अयोध्‍या विवाद में ‘मुस्लिम पेंच’ के चलते नहीं हो सकता आपसी समझौता ?

अयोध्‍या विवाद को सुलझाने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन, ये केस अदालत के बाहर सुलझने वाला नहीं है। जानिए क्‍या है सबसे बड़ा पेंच।

New Delhi Nov 21 : इन दिनों अयोध्‍या विवाद को आपसी समझौते से सुलझाने की कवायद चल रही है। लेकिन, ये विवाद इतनी आसानी से सुलझने वाला नहीं है। कई ऐसे पेंच हैं जो अयोध्‍या विवाद में समझौते की राह में रोड़ा बने हुए हैं। सिर्फ श्रीश्री रविशंकर के चाहने से या फिर यूपी शिया सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड के अध्‍यक्ष वसीम रिजवी के चाहने से ये केस नहीं सुलझ सकता है। इस वक्‍त श्रीश्री रविशंकर और वसीम रिजवी दोनों ही इस मुद्दे को आपसी सहमति से सुलझाने में जुटे हुए हैं। वो लगातार हर पक्ष से बात कर रहे हैं। लेकिन, सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड इस पक्ष में नहीं है कि अयोध्‍या विवाद को अदालत के बाहर सुलझाया जाए। सुलह की इस डगर में वक्‍फ बोर्ड के कई कानूनी रोड़े हैं। जो इस काम को पूरा ही नहीं होने दे सकते हैं। दरसअल, वक्‍फ बोर्ड का एक्‍ट ही इस बात की इजाजत नहीं देता है कि उसकी जमीन के मूल स्‍वरूप के साथ किसी तरह की कोई छेड़छाढ़ की जाए।

Advertisement

वक्‍फ बोर्ड के अंतगर्त मस्जिद, कब्रिस्‍तान, इमामबाड़ा, दरगाह, ईदगाह, मकबरे और खानकाह की जमीनें आती हैं। वक्‍फ बोर्ड का एक्‍ट 2013 का सेक्‍शन 29 ये कहता है कि वक्‍फ बोर्ड की किसी भी जमीन को ना तो बेचा जा सकता है और ना ही उसे किसी दूसरे के नाम पर ट्रांसफर किया जा सकता है। इतना ही नहीं ये सेक्‍शन वक्‍फ बोर्ड की जमीन को गिरवी रखने या फिर किसी को गिफ्ट करने की भी परमीशन नहीं देता है। यानी इस एक्‍ट में साफ तौर पर लिखा है कि वक्‍फ बोर्ड की जमीन के मूल स्‍वरूप को किसी भी कीमत पर बदला नहीं जा सकता है। अगर इस एक्‍ट के खिलाफ जाकर कोई फैसला लिया भी जाता है कि उसे अवैध माना जाएगा। यानी अगर मुस्लिम पक्षकार चाहें कि वो अयोध्‍या विवाद पर अदालत के बाहर समझौता कर लें तो भी वो इस एक्‍ट के तहत ऐसा नहीं कर सकते हैं। क्‍योंकि उनके पास इस संबंध में कोई कानूनी अधिकार ही नहीं है।

Advertisement

वैसे भी जहां एक ओर यूपी वक्‍फ बोर्ड चाहता है कि अयोध्‍या विवाद का हल आपसी सहमति से निकाला जाए वहीं दूसरी ओर सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड इसके खिलाफ में है। वो श्रीश्री रविशंकर की बातचीत की पहल को भी ठुकरा चुका है। सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि श्रीश्री रविशंकर के पास अयोध्‍या विवाद को सुलझाने के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं है। उनकी कवायद किसी काम की नहीं है। वो सिर्फ अपना वक्‍त बरबाद कर रहे हैं। यहां पर ये भी जानना बेहद जरूरी है कि अयोध्‍या विवाद सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड ही बाबरी मस्जिद की ओर से अदालत में पैरवी कर रहा है। हालांकि इस संबंध में शिया वक्‍फ बोर्ड भी अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये कह चुका है कि बाबरी मस्जिद पर सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड नहीं बल्कि उनका हक है। इससे पहले 1940 में भी शिया वक्‍फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर अपना दावा ठोंका था।

Advertisement

हालांकि आजादी से पहले यानी 1946 में जिला अदालत ने शिया वक्‍फ बोर्ड के दावों को खारिज करते हुए सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड पर मुहर लगाई थी। इसके बाद अब फिर शिया वक्‍फ बोर्ड इस केस में सक्रिय हुआ है। उस वक्‍त सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड ने ये तर्क दिया था कि मस्जिद का मुतवल्‍ली और इमाम सुन्‍नी हैं। रमजान के महीने में यहां पर तरावी भी होती थी। तब अदालत ने सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड के दावों को मजबूत माना था। आज यही सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड नहीं चाहता है कि अयोध्‍या विवाद पर आउट आफ कोर्ट सेटेलमेंट हो। वहीं उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ भी कह चुके हैं कि श्रीश्री रविशंकर ने समझौते की पहल में काफी देर कर दी है। अब ये मामला अदालत के बाहर सुलझने वाला नहीं है। वैसे भी पांच दिसंबर से इस केस में सुप्रीम कोर्ट के भीतर नियमित सुनवाई होगी। ऐसे में अदालत के बाहर सुलह की कोशिशों को अदालत के काम में बाधा पहुंचाने वाला भी माना जा सकता है।