NGT के सामने कैसे ऑड-इवन को जस्टिफाई करेंगे केजरीवाल ?
जब-जब दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा है केजरीवाल की सरकार ने ऑड-इवन फार्मूला लागू किया। लेकिन, इस बार NGT ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
New Delhi Nov 11 : क्या दिल्ली में सिर्फ ऑड-इवन का फार्मूला लागू करके प्रदूषण को कम किया जा सकता है ? क्या केजरीवाल सरकार के पास दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए यही इकलौता विकल्प है ? केजरीवाल सरकार के पास इस बात की क्या गारंटी है कि ऑड-इवन का फार्मूला लागू करने से दिल्ली की हवा बेहतर हो जाती है ? क्या केजरीवाल के पास ऑड-इवन का ही सस्ता, सुंदर और टिकाऊ फार्मूला है ? ये वो सवाल हैं जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने दिल्ली सरकार से पूछे हैं। एनजीटी का कहना है कि हमने आपको दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए सौ उपाय बताए थे। लेकिन, अमल में सिर्फ ऑड-इवन को ही लाया जा रहा है। एनजीटी ने इस पर दिल्ली सरकार से जवाब तलब कर दिया है। इसके साथ ही कह दिया है कि अगर वो हमें अपने बयान से संतुष्ट नहीं कर पाई तो वो दिल्ली सरकार के इस आदेश को रद्द करे देंगे। ऐसे में अब ऑड-इवन को जस्टिफाई कर पाना केजरीवाल के सामने बड़ी चुनौती है।
दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने दिल्ली सरकार की ओर से आनन-फानन में ऑड-इवन का फार्मूला लागू करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। NGT ने ऑड-इवन के फैसले की समीक्षा के दौरान कहा कि जब तक दिल्ली सरकार हमें अपने इस फैसले को लेकर संतुष्ट नहीं कर देती वो इसे लागू नहीं कर सकती है। इतना ही नहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने ऑड-इवन को तमाशा बताया है। एनजीटी का कहना है कि ये फैसला काबिले तारीफ है लेकिन, जिस तरह से इसे लागू किया जा रहा है वो गलत है। एनजीटी का कहना है कि दिल्ली सरकार पहले ये साबित करे कि ऑड-इवन फार्मूला काउंटर प्रोडक्टिव नहीं है। दरसअल, दिल्ली सरकार अपने इस फार्मूले को लेकर इससे पहले भी वाहीवाह लूट चुकी है। इस बार भी सरकार चाहती है कि उसे वाहवाही मिले। जबकि हकीकत ये है कि बिना किसी प्लानिंग के इसे लागू करने से दिल्ली के लोगों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली में वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा है।
ऐसे में दिल्ली में वाहनों की संख्या कैसे कम की जाए इस पर विचार जरूरी है। जब तक दिल्ली के लोगों को बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम नहीं मिलता दिल्ली में वाहनों की संख्या में कमी नहीं आ सकती है। दिल्ली में इस वक्त जो हालत है उसमें इस फार्मूले का इस्तेमाल भी शॉक ट्रीटमेंट के तौर पर नहीं किया जा सकता है। असल दिक्कत ये है कि जब सरकारों के पास प्रदूषण को कम करने का वक्त होता है उस वक्त कोई कुछ करता नहीं है। चाहें वो दिल्ली की केजरीवाल की सरकार हो या फिर हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर की सरकार। या फिर पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार। जब प्रदूषण की स्थिति विकराल हो जाती है उस वक्त सबकी आंखे खुलती हैं। जबकि दिल्ली में जो हालात इस वक्त हैं कमोवेश कुछ साल से इस महीने में ऐसे ही हालात देखने को मिलते हैं। तीनों राज्यों के पास इसके तय कारण भी मौजूद हैं। लेकिन, इच्छा शक्ति किसी के पास भी नहीं है।
इन महीनों में हवा का दवाब कम हो जाता है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में नई फसल लगाने का सीजन होता है। किसान पुरानी फसलों की पराली जलाते हैं। हालांकि पराली जलाने पर प्रतिबंध है। लेकिन, पंजाब और हरियाणा सरकार के नकारापन की वजह से खुलेआम पराली जलाई जाती है। खेतों में आग लगाई जाती है। वहां से उठने वाला धुआं जब दिल्ली में हवा के कम दवाब के कारण इकट्ठा होता है तो राजधानी गैस के चैंबर में तब्दील हो जाती है। उस सूरत में ऑड-इवन जैसे फौरी फार्मूले जानलेवा प्रदूषण से राहत नहीं दिला पाते हैं। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी दोनों ने ही केजरीवाल सरकार को प्रदूषण से निपटने के तमाम रास्ते बताए हैं लेकिन, अमल सिर्फ ऑड इवन पर किया जाता है। मौसम विभाग कह चुका है कि सप्ताह के अंत तक जब हवा थोड़ी तेज होगी तो प्रदूषण का स्तर अपने आप कम हो जाएगा। ऐसे में सोमवार से शुक्रवार तक शुरु होने वाले ऑड-इवन के फार्मूले को एनजीटी के भीतर केजरीवाल सरकार को जस्टिफाई करना होगा। बताना होगा कि आपके सौ फार्मूले पर केजरीवाल का ये इकलौता फार्मूला भारी है। क्या ऐसा हो पाएगा जानने के लिए इंतजार कीजिए।