राहुल गांधी जल्दबाजी में हैं, सियासत में इतनी तेजी  ठीक नहीं होती

राहुल गांधी गुजरात में बेहद आक्रामक हैं, वो जल्दी में हैं, जो जल्दी में होता है वो थकता भी जल्दी है, क्या राहुल भी अब थक रहे हैं, अब वो पुराने फॉर्मूले पर लौट रहे हैं।

New Delhi, Nov 09: गुजरात का विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद खास होता जा रहा है। मोदी के गढ़ में पहली बार बीजेपी को चुनौती मिल रही है। बीजेपी को अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ रही है। ऐसा क्यों हैं, क्या बीजेपी कमजोर हुई है, केंद्र सरकार की नीतियों का असर चुनाव पर पड़ रहा है, या फिर कांग्रेस मजबूत हुई है। कह सकते हैं कि ये तीनों ही कारण हैं जिनके चलते बीजेपी के सामने मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। साथ ही पिछले दो सालों के दौरान राज्य में कुछ ऐसे आंदोलन हुए हैं जिनसे कुछ युवा नेता उभर कर सामने आए हैं, इन नेताओं की अपनी जातियों समुदायों पर पकड़ है। इन सबके साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी नए अवतार में दिखाई दे रहे हैं।

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गुजरात को लेकर कांग्रेस ने एक विस्तृत योजना पहले से तैयार कर ली थी। इसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस ने अपने हमलों को धारदार किया, निजी हमले के बजाय मुद्दों पर आधारित हमला शुरू किया, गुजरात मॉडल पर हमला किया, जिस से बीजेपी परेशान हो गई, ये सब करने के लिए सामने आए राहुल गांधी, जो बेहद आक्रामक दिख रहे हैं। उनकी भाषा और चुटीला अंदाज लोगों को पसंद आ रहा है. जुमलों का इस्तेमाल भी राहुल सीख गए हैं। उनके भाषणों में भी सुधार हुआ है। वो पहले की तरह असहज नहीं दिखाई देते हैं। कहा जा सकता है कि राहुल ने गुजरात चुनाव प्रचार में अब तक एक परिपक्व नेता की झलक दिखाई है। जिसकी उम्मीद उनसे काफी पहले से की जा रही थी।

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ठीक है कि राहुल गांधी नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर हमला करते समय सहज दिखाई देते हैं, लेकिन एक सवाल न जाने क्यों मन में उठता है, क्या राहुल ने गुजरात में समय से पहले प्रचार शुरू नहीं कर दिया। पिछले दो महीने से वो कांग्रेस के लिए माहौल बना रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए आक्रामक हमले कर रहे हैं। नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दों को लेकर निशाना साध रहे हैं। लेकिन अब क्या, जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे वैसे लग रहा है कि राहुल थक गए हैं, कांग्रेस की टीम के पास से अब धारदार मुद्दे खत्म हो गए हैं, गुजरात का विकास मॉडल, नोटबंदी, जीएसटी पर तो राहुल अपनी बात रख ही चुके हैं।

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अब लग रहा है कि राहुल भी समझ गए हैं कि मुद्दों को आधार बना कर हमला करने से भी कुछ खास फायदा नहीं होगा, वो जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। जिस नए अवतार की बात की जा रही थी वो फिर से पुरानी परिपाटी पर चलता दिख रहा है। पटेल, ओबीसी और दलित वोटबैंक को साधकर राहुल चुनाव जीतने का सपना देख रहे हैं। याद करिए उत्तर प्रदेश का चुनाव,. वहां भी राहुल ने महीनों पहले से माहौल बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन चुनाव के ठीक पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया था। ठीक वैसा ही गुजरात में भी दिखाई दे रहा है। यहां पर राहुल ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल करा चुके हैं, हार्दिक पटेल के साथ गठबंधन की बात चल रही है, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी से भी बात हो रही है। इसी से लग रहा है कि राहुल भी थक गए हैं कशिश करते करते, जीत के लिए पुराने फॉर्मूले पर वापस लौट रहे हैं।