उत्तर कोरिया मुद्दे पर अमेरिका की जिम्मेदारी ज्यादा है

ट्रम्प कुछ हद तक कामयाब भी रहे थे जब रूस और चीन जैसे उत्तर कोरिया समर्थक देशों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों पर मुहर लगा दी थी।

New Delhi, Dec 04: उत्तर कोरिया अब अमेरिका के लिए गले की हड्डी बन गया है। एक तरफ अमेरिका उसकी गर्दन में एक के बाद एक प्रतिबंध और दबाव के फंदे डाल रहा है। वहीं उ. कोरिया ताबड़तोड़ परमाणु परीक्षण करता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों और अमेरिकी चेतावनियों के बावजूद यह उसका छठा परीक्षण है। लेकिन अमेरिका न तो उत्तर कोरिया की हरकतों की अनदेखी कर पा रहा है, न उसे सबक सिखा पा रहा है। यानी न उगलते बन रहा है, न निगलते बल्कि, वर्षो से जारी इस शीत युद्ध में अमेरिका लगातार फंसता जा रहा है।29 नवम्बर को तमाम आर्थिक प्रतिबंधों को धता बताते हुए उ.कोरिया ने एक और मिसाइल का परीक्षण कर डाला। इससे पहले सितम्बर में भी उसने मिसाइल और हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था। लेकिन ताजा परीक्षण ने साबित कर दिया है कि उ.कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन पर किसी भी तरह के दबाव का कोई असर नहीं है। उसने यह परीक्षण ऐसे समय में किया है, जब अमेरिका और दक्षिण कोरिया संयुक्त सैनिक अभ्यास करने वाले हैं। प्योंगयांग की ढिठाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किम जोंग ने इस परीक्षण के बाद उ.कोरिया को पूर्ण परमाणु संपन्न देश घोषित कर दिया है। यही नहीं, उसने विश्व समुदाय के दबाव, खास कर अमेरिका की खिल्ली उड़ाते हुए कहा है कि उसकी यह मिसाइल वाशिंगटन और न्यूयॉर्क समेत अमेरिकी धरती पर कहीं भी पहुंचने में सक्षम है।

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इससे पहले सितम्बर में ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र से प्योंगयांग पर तीन बार संशोधित प्रतिबंध लगवाने के साथ ही उसे विश्व में अलग-थलग करने के लिए मैराथन कूटनीतिक प्रयास किए थे। तब ट्रम्प कुछ हद तक कामयाब भी रहे थे जब रूस और चीन जैसे उत्तर कोरिया समर्थक देशों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों पर मुहर लगा दी थी। लेकिन उ.कोरिया के ताजा परीक्षण के बाद अमेरिकी प्रयासों को शुरु आत में ही झटका लग गया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उ.कोरिया के साथ राजनीतिक और व्यापारिक रिश्ते तोड़ कर उसे अलग-थलग करने का अमेरिकी आग्रह धड़ाम हो गया है। रूस ने अमेरिका के प्रस्ताव को नकारात्मक बताते हुए सारे विवाद के लिए उसे ही जिम्मेदार बता डाला है। उसके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि अमेरिका ही उत्तर कोरिया को उकसा रहा है और उसे नष्ट करने के लिए बहाना ढूंढ़ रहा है। यानी अगर युद्ध होता है तो रूस इसके लिए अमेरिका को सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराएगा। ऐसे में कई दूसरे देश भी रूस के साथ खड़े हो जाएंगे। रूस ने ढेर सारे प्रतिबंधों के बजाय ऐसे प्रस्ताव की वकालत की है जिसमें प्रतिबंधों के साथ बातचीत की भी गुंजाइश हो।

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रूस के ताजा रुख से अब चीन के लिए भी उत्तर कोरिया के साथ खुलकर खड़े होने का रास्ता साफ हो गया है। यानी स्थिति यह हो गई है कि जो उ.कोरिया अब तक अकेला था, उसे अमेरिकी विरोध ने कई ऐसे मुखर साथी दे दिए हैं, जो अब तक पर्दे के पीछे से उसकी मदद कर रहे थे। चीन ने भी अमेरिका के उस आग्रह पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया है, जिसमें अमेरिका ने बीजिंग से कहा था कि वह प्योंगयांग को तेल आपूत्ति रोक दे। बल्कि चीन ने जिस तरह इसका जवाब दिया कि वह ऐसे मसलों पर जिम्मेदारी और तटस्थता के साथ फैसले लेता है। उसका संदेश साफ है कि वह उ. कोरिया के खिलाफ किसी आक्रामक अमेरिकी नीति का समर्थन नहीं करेगा। खास कर, ऐसे मामले, जिनमें उसके हित सीधे-सीधे प्रभावित होते हों। यहां यह उल्लेखनीय है कि उ.कोरिया को परमाणु तकनीक या संसाधन मुहैया कराने के लिए पाकिस्तान के साथ चीन पर भी आरोप लगते रहे हैं। समस्या यह है कि रूस और चीन का समर्थन हासिल किए बगैर अमेरिका के लिए कोई बड़ा फैसला लेना मुश्किल है तो दो ही रास्ते बचते हैं-एक, अमेरिका अपने प्रस्ताव में रूस और चीन के अनुसार बदलाव करे जो ट्रम्प के लिए बैकफुट पर जाने जैसा होगा, शायद यह अमेरिका को मंजूर न हो। दूसरा विकल्प है-युद्ध।

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क्या अमेरिका के लिए उ.कोरिया पर हमला करना आसान होगा? अफगानिस्तान से लेकर इराक तक अपनी युद्ध नीति के लिए आलोचना झेलने वाले अमेरिका के लिए निश्चित रूप से इसके लिए विश्व स्तर पर समर्थन जुटाना मुश्किल काम है। खासकर तब, जब कई देश अमेरिकी आक्रामकता के विरोधी हों और कई देश चीन और रूस के पीछे खड़े हों। उ.कोरिया की स्थिति अफगानिस्तान या इराक जैसी नहीं है। युद्ध छिड़ा तो बहुत दूर तलक जाएगा। इसीलिए पिछले कई महीनों से जारी तीखी जबानी लड़ाई और हमले की चेतावनियों के बावजूद ट्रम्प ने उ.कोरियाको पीछे ढकेलने के लिए कूटनीतिक प्रयासों पर ही भरोसा किया है। यहां तक कि डराने वाले उ.कोरिया के मिसाइल परीक्षण के बाद भी अमेरिका उ.कोरिया को परमाणुविहीन बनाने के लिए युद्ध की चेतावनियों के बीच कूटनीतिक दबाव बनाने की अपनी नीति पर ही निर्भर दिख रहा है। हालत यह है कि दोनों देश युद्ध से पहले युद्ध जीतने या युद्ध से पहले युद्ध हारने जैसा उदाहरण बन गए हैं। अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के आंखें दिखाते रहने के बावजूद उ.कोरिया ने न सिर्फ परमाणु ताकत हासिल कर ली, बल्कि अब अमेरिका को तबाह करने की क्षमता हासिल कर लेने का दावा भी कर रहा है। और यह पहली बार है कि परमाणु विशेषज्ञ प्योंगयांग के दावों को बेहद गंभीर और खतरनाक मान रहे हैं।

अब तक ये विशेषज्ञ उ.कोरिया दावों को बढ़ा-चढ़ा कर किया गया ऐलान मानते रहे हैं। लेकिन अब इन विशेषज्ञों ने भी कहा है कि उ.कोरिया की ताजा मिसाइल ह्वांगहो-15 बेहद खतरनाक है। कैलिफोर्निया के सेंटर फॉर नॉन प्रॉलिफिरेशन स्टडीज का दावा है कि दुनिया के कुछ ही देशों के पास ऐसी मिसाइल बनाने की क्षमता है। ऐसा परमाणु परीक्षण को मापने वाले यंत्रों की जांच के बाद कहा गया है। उ.कोरिया की यह इंटर कान्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल पूरी तरह स्वनिर्मिंत है और इसकी क्षमता, परमाणु-5 क्लब यानी परमाणु संपन्न पांच देशों के अलावा, अब तक किसी के पास नहीं है। 13,000 किलोमीटर तक मार करने वाली यह मिसाइल अत्यधिक भार वाले परमाणु हथियार ले जा सकती है। अमेरिका के सामने इन हालात से निपटने की बड़ी चुनौती है। कुछ इस तरह कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे क्योंकि अगर उ.कोरिया से राजनीतिक और व्यापारिक संबंध तोड़ने के उसके प्रस्ताव को विश्व बिरादरी समर्थन नहीं देती है, तो यह भी उसके लिए हार जैसा ही होगा। ऐसे में उसके लिए जरूरी है कि वह एक ऐसे जिम्मेदार देश की तरह व्यवहार करे जिससे विश्व शांति और परमाणु अप्रसार में उसकी भूमिका को सराहा जाए। इसके लिए अमेरिका को खुद जिम्मेदार बनकर सामने आना होगा। युद्ध को हवा देकर कोई भी देश खुद को जिम्मेदार नहीं बता सकता। मौजूदा हालात में ट्रम्प के लिए यह बहुत मुश्किल काम है। मगर हालात कुछ ऐसे हैं कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति पर ही युद्ध टालने की जिम्मेदारी आन पड़ी है।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)