सफीर की चोरी : यूपीएससी को एग्जाम का तरीका बदलना होगा
यूपीएससी को अपने एग्जाम का तरीका बदलना होगा, सालों से चल रही पुरानी प्रक्रिया को बदलने की जरूरत आ गई है, क्यों जानने के लिए पढ़िए
New Delhi, Nov 12: बचपने में स्कूल की किताब में एक पाठ था. एक साधू को डर लगा कि उसने अपने तोते को अगर कभी उदारतावश मुक्त किया तो वह शिकारी की जाल में फंस जाएगा लिहाज़ा उसने तोते को सिखाना शुरू किया “शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से उसमें फंसना नहीं”. जब तोता दिन भर यह गाने लगा तो साधू को लगा कि उसे तोते को अब मुक्त कर देना चाहिए. पिजड़े से आजाद होते ही तोता खुले आकाश में और फिर एक जंगल में पेड़ पर बैठ गया. अन्य तोतों ने जब यह गाना सुना तो वे भी गाने लगे. शिकार के लिए आये एक बहेलिये ने जब यह सब कुछ तोतों के मुंह से सूना तो उसे लगा तोते समझदार हो गये हैं और अब उसके दुर्दिन आ गए. एक दिन एक पंडित उधर से निकला और बहेलिये को उदास देख कर सलाह दी कि एक बार जाल डाल कर कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है. बहेलिये ने ऐसा हीं किया लेकिन ताज्जुब हुआ कि तोते “शिकारी आयेगा ……” गाते जा रहे थे और जाल में दाना खाने के चक्कर में फंसते भी जा रहे थे. शायद उन्होंने साधू की सीख रट तो ली थी पर उसका मायने नहीं जानते थे.
गिरफ्तार ट्रेनी आई पी एस सफीर करीम तोता नहीं था. उसने पाठ पढ़ा भी और उसका मायने भी जनता था कि यह कापी में लिख कर मार्क्स हासिल करने के लिए होता है न कि जिन्दगी में अमल के लिए. तभी तो उसने सन २०१४ की यूपीएससी के सामान्य ज्ञान के चतुर्थ पेपर में, जो उम्मीदवार की नैतिकता और ईमानदारी (एथिक्स और ईमानदारी) को जांचने लिए पहली बार सन २०१३ में शुरू किया गया था, सबसे अधिक नंबर पाए थे और जिसकी बदौलत वह सामान्य ज्ञान के पेपर में २५० में १०८ नंबर पा कर ११२वी रैंक हासिल किया और आई पी एस अधिकारी बना. ध्यान रहे कि सामान्य ज्ञान के अन्य तीन पेपरों में उसे एथिक्स (नैतिकता) के पेपर से कम अंक मिले थे. सफीर को यूपीएससी की लिखित परीक्षा में १७५० में ७७२ अंक मिले जब कि साक्षात्कार में २७५ में १७८ अंक मिले जो आम तौर पर अच्छा माना जाता है. क्या साक्षात्कारबोर्ड में बैठे मनोवैज्ञानिक सदस्य को भी भनक नहीं लगी कि नैतिक आधार पर यह अभ्यर्थी कैसा है? अगर यह पता करना मनोवैज्ञानिक के लिए भी मुश्किल है तो फिर पिछले तमाम दशकों से साक्षात्कार की चोंचलेबाजी क्यों ?
तमिलनाडु कैडर के इस आई पी एस अधिकारी सफीर ने आई ए एस बनने के लिए फिर इस साल याने २०१७ में यूपीएससी का एग्जाम दिया. वह अक्टूबर ३० को सामान्य ज्ञान का द्वितीय पेपर दे रहा था. आई बी की सब्सिडियरी यूनिट ने सर्विलांस के जरिये पाया कि सफीर ने अपने शर्ट के बटन में एक मिनी कैमरा फिट किया है जो बाहर रखे एक मॉडेम से कनेक्टेड है और जिसके जरिये हैदराबाद में वह अपनी पत्नी के नेत्रित्व वाली एक टीम से प्रश्नों का जवाब हासिल कर रहा था. उसके कान में एक माइक्रोट्रांसमीटर फिट था. गिरफ्तारी के बाद पूछ ताछ में जो बड़ा खुलासा हुआ वह यह कि सफीर भारत के पांच राज्यों कोचिंग सेंटर चलता था और शक है कि वह बड़ी रकम ले कर अभ्यर्थियों को इसी तरह सिविल सर्विस की परीक्षा में पास भी करवाता था. आई बी यह भी जांच कर रही हैं कि केरल निवासी इस अधिकारी के तार और कहाँ कहाँ जुड़े हैं.
यहाँ दो प्रश्न खड़े होते हैं. पहला : देश की सबसे बड़ी ब्यूरोक्रेसी को चुनने वाली प्रक्रिया में नैतिकता को परखने के लिए यह प्रश्न पत्र तमाम समितियों की सिफारिश के बाद सन २०१३ में शुरू किया गया था. लेकिन अगर तोते की तरह रट कर कोई सफीर अधिक नंबर हासिल करता है लेकिन वह एक बड़े गैंग के सरगना के रूप में उभरता है तो क्या हमें नैतिकता मापने के लिए कोई नयी प्रक्रिया शुरू करनी होगी? सफीर अगर पकड़ा न गया होता तो अगले २४ घंटे में फिर से(३१ अक्टूबर को) नैतिकता का पेपर देता और उसमें जो सवाल संख्या ९ आया था वह था : आप एक एक ईमानदार और जिम्मेदार लोकसेवक हैं. आप प्रायः निम्नलिखित को प्रेक्षित करते हैं (अ)एक सामान्य धारणा है कि नैतिक आचरण का पालन करने से स्वयं को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है और परिवार के लिए भी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं , जबकि अनुचित आचरण जीविका लक्ष्यों तक पहुँचने में सहायक हो सकता है ।
इस प्रश्न में तीन अंश और हैं और सबका जवाब मात्र २५० शब्दों में देना हैं. याने उप -प्रश्न अके लिए केवल ६३ शब्द. जरा सोचे यह रटने के अलावा और क्या हो सकता है जो कोचिंग इंस्टिट्यूट में रटाया जता है. इसी पर उस अभ्यर्थी की नैतिकता का फैसला यूं पी एस से करेगा. ऐसे में सफीर पैदा होते हैं तो गलत क्या है? कहना न होगा कि सफीर जो जवाब देता वह उसकी करनी से अलग होता. वह और उसकी पत्नी बड़े जोर शोर से पांच कोचिंग चला रहे थे और जीविका लक्ष्यों के लिए सफीर ने आपराधिककृत्य का सहारा लिया था. इस पेपर का क्या मतलब है जब उम्मीदवार तोते की तरह जवाब रट लेते हैं और अफसर बनने के बाद फिर वह भ्रष्टाचार के उसी मकडजाल में फंसा रहता है जिससे उसकी तथाकथित जीविका लक्ष्यों की सिद्धि होती है याने अच्छी पोस्टिंग , अच्छे कॉन्टेक्ट्स , अच्छा पैसा और कुल मिलकर एक आपराधिक-अनैतिक चक्र जिसमें नेता व अफसर मिल कर इस देश को लूटते रहते हैं. मध्य प्रदेश के आई ए एस दम्पत्ति अरविन्द जोशी और टीनू जोशी भी यूपीएससी में अच्छे रैंक से उत्तीर्ण हुए थे और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन कर जेल में हैं. नीरा यादव का केस आज उत्तर प्रदेश के हर अफसर की जुबान पर है.
कैसी है यह चुनाव प्रक्रिय जिसमें जिन अफसरों को असीमित शक्ति (जनता पर गोली चलने के अधिकार से लेकर लाखों करोड रुपये का विकास फण्ड खर्च करने का अधिकार ) दिया जाता है लेकिन हम आज तक यह व्यवस्था नहीं कर पायें हैं कि उनके नैतिक लब्धि (मारल कोशेंट) का अंदाज़ा नहीं लगा पाये और अंत में यह उम्मीदवार रटे रटाये उत्तर देकर फिर तोते की तरह उसी जाल में फंस जाता है ? सफीर का मामला केवल अनैतिक होने का हीं नहीं है बल्कि आपराधिक भी है. आज जांच एजेंसियां यह देख रही है कि सफीर ने किसी गैंग के सरगना की तरह पैसे लेकर पिछले तीन सालों में कहीं अन्य कई उम्मीदवारों को भी अपनी हीं तरह सवाल के जवाब तो नहीं लिखवाए थे?