इस देश में भ्रष्टाचार पर नेताओं की चिंता लगभग 70 साल पुरानी है

यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि इंदिरा गांधी के शासन काल में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप मिल गया।

New Delhi, Nov 18: यानी भ्रष्टाचार पर बोलना- लिखना कोई फैशन नहीं बल्कि इस गरीब देश के लिए जरूरत है।कुछ शक्तिशाली लोग इस देश के सरकारी खजानों को लूटकर अरबपति बन रहे हैं और दूसरी ओर 20 करोड़ लोग हर शाम भूखा सो जाते हैं।यह संख्या अधिक भी हो सकती है।शुरूआत महात्मा गांधी की चिंता से की जाए।1 – महात्मा गांधी ने कहा था कि करप्शन को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए।’— दरअसल गांधी जी ने 1937-39 में राज्यों में और 1946 से राष्ट्रीय स्तर पर सरकारों को काम करते देखा तो उन्हें निराशा हुई।उन्होंने केंद्र से तो एक मंत्री को हटवा भी दिया था,पर वे बिहार में विफल रहे।2.- सत्ता संभालने के बाद प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ‘जमाखोरों,मनाफाखोरों और काला बाजारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका देना चाहिए।’

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लगता है कि यह उनके शुरूआती उत्साह के दौर की बात है।पर जब उन्होंने देखा कि समझौता किए बिना सरकार चलाना मुश्किल होगा तो उन्होंने वैसा ही कर लिया।प्रताप सिंह कैरो और वी.के. कृष्ण मेनन प्रकरण प्रमुख उदाहरण हैं।जांच आयोग ने पंजाब के मुख्य मंत्री प्रताप कैरो को भ्रष्टाचार का देाषी माना ।इसके बावजूद नेहरू ने उन्हें मुख्य मंत्री पद से नहीं हटाया।पर लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधान मंत्री बनते ही यह काम कर दिया।नेहरू की दूसरी कमजोरी जीप घोटाले के नायक वी.के.कृष्ण मेनन थे ।उन्हें प्रमोशन देकर रक्षा मंत्री बना दिया गया।3. – इंदिरा गांधी ने कोई ढांेग नहीं किया।उन्होंने कहा कि करप्शन सिर्फ भारत में ही नहीं है बल्कि यह वल्र्ड फेनोमेना है।’ जेपी ने जब उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तो इंदिरा जी ने यह कह कर पलटवार किया कि पूंजीपतियों के पैसे लेने वाले को करप्शन के खिलाफ आंदोलन करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि इंदिरा गांधी के शासन काल में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप मिल गया।

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मन मोहन सिंह ने सन 1998 में कहा कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’वे ठीक कह रहे थे।क्योंकि तब वे राज्य सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।दरअसल प्रतिपक्ष में रहने पर नेताओं की तीसरी आंख खुल जाती है।पर सत्ता मिलते ही वह बंद हो जाती है। याद रहे कि 1998 से पहले मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे और बाद में प्रधान मंत्री। 1988 में समाजवादी नेता मधु लिमये ने कहा था कि ‘मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं।’मधु लिमये कभी सत्ता में नहीं रहे,इसलिए उन पर क्या कहा जाए ! वह ईमानदारी से अपनी बात कह रहे थे।पर एक सवाल जरूर है।मुलायम सिंह उनके पास अक्सर विचार-विमर्श करने जाते थे।मधु जी ने उन्हें क्या सिखाया ?6. – 2008 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल और न्यायमूत्र्ति जी.एस.सिंघवी ने कहा कि ‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।

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दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूत्र्ति एस.एन.धींगरा ने 2007 में कहा कि भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यह कह कर न्यायमूत्र्ति धींगरा ने उन लोगों के इस विचार को बल प्रदान किया कि भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए। इस देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे. एम. लिंगदोह ने 2003 में कहा कि ‘राजनेता कैंसर हैं जिनका इलाज अब संभव नहीं।’लिंगदोह चुनाव आयोग में काम करते हुए विभिन्न दलों के नेताओं के रुख -रवैये को देखकर इस नतीजे पर पहुंचे थे। याद रहे कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी अपने चंदे का पूरा हिसाब देने को आज भी तैयार नहीं हैं।भाजपा और कांग्रेस की बात कौन कहे ! क्यों भाई ? 9 – केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव एन.सी.सक्सेना ने 1998 में कहा था कि करप्शन में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।’ इस स्थिति को उलट देने के लिए सख्त कानून और उससे अधिक कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।क्या इसका प्रबंध हो रहा है ?हो रहा है तो कितना और कब तक ?