आरजेडी पर लालू यादव की ‘बपौती’, लगातार दसवीं बार बनेंगे पार्टी अध्‍यक्ष

राष्‍ट्रीय जनता दल के अध्‍यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू यादव ने दसवीं बार आरजेडी का अध्‍यक्ष बनने के लिए नॉमिनेशन फाइल कर दिया है।

New Delhi Nov 13 : कुछ पार्टियां कुछ नेताओं की जागीर बन चुकी हैं। जिस पर उन्‍हीं की बपौती रहती है। कोई दूसरा नेता उस पार्टी के अध्‍यक्ष पद की ओर देख तक नहीं सकता है। लालू यादव की पार्टी आरजेडी भी इसी कैटेगिरी में आती है। लालू यादव ने फिर से पार्टी का अध्‍यक्ष बनने के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। वो लगातार दसवीं बार आरजेडी के अध्‍यक्ष चुने जाएंगे। लालू यादव का निर्विरोध चुना जाना तय है। लालू यादव ने रविवार को आरजेडी ऑफिस जाकर निर्वाचन अधिकारी और सीनियर लीडर जगदानंद सिंह को अपना नॉमिनेशन सौंपा। 21 नवंबर को आरजेडी के नए अध्‍यक्ष का एलान कर दिया जाएगा। लालू यादव पिछले नौ बार से लगातार पार्टी के अध्‍यक्ष पद पर बने हुए हैं। एक बार भी उनके मुकाबले किसी दूसरे नेता ने अध्‍यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल नहीं किया। आरजेडी में किस तरह का लोकतंत्र होगा। इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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आज ही आप अपनी डायरी में लिखकर रख लीजिए कि जिस दिन लालू यादव आरजेडी के अध्‍यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल नहीं करेंगे उस दिन उनके बेटे तेजस्‍वी यादव का नॉमिनेशन फाइल होगा। 2020 तक ये काम भी पूरा हो जाएगा। यानी आरजेडी की कमान लालू यादव के बाद तेजस्‍वी यादव संभालेंगे। कई बार सोचकर हैरानी होती है कि क्‍या बिहार में आरजेडी में एक भी नेता ऐसा नहीं है कि जिसे लालू यादव पार्टी के अध्‍यक्ष के तौर पर देखते हों। या फिर वो इसलिए ऐसा नहीं करते हैं कि कहीं पार्टी उनके हाथ से निकल जाए। पार्टी पर बपौती बरकरार रहे। आरजेडी का गठन पांच जुलाई 1997 को हुआ था। तब से लेकर आज तक सिर्फ लालू यादव ही इस पार्टी के अध्‍यक्ष और कर्ताधर्ता रहे हैं। ऐसे में आरजेडी को राजनैतिक पार्टी की बजाए अगर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कहेंगे तो भी गलत नहीं होगा। पार्टी के वरिष्‍ठ नेता शिवानंद तिवारी भी कहते हैं कि लालू के खिलाफ कोइ्र नामांकन ही नहीं आया तो क्‍या किया जाए।

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रघुवंश प्रसाद भी यही कहते हैं कि कोई दूसरा नेता अध्‍यक्ष पद के लिए आवेदन देने को तैयार ही नहीं था इसलिए लालू यादव को कंटीन्‍यू करना पड़ा। वैसे आप और हम इसे चापलूसी या भी डर का भी नाम दे सकते हैं कि पार्टी के भीतर कोई भी लालू यादव की मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहता। इसीलिए पार्टी के भीतर लालू यादव और उनके परिवार की तानाशाही को आम सहमति का नाम दे दिया जाता है। ऐसे में अगर लालू यादव या फिर आरजेडी के दूसरे नेताओं से उनके परिवारवाद को लेकर सवाल खड़े कर दिए जाएं तो ये सवाल इन नेताओं को कचोटने लगते हैं। रघुवंश प्रसाद इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि दरअसल, लालू यादव का नाम सुनते ही विरोधियों की देह में बैचेनी होने लगती है। अगर किसी को आरजेडी में अध्‍यक्ष पद के लिए आवेदन करना है तो पहले पार्टी में शामिल हो। पार्टी में मजबूती के साथ खड़ा हो और चुनाव लड़े।

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दरसअल, परिवारवाद की बीमारी सिर्फ लालू यादव या फिर आरजेडी में ही नहीं है। ये बीमारी कई नेताओं और कई पार्टियों में लगी हुई है। समाजवादी पार्टी को ही देख लीजिए। सपा पर पहले मुलायम सिंह यादव का दबदबा रहा अब उनके बेटे अखिलेश यादव का है। कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार का ही वर्चस्‍व रहा है। 1978 से लेकर अब तक सिर्फ एक बार चार साल के लिए पीवी नरसिंहा राव को कांग्रेस पार्टी का अध्‍यक्ष बनाया गया। नहीं तो इस पर पहले इंदिरा गांधी, फिर राहुल गांधी और अब सोनिया गांधी आसीन हैं। अब तैयारी राहुल गांधी की है। 1998 से लेकर अब तक 19 साल हो गए हैं सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्‍यक्ष पद की कुर्सी पर चिपकी हुई हैं। वहीं अगर 1998 से बीजेपी की बात करें तो बीजेपी में नौ चुनाव हो चुके हैं। जिसमें आठ लोगों को पार्टी का अध्‍यक्ष चुना जा चुका है। इस दरम्‍यान राजनाथ सिंह को दो बार बीजेपी का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष चुनाव गया। बाकी हर बार चेहरे बदलते रहे।