मुस्लिम बहनों को मोदी का तोहफा, ट्रिपल तलाक के खिलाफ बनेगा कानून

देश से ट्रिपल तलाक की कुरीति को खत्‍म करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार इस शीतकालीन सत्र में बिल पेश कर सकती है। जानिए पूरा मामला।

New Delhi Nov 21 : देश 21 वीं सदी में जी रहा है। लेकिन, फिर भी मुस्लिम समुदाय बरसों पुरानी कुरीति को ढो रहा है। मुस्लिम महिलाओं को हर वक्‍त इस बात का डर बना रहता है कि पता नहीं कब उनके शौहर उन्‍हें ट्रिपल तलाक ना दे दें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दे चुकी है। लेकिन, फिर भी मोदी सरकार चाहती है कि इस कुरीति को जड़ से खत्‍म कर दिया जाए। जानकारी के मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार इसी शीत कालीन सत्र में ट्रिपल तलाक के खिलाफ बिल पेश कर सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार इस मामले पर पुराने कानून में संशोधन या फिर नए कानून को लाने पर विचार कर रही है। जिसके तहत ट्रिपल तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा। इतना ही नहीं सरकार की ओर से इस मसले पर कानून बनाने के लिए मिनिस्ट्रियल कमेटी का गठन भी कर दिया गया है।

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इस मामले को लेकर मुस्लिम महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में भी बड़ी लडाई लडी थी। अभी 22 अगस्‍त को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया था। जिसमें अदालत ने ट्रिपल तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और गैरकानूनी बताया था। हालांकि सरकार ने महिलाओं के संरक्षण के लिए कई कानून बनाए हैं। लेकिन, देश में मैरिज एक्‍ट भी बना हुआ है लेकिन, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे नहीं मानता है। देश में महिलाएं स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 के तहत अपना हक मांग सकती है। आईपीसी की धारा-125 के तहत मेंटेनेंस, सिविल सूइट और मुस्लिम मैरिज एक्ट के ऑप्शन भी हैं। इस तरह के मामलों में घरेलू हिंसा के तहत भी कार्रवाई मु‍मकिन है। लेकिन, सालों से मुस्लिम महिलाओं को शरीयत के नाम पर दबाया जाता रहा। लेकिन, मोदी सरकार ने इस मामले में हिम्‍मत दिखाते हुए साबित कर दिया कि वो इस कुरीति को बदल सकती है।

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मौजूदा वक्‍त में अभी अगर कोई महिला ट्रिपल तलाक की पीडित होती है तो उसे पुलिस के पास शिकायत लेकर जाना होता है। लेकिन, कई मामलों में पुलिस आरोपी पति के खिलाफ कार्रवाई ही नहीं करती। इससे परेशान महिलाओं ने अदालत में गुहार लगाई थी। जिस पर मोदी सरकार ने भी अपना रुख स्‍पष्‍ट कर दिया था और कह दिया था कि वो भी ट्रिपल तलाक के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सरकार को निर्देश दिया था कि वो इस मामले में छह महीने के भीतर कानून लेकर आए। अगस्त महीने में 5 जजों की बेंच ने 3:2 की मेजॉरिटी से अपना फैसला सुनाया था। अपने इसी फैसले में अदालत ने कहा था कि तीन तलाक की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत शून्य, असंवैधानिक और गैरकानूनी है। इसी बेंच में शामिल दो जजों ने कहा था कि केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक पर छह महीने में कानून बनाए।

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इस मसले पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि भले ही दो जजों ने कानून बनाने की राय दी है, लेकिन बेंच के मेजॉरिटी जजमेंट में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। इसके लिए कानून बनाने की जरूरत नहीं है। दरअसल, तलाक-ए-बिद्दत यानी ट्रिपल तलाक हनफी पंथ को मानने वाले सुन्नी मुस्लिमों के पर्सनल लॉ का हिस्सा है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ये कहता था कि उसके कानून में किसी भी सरकार और अदालत का दखल नहीं हो सकता है। लेकिन, बाद में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी लाइन पर आ गया था और उसका कहना था कि वो इस मामले में मौलवियों को कहेंगे कि निकाहनामा में ही ये दर्ज किया जाए कि शौहर ट्रिपल तलाक नहीं देगा। जाहिर है अगर तीन तलाक पर कानून बन जाता है तो इससे व्‍हाट्सअप, एसएमएस, फोन और चिट्ठी पर तलाक देने की प्रथा पर रोक लगेगी। जिससे लाखों करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को राहत मिलेगी।