भंसाली जैसे फिल्मकारों ने सनातन समाज को समझ क्या रखा है ?

आश्चर्य है कि पद्मावती फ़िल्म पर आज पूरा सनातन समाज, इस विषय को केवल ‘राजपूत’ समाज के सम्मान की बात समझ, तथस्थ बना हुआ है।

New Delhi, Nov 06: क्या सनातन समाज को ‘भंसाली’ जैसे फ़िल्मकारों ने हुआं-२ करता हुआ, एक गीदड़ों का वह झुंड समझ रखा है , जो अपनी सहिष्णुता के बहाने अंधेरे में बंद दरवाज़ों-चौखटों के पीछे छुप जाया करते हैं ? क्या यह देश रानी पद्मावती को भारतीय नारी की अस्मिता व सतीत्व का प्रतीक नहीं समझता ? क्या पद्मावती के चरित्र पर कीचड़ उछालने वालों पर चुप/तटस्थ रहना, भारतीय नारी की अस्मिता का अपमान नहीं है ? आश्चर्य है कि पद्मावती फ़िल्म पर आज पूरा ‘सनातन’ समाज, इस विषय को केवल ‘राजपूत’ समाज के सम्मान की बात समझ, तथस्थ बना हुआ है। कल हर समाज के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उनकी बहू-बेटियों पर इसी प्रकार की अपमानजनक फ़िल्में बनेंगी, तो क्या करोगे?

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पद्मावती को राजपूत समाज से न जोड़कर भारतीय नारी के अस्मिता से जोड़ा जाना चाहिए। पद्मावती स्त्रीत्व व पवित्र सतीत्व की गरिमा की प्रतीक थी और ख़िलजी एक घोर व्यभिचारी अक्रांता। इनके बीच प्रेम सम्बंध दिखाना नारी की अस्मिता के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ? जब आने वाली पद्मावती फ़िल्म के विषय में किसी समाज को घोर आशंकाएँ हैं तो रिलीज़ से पूर्व सेन्सर बोर्ड समाज के प्रमुख लोगों के समक्ष प्रदर्शन कराके इस विवाद को क्यों शांत नहीं कर रहा है? यदि ऐसा नहीं किया जाता है,

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तो यही माना जाएगा कि इस फ़िल्म में ऐसा कुछ आपत्तिजनक तथ्य अवश्य है जिन्हें समाज से छुपाया जा रहा है। 1 दिसम्बर को जब फ़िल्म रिलीज़ होगी और तब पता चलेगा कि इतिहास के ग़लत तथ्यों का सहारा लेकर पद्मावती के नाम पर नारी अस्मिता व राजपूत समाज के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचायी गयी है, तो न केवल राजस्थान बल्कि पूरा देश ‘विरोध’ की आग में जल उठेगा ….. इसका उत्तरदायित्व किसका होगा ? सरकारों को समाज के विरोध को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा, आप बतायें कि इस सम्बंध में क्या किया जाए ?

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क्या किसी ‘आंदोलन’ की रणनीति बनायी जाए या फिर गीदड़ों की तरह बंद दरवाज़ों के पीछे छुपकर बैठा जाए ? आप परामर्श दें तो एक मीटिंग लखनऊ में बुलाकर इस विषय में अग्रिम कार्यवाही/ रणनीति के लिए चर्चा की जाए यह समय है, भारतीय नारी की अस्मिता की रक्षार्थ पूरे ‘सनातन’ समाज को एक जुट होने का !! याद रखो दोस्तों ! सबसे ख़तरनाक वह रात होती है, जो ज़िन्दा रूहों के आसमानों पर ढला करती हैं और जिस रात में केवल उल्लू बोलते हैं और गीदड़ हुआं-हुआं किया करते हैं !!! जय-हिंद, जय-भारत

(आईएएस अधिकारी रहे सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)