नतीजों से पहले राहुल गांधी को सलाह, ना हो पाए तो छोड़ देना

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गुजरात और हिमाचल के नतीजों से पहले एक सलाह है, अगर उनसे ना हो पाए तो उन्हे छोड़ देना चाहिए, इस से पार्टी का भला होगा।

New Delhi, Dec 18: गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आज आने वाले हैं, इसी के साथ बीजेपी और कांग्रेस के दावों की सच्चाई भी पता चल जाएगी. केवल गुजरात ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के नतीजे भी आज ही आएंगे, इन नतीजों से कई नेताओं के भविष्य का अंदाजा हो जाएगा, इनमें दो नाम प्रमुख हैं, पहला नाम है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का तो दूसरा नाम है पीएम नरेंद्र मोदी का। मोदी से ज्यादा राहुल का भविष्य दांव पर लगा है। मोदी ने सियासत में अपनी महारत एक नहीं कई मौकों पर साबित की है। सवाल ये है कि अगर गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं आई तो राहुल का भविष्य क्या होगा। कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके राहुल के लिए इन दोनों राज्यों से बुरी खबर उनके भविष्य पर कुछ देर के लिए स्टॉप का चिन्ह तो लगा ही देगी।

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दोनों राज्यों को लेकर जितने भी एग्जिट पोल आए हैं सभी में बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है। अगर एग्जिट पोल्स के नतीजे हकीकत में बदल गए तो राहुल गांधी के मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी, कांग्रेस जो फिलहाल जश्न के मूड में है उसका समीकरण बदल जाएगा. राष्ट्रीय राजनीति में राहुल का कद बढ़ने के बजाय कम हो जाएगा। साथ ही क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में कांग्रेस को उनकी शर्तों को मानना होगा। गुजरात में राहुल ने काम तो काफी किया लेकिन इतना नहीं कि वो बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर सकें। शायद राहुल गुजरात चुनाव को 2019 से पहले प्रैक्टिस के तौर पर देख रहे हैं। यहां पर उनका प्रदर्शन कैसा रहता है इसका आंकलन करने के बाद वो 2019 के लिए रणनीति तैयार करेंगे।

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राजनीति में प्रैक्टिस चुनावों में नहीं की जाती है, ये राहुल गांधी को समझना होगा, रिहर्सल के लिए उनके पास बहुत समय है, वो अपनी पार्टी के संगठन को मजबूत करें, कार्यकर्ताओं का भरोसा जीतें, मतदाताओं तक साफ और स्पष्ट संदेश पहुंचाएं, बिना किसी लाग लपेट के वो अपनी बात कहें, वो मुद्दे उठाएं जिनका समाधान वो दे सकते हैं। गुजरात में आरक्षण का मुद्दा उन्होंने गलत उठा लिया है। इसी तरह से जातिगत समीकरणों को साधने के बजाय एक व्यापक वोट बैंक तैयार करें, जैसा बीजेपी कर रही है। जातियों की राजनीति को तोड़कर बीजेपी हिंदुत्व की विचारधारा को उठा रही है। अगर ये सब करने में राहुल नाकाम होते हैं तो ये मान लेना चाहिए कि वो कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं संभाल पा रहे हैं।

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इसी के साथ जुड़ी है ये सलाह, जैसा कि पिछले कई सालों से देखा जा रहा है कि सोनिया गांधी के बाद राहुल पार्टी में दूसरे नंबर के नेता हैं। महासचिव रहते हुए भी वो पार्टी के फैसलों में दखल देते थे। उपाध्यक्ष बनने के बाद तो वो एक तरह से पार्टी ही चला रहे थे। इस दौरान कांग्रेस को कई चुनावों में हार का सामना करना पड़ा, तो ऐसे में अगर राहुल आगे भी नाकाम रहते हैं तो उनको ये मान लेना चाहिए कि उनसे ना हो पाएगा, ऐसे में किसी और नेता के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ देना ही उनके लिए उचित होगा। इस से कांग्रेस का ही भला होगा, जनता तक संदेश जाएगा कि एक नेता नतीजे नहीं दे पाया तो उस ने अपना पद छोड़ दिया। उसके बाद भी राहुल पार्टी के फैसले लेते हेंगे, लेकिन चेहरा कोई और होगा।