों की जिम्मेदारी निभा चुके हैं।)