शरद यादव को लग रहे हैं झटके पे झटके , फिर भी नहीं आ रहे होश ठिकाने

शरद यादव जेडीयू में दो फाड़ कर पार्टी पर कब्‍जा करना चाहते हैं। वो कहते हैं कि उनका गुट असली है जबकि नीतीश कुमार का गुट फर्जी है।

New Delhi Nov 10 : शरद यादव ने जब से बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू से बगावत की है उन्‍हें झटके पर झटके लग रहे हैं। फिर भी शरद यादव को अपनी असलियत समझ में नहीं आ रही है। शरद यादव को चुनाव आयोग से भी बड़ा झटका लग चुका है। शरद बाबू ने जनता दल यूनाइटेड के चुनाव चिन्‍ह को जब्‍त करने के लिए चुनाव आयोग में अपील की थी। उनकी इस अपील को चुनाव आयोग ठुकरा चुका है। अभी इसी हफ्ते की बात थी जब चुनाव आयोग में उनकी इस अपील पर सुनवाई हुई थी। चुनाव आयोग ने इस मामले में शरद यादव और नीतीश कुमार दोनों ही गुटों के पक्षों को सुना था। दोनों ही पक्षों को सुनने बाद ही आयोग ने शरद बाबू की अपील को ठुकरा दिया था। चुनाव आयोग में शरद यादव की पैरोकारी कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और वकील कपिल सिब्‍बल कर रहे थे। लेकिन, आयोग के सामने जेडीयू के चुनाव चिन्‍ह को जब्‍त करने की उनकी अपील काम नहीं आई और आयोग ने अपील को ठुकरा दिया।

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हालांकि अभी इस मामले में फिर से सुनवाई होनी है। चुनाव आयोग इस केस में 13 नवंबर को दोबारा से सुनवाई करेगा। दरसअल, शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच उस वक्‍त से खटपट चल रही है जब से नीतीश कुमार ने बिहार में लालू यादव और उनके भ्रष्‍टाचार को लेकर महागठबंधन तोड़ दिया था और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। शरद लालू यादव के साथ थे। उनका कहना था कि नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़कर बिहार की जनता को धोखा दिया है। जबकि नीतीश कुमार उस वक्‍त चाहते थे भ्रष्‍टाचार के आरोपों में घिरे तत्‍कालीन उपमुख्‍यमंत्री और लालू यादव के बेटे तेजेस्‍वी यादव अपने पद से इस्‍तीफा दे दें। लेकिन, ना तो तेजस्‍वी यादव इस्‍तीफा देने को तैयार थे और लालू यादव झुकने को। लालू को शरद का फुल सपोर्ट था। हालांकि नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़ने से पहले अपने फैसले के बारे में शरद यादव को अवगत करा दिया था। नीतीश कुमार का कहना था कि वो किसी भी कीमत पर भ्रष्‍टाचार के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं।

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इसके बाद ही शरद यादव और नीतीश कुमार में तकरार बढ गई थी। शरद यादव लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। जिसके बाद जेडीयू की ओर से उनकी राज्‍यसभा की सदस्‍यता भी रद्द किए जाने की अपील राज्‍यसभा के सभापति और उपराष्‍ट्रपति वैंकेया नायडू से की गई थी। इस पर उन्‍हें नोटिस भी जारी हो चुका है। हालांकि अभी तक वो राज्‍यसभा के सभापति से ये कहकर बचते रहे है कि पार्टी का विवाद चुनाव आयोग में लंबित है। शरद यादव का गुट खुद को असली और नीतीश कुमार के नेतृत्‍व वाली जेडीयू को फर्जी बता रहा था। इसी बात को लेकर शरद का गुट चुनाव आयोग पहुंचा था और उसने पार्टी के चुनाव चिन्‍ह तीर पर अपना दावा ठोकते हुए इसे जब्‍त करने की मांग की थी। दरअसल, शरद यादव को लगता है कि अगर वो चुनाव आयोग में ये केस जीत जाते हैं तो उनकी राज्‍यसभा की सदस्‍यता बची रहेगी। जो फिलहाल काफी मुश्किल नजर आ रहा है।

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शरद बाबू आज भी इस भ्रम में जी रहे हैं कि वो बहुत बड़े नेता हैं। जबकि 2014 का लोकसभा चुनाव भी नहीं जीत पाए थे। उस वक्‍त शरद यादव ही जेडीयू के अध्‍यक्ष हुआ करते थे। उस वक्‍त भी शरद ने अपनी हार का ठीकरा नीतीश कुमार के सिर ही फोड़ा था। जब नीतीश कुमार ने हार की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा दे दिया था और महादलित समुदाय से आने वाले जीतनराम मांझी को मुख्‍यमंत्री बना दिया था। इसके बाद ही उन्‍होंने पार्टी की कमान संभाली थी। उस वक्‍त भी नी‍तीश कुमार ने शरद यादव का मान रखते हुए उन्‍हें राज्‍यसभा भेज दिया था। लेकिन, पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते अब उनकी राज्‍यसभा की कुर्सी खतरे में है। उनके साथ-साथ अली अनवर की कुर्सी पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। राज्‍यसभा की सदस्‍यता जाने के डर से शरद यादव झटपटाए जा रहे हैं। अपनी कुर्सी बचाने के लिए वो लगातार संवैधानिक काट तलाश रहे हैं। लेकिन, उनका हर दांव उलटा पड़ रहा है।