बहुत मजाक बना वफ़ादार कुत्तों का, अब और मत बनाओ

राजनीति में मानवीय मूल्यों व पशुओं के प्रति संवेदनाओं का अवमूल्यन हो रहा है, कुत्ते जैसे वफ़ादार दोस्त का मज़ाक़ बनाकर हीन भावना से देखा जा रहा है।

New Delhi, Nov 02: बहुत मजाक बना ‘वफ़ादार’ कुत्तों का, अब और मत बनाओ…. अर्थात ‘कुत्तों’ जैसा भोंकना बंद करो ! हम कुत्तों को एक वफ़ादार जानवर मानकर पालते भी हैं और उसे हेय दृष्टि भी देखकर बहुत सी लोकोक्तियाँ गढ़ना भी मनुष्य की फ़ितरत रही हैं, जैसे ‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट का’….’कुत्ते भोंकते रहते हैं, हाथी चलता चला जाता है’….’भोकने वाले कुत्ते कभी कटते नहीं’……’खेत खाएँ बन्दर, पकड़े जाएँ कुत्ते’……’गली-का-कुत्ता होना’…..’बड़ा दहाड़ते थे शेर जैसे और कुत्ते जैसे बनकर तलवे चाटने लगे’….आदि-२। आज भारतीय राजनीति में मानवीय मूल्यों व पशुओं के प्रति संवेदनाओं का घोर अवमूल्यन हो रहा है, अब कुत्ते जैसे वफ़ादार दोस्त का मज़ाक़ बनाकर हीन भावना से देखा जा रहा है।

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मैं नेताओं या किसी वर्ग विशेष को नहीं कह रहा लेकिन दुनिया में कुछ लोग तो कुत्ते से भी ज़्यादा भोंकते हैं, कुत्ते से ज़्यादा गिरे गुज़रे होते हैं, कुत्ते से ज़्यादा चमचागिरी में पूँछ हिलाते हैं, कुत्ते से ज़्यादा उनकी पूँछ(फ़ितरत) टेढ़ी होती है, फिर उनका नाम क्यों नहीं बदल कर ‘कुत्ते-से-गया-गुज़रा’ क्यों नहीं रख दिया जाता है कई बार आदमी, कुत्ते से गया गुज़रा और कुत्ता, आदमी से बेहतर नज़र आता है और कभी-२ दोनों एकाकार होते नज़र आते हैं।

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आजकल बहुत पहुँचे हुए आदमी को “कु…तत्ती’ चीज” कहकर कुत्ते शब्द का अवमान किया जाता है। लोग किसी पर ख़ुन्नश निकालते हैं तो कहते थे कि “तू कुत्ते की मौत मरेगा” या “तुझे कुत्ते की मौत मारूँगा” ये है मनुष्य का ‘कुकर’ चरित्र इस चरित्र को ही देखा जाना चाहिए, हेय दृष्टि से। आजकल देश में “एक” कुत्ते को लेकर ‘आओ कुत्ता-कुत्ता खेलें’, का अद्भुत खेल चल रहा है अर्थात ‘हम भी कुत्ते, तुम भी कुत्ते’ जैसा व्यवहार हो रहा है। अब देखना होगा इस तू-तू-मैं-मैं में कोई कुत्ता जीतता है या कुत्ते जैसे वफ़ा दार  जानवरों को हेय दृष्टि से देखने वाले मज़ाक़ बनाने वाले।

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नेता वैसे असल में तो लड़ते कभी नहीं हैं, केवल जनता को मूर्ख बनाने के लिए अधिकांशतः केवल नूराकुश्ती ही करते हैं, फिर भी चाहे आपस में वे ख़ूब लड़ें, लेकिन कुत्ते जैसे वफ़ा दार , प्यारे जानवर को इस लड़ाई में न घसीटें तो ही अच्छा होगा।  If having a soul means being able to feel love and loyalty and gratitude, then animals are better off than a lot of humans.”―James Herriot.  गांधी जी ने भी कहा था कि…“The greatness of a nation and its moral progress can be judged by the way its animals are treated.” क्या कहते हैं, आप ?

(पूर्व आईएएस सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)