नरेंद्र मोदी पर ये हमला राहुल गांधी को भारी पड़ेगा

राहुल गांधी ने हाफिज सईद की रिहाई पर नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है, शायद वो भूल गए कि आतंकवाद के मुद्दे पर यूपीए सरकार किस तरह से फेल हुई थी।

New Delhi, Nov 26: देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी के अगले मुखिया राहुल गांधी है, ये बात 1998 से ही सबको पता है, सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उनके बाद राहुल का ही नंबर है। इसको लेकर किसी के मन में कोई शक नहीं था. अब तो कांग्रेस ने भी इस बात का एलान कर दिया है कि राहुल की ताजपशी होने में कुछ ही दिनों का समय बाकी है। ऐसे में राहुल की सियासत के बारे में समझना जरूरी है, वो किस तरह की सियासत कर रहे हैं। क्या उस से कांग्रेस की समस्याएं खत्म होंगी। सोनिया ने जिस तरह से कांग्रेस और बाकी दलों को एक साथ मिलाकर रखा था क्या राहुल वैसा करने में सफल होंगे। सबसे बड़ी बात क्या राहुल नरेंद्र मोदी को टक्कर देने में सफल होंगे।

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अपनी सियासत के एख लंबे दौर में राहुल के ऊपर पप्पू का टैग लगा हुआ था। वो इस तरह के बयान देते थे, जिनसे जनता हंसती थी। आलम ये था कि राहुल को बीजेपी का स्टार कैंपेनर कहा जाने लगा था। मतलब वो जहां जहां प्रचार करते थे वहां बीजेपी जीत जाती थी। बहरहाल अब राहुल बदले बदले से लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि अब राहुल परिपक्व हो गए हैं, वो सियासत को समझ गए हैं। लेकिन क्या वाकई में ऐसा है, राहुल मोदी पर जिस तरह से तंज कस रहे हैं वो भी आतंकवाद और आतंकवादियों को लेकर उस से तो यही लग रहा है कि अभी भी वो ये समझ नहीं पाए हैं कि इसतरह के हमलों से नुकसान कांग्रेस का ही होना है। हाफिज सईद का मसला ही ले लेते हैं। पाकिस्तान ने हाफिज सईद को नजरबंद से रिहा कर दिया है। इस पर राहुल ने नरेंद्र मोदी पर तंज कसा है।

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राहुल ने ट्वीटर पर लिखा है कि नरेंद्र भाई बात नहीं बनी, ट्रम्प से और गले मिलने की जरूरत है। इस ट्वीट के जरिए राहुल ने सीधे तौर पर ये कहा है कि आतंकियों के खिलाफ एक्शन के लिए मोदी को ट्रम्प की कृपा की जरूरत है। अमेरिका की मदद के बिना भारत कुछ नहीं कर सकता है। क्या राहुल को वाकई लगता है कि इस तरह के अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर इतना हल्का तंज करके उन्हे जनता का समर्थन मिलेगा। हाफिज सईद मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है। उसे गिरफ्तार करके भारत लाना हर भारतीय का सपना है। नरेंद्र मोदी सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है। प्रयास तो यूपीए सरकार भी कर रही थी। लेकिन उसके प्रयासों का नतीजा क्या था ये किसी से छिपा नहीं है। भारत की कूटनीति को राहुल ने फेल बताया है।

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राहुल गांधी मोदी सरकार के दौरान भारत की कूटनीतिक ताकत में बढ़ोतरी को शायद देख नहीं पा रहे हैं, वो उसे परख नहीं पा रहे हैं। इसका कारण ये भी हो सकता है कि उनको अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शायद समझ नहीं है। विदेश में फंसे भारतीयों को बचाने का मुद्दा हो या फिर हाल ही में आईसीजे में भारतीय जज की नियुक्ति का मामला हो, कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर भी पाकिस्तान को भारत के दबाव के कारण ही पैर पीछे खींचने पड़े थे। ये चंद उदाहरण हैं जिस से पता चल रहा है कि भारत की कूटनीति कितनी कारगर साबित हो रही है। डोकलाम तो राहुल भूल ही गए हैं। ऐसे मेें गंभीर मुद्दों पर राहुल का हल्का तंज कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। उनको समझना होगा कि कुछ मुद्दों पर देश को पहले रखना चाहिए। पीएम पद की गरिमा की बात करने वाले राहुल से इस तरह के हमलों की उम्मीद नहीं की जा सकती है।