अचानक से राहुल गांधी की हवा थम कैसे गई, एक महीने में नया अवतार फुस्स

गुजरात में राहुल गांधी को कांग्रेस ने नए अंदाज में पेश किया, लेकिन उनका वो अंदाज और तेवर एक महीने में ही फुस्स होते दिख रहे हैं। मैदान में मोदी आ चुके हैं।

New Delhi, Nov 28: कांग्रेस बड़े फैसले लेने से पहले काफी विचार करती है, कहीं कोई फैसला पार्टी को नुकसान ना पहुंचा दे। पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर ही कांग्रेस ने कितना समय ले लिया है। सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनना था, लेकिन इसका ऐलान करने में इतना समय लगा दिया। क्या कारण था कि राहुल की ताजपोशी में इतना समय लिया गया और क्या कारण था कि गुजरात चुनाव के माहौल में ही राहुल को अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके जवाब में दो बातों पर गौर करना होगा, पहली बात तो ये है कि कांग्रेस को ये समझना होगा कि राहुल के जिस नए अवतार की बात वो कर रही है वो असरदार कुछ समय के लिए ही था।

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गुजरात में राहुल के बदले हुए तेवरों को लेकर काफी चर्चा हुई, कहा गया कि राहुल अब नए अंदाज में राजनीति कर रहे हैं। उनके भाषणों में धार दिखाई दे रही है। वो सोशल मीडिया फ्रेंडली हो रहे हैं, मुद्दों को उठा रहे हैं। मोदी पर व्यक्तिगत हमला नहीं कर रहे हैं। ये सारी बातें कांग्रेसी बड़े जोर शोर से प्रचारित कर रहे हैं। तो वहीं सवाल इस बात को लेकर भी खड़े हो रहे हैं कि राहुल में इतना बदलाव कैसे आ गया, इंसान पूरी तरह से बदल जाए ऐसा कैसे हो सकता है। बहरहाल कारण कुच भी हो लेकिन राहुल का बदलाव नैसर्गिक नहीं लग रहा था।  ऐसे लग रहा था जैसे राहुल की हवा बनाई जा रही हो, जबरन उनका कद बड़ा किया जा रहा था। अब गुजरात चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में राहुल की वो हवा अचानक से गायब दिख रही है।

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सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया में राहुल को लेकर चर्चा हो रही थी, अचानक से वो बदल गई है, इसका एक कारण ये हो सकता है कि अब प्रचार में पीएम नरेंद्र मोदी कूद पड़े हैं, भले ही राहुल की हवा बनाने की कोशिश की गई हो लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि मौजूदा दौर में मोदी से बड़ा ब्रांड राजनीति में कोई नहीं है। अभी तक गुजरात में राहुल गांधी का सामना किसी बड़े नेता से नहीं हो रहा था। हालांकि इस पर बीजेपी का तर्क ये हो सकता है कि राहुल से निपटने के लिए किसी बड़े नेता की जरूरत ही नहीं है। अब प्रचार में मोदी खुद उतर चुके हैं. गुजरात में उनकी पहली ही चुनावी रैली से साफ हो गया कि कांग्रेस का गुब्बारा फूट चुका है। राहुल के नए कलेवर और अंदाज की बातें अब कोई नहीं कर रहा है।

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आखिरकार राहुल भी पुराने तौर तरीकों पर ही लौट आए हैं। गुजरात का चुनाव कई मायनों में उत्तर प्रदेश चुनाव की तरह लग रहा है। पहले अपने दम पर आक्रामक प्रचार और चुनाव नजदीक आने के समय गठबंधन और जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश, यूपी में ऐसा ही हुआ था और गुजरात में भी कांग्रेस लगभग उसी रणनीति पर काम कर रही है। अगर ऐसा है तो यूपी चुनाव के नतीजों पर भी गौर करना होगा। गुजरात में राहुल गांधी ने खाली मैदान में खूब सियासी चौके छक्के लगाए लेकिन अब उनके सामने नरेंद्र मोदी के रूप में पहाड़ खड़ा है। यही कारण है कि सारी हवा और चर्चा का केंद्र अचानक से मोदी बन गए हैं। इस बात पर चर्चा हो रही है कि मोदी के प्रचार में उतरने से कांग्रेस को कितना नुकसान होगा।