काला धन का सबसे बड़ा डॉन- इलेक्टोरल बांड

अपराधी जो चाहे किसी भी दल को लूट का माल आंख मूंद कर दे सकता है। उसे सिर्फ इलेक्टोरल बांड ख़रीदना होगा। कुछ दलों ने इसका विरोध किया है।

New Delhi, Jan 06: राजनीतिक दल पहले भी करप्शन का पैसा पार्क करने या जमा करने का अड्डा थे, एक नए कानून के बाद अगर आपके पास काला धन है तो चुपचाप किसी दल के खजाने में जमा कर दीजिए। बोझ हल्का हो जाएगा। इसके लिए आपको बस स्टेट बैंक आफ इंडिया की 52 शाखाओं से 1000, 10,000, 1,00000, 1,0000000 का इलेक्टोरल बांड ख़रीदना होगा। आपके ख़रीदते ही आपका काला धन गुप्त हो जाएगा। अब कोई नहीं जान सकेगा। बैंक आपसे नहीं पूछेगा कि आप किस पैसे से बांड ख़रीद रहे हैं और इतना बांड क्यों ख़रीद रहे हैं। आप उस बांड के ज़रिए किसी पार्टी को चंदा दे देंगे और पार्टी उस बांड को बैंक से भंजा लेगी। वित्त मंत्रालय ने पिछले हफ्ते इस योजना की घोषणा की है। बताया है कि व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह, एनजीओ, धार्मिक और अन्य ट्रस्ट हिन्दू अविभाजित परिवार और कानून के द्वारा मान्य सभी इकाइयां बिना अपनी पहचान ज़ाहिर किए चंदा दे सकती हैं।

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इस कानून के बाद 20,000 से ऊपर चंदा देने पर नाम बताने के कानून का क्या होगा? उसके रहते सरकार कोई नियम कैसे बना सकती है कि आप बांड ख़रीद लेंगे तो 1 लाख या 1 करोड़ तक के चंदा देने पर किसी को न नाम न सोर्स बताने की ज़रूरत होगी। खेल समझ आया? हंसी आ रही है, भारत की नियति यही है। जो सबसे भ्रष्ट है वह भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने का आश्वासन देता है और हम आश्वस्त हो जाते हैं। चुनाव आयोग ने कुछ हल्ला किया है? क्या आपको पता है कि एन जी ओ, धार्मिक ट्रस्ट या किसी व्यक्ति को अपना सालाना रिटर्न पब्लिक में ज़ाहिर नहीं करना पड़ता है। सरकार के पास जमा होता है और वो आप नहीं जान सकते। तो ये एन जी ओ किसको चंदा देंगे पता नहीं। कंपनियों को अपना हिसाब किताब सार्वजनिक करना होता है मगर स्क्रोल डॉट इन पर नितिन सेठी ने लिखा है कि उन्हें ये नहीं बताना पड़ेगा कि साल में कितना बांड ख़रीदा। अब गेम समझिए। फर्ज़ी पार्टी बनाइये।

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किसी से चंदा लीजिए, उसका काला धन बैंक से भंजा लीजिए और फिर ऐश कीजिए। मेले में जाकर नाचिए कि पारदर्शिता आ गई, काला धन मिट आ गआ। राग मालकौस बजा लीजिएगा। सरकार आपकी हर जानकारी जान सके इसलिए आधार आधार कर रही है, वही सरकार राजनीतिक दलों के लिए ऐसा कानून लाती है कि चंदा देने वाला का नाम किसी को पता ही न चले। क्या आप अब भी इसे पारदर्शिता कहेंगे ? वेंकटेश नायक का कहना है कि इस बांड के ज़रिए सरकार एक नई प्रकार की मुद्रा पैदा कर रही है जिसके ज़रिए सिर्फ किसी व्यक्ति और राजनीतिक दल के बीच लेनदेन हो सकेगा। वेंकटेश नायक Access to Information at Commonwealth Human Rights Initiative के प्रोग्राम कोर्डिनेटर हैं। राजनीतिक दलों को भी इस काम से मुक्ति दे दिया गया है कि वे इस बात को रिकार्ड करें कि उन्हें चंदा देने वाला कौन है।

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इसका मतलब है कि कोई माफिया, अपराधी जो चाहे किसी भी दल को लूट का माल आंख मूंद कर दे सकता है। उसे सिर्फ बांड ख़रीदना होगा। कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों ने इस बांड का विरोध किया है। कांग्रेस के राजीव गौड़ा का कहना है कि यह योजना सफेद पैसा, पारदर्शिता और तटस्थता तीनों पैमाने पर फेल है। आप इस इलेक्टोरल बांड के बारे में ख़ुद से भी पढ़ें। सिर्फ एक सवाल करें कि क्या नाम पहचान गुप्त रख कर करोड़ों का बांड ख़रीद कर कोई राजनीतिक दल को चंदा देता है और राजनीतिक दल उस चंदे के बारे में किसी को बताने के लिए बाध्य नहीं है तो यह किस हिसाब से पारदर्शिता हुई। इस बारे में महान चुनाव आयोग के महान चुनाव आयुक्तों ने क्या कहा है, इसके बारे में भी गूगल सर्च कर लें।

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार। ये लेखक के निजी विचार हैं।)