नए नवेले आतंकी मन्‍नान वानी के मुंह पर अफजल गुरु के बेटे का तमाचा

आतंकी अफजल गुरु का बेटा डॉक्‍टर बनना चाहता है तो फिर क्‍यों अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र आतंक की राह पकड़ रहे हैं। जरा जानिए सच्‍चाई।

New Delhi Jan 12 : हमारे भीतर सच को सच और गलत को गलत कहने की हिम्‍मत है। जरुरी नहीं है एक आतंकी का बेटा आतंकी ही बने। संसद हमले के दोषी अफजल गुरु ने जो किया उसकी सजा उसे मिल चुकी है। लेकिन, अफजल गुरु के गुनाह में उसके परिवार का कोई रोल नहीं था। अफजल गुरु के बेटे गालिब गुरु की तारीफ होनी चाहिए। वो पढ़ने में होशियार है। समझदार है। हाईस्‍कूल में वो 95 फीसदी मार्क्‍स लाया था। इंटरमीडिएट में भी वो डिस्टिंक्‍शन से पास हुआ है। 12 वीं के बोर्ड एग्‍जाम में उसे 88 फीसदी मार्क्‍स मिले हैं। आज वो डॉक्‍टर बनना चाहता है। जम्‍मू-कश्‍मीर की सेवा करना चाहता है। अपने पिता के पापों को धोना चाहता है। वहीं दूसरी ओर मन्‍नान वानी जैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्‍कॉलर हैं। जो पीएचडी करते हुए बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं और आतंकवाद की राह पकड़ लेते हैं। अफजल गुरु का बेटा गालिब गुरु मन्‍नान वानी जैसे लोगों के मुंह पर तमाचा है।

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कश्‍मीर और कश्‍मीरियत को समझने वालों को सही और गलत का फर्क महसूस करना चाहिए। जरा सोचिए अफजल गुरु का बेटा कश्‍मीर में किन हालातों में पढ़ाई करता होगा। उसके दिल पर क्‍या गुजरती होगी कि जब उसे पता चलता होगा कि पाकिस्‍तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्‍मद ने उसके पिता के नाम पर बाकायदा आतंकियों का एक स्‍क्‍वॉयड बना रखा है। जो कश्‍मीर में खून खराबा करता है। लेकिन, गालिब गुरु ने कभी अपने पिता के नक्‍शेकदम पर चलने की बात नहीं की। उसका ध्‍यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर रहता है। अपने भविष्‍य पर रहता है। जिसे वो संवारना चाहता है। गालिब गुरु को आतंकी का बेटा कहलाने की बजाए डॉक्‍टर कहनाना पसंद है। कश्‍मीर के उन युवाओं को गालिब गुरु से सबक लेना चाहिए जो रास्‍ता भटककर आतंकवाद की राह पर चल पड़े हैं। जिन्‍होंने कलम छोड़कर बंदूकें थाम ली हैं। उन्‍हें समझना चाहिए कि कलम से लोगों को जिदंगी मिलेगी जबकि बंदूक से सिर्फ जिदंगी छीनी ही जा सकती है।

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अफजल गुरु का बेटा गालिब गुरु न्‍यूरोलॉजिस्‍ट बनना चाहता है। जाहिर है कश्‍मीर के भटके युवाओं को इस वक्‍त न्‍यूरोलॉजिस्‍ट की ही जरुरत है। जो उनके दिमाग की गदंगी को साफ कर सकें। खासतौर पर मन्‍नान वानी जैसे गंदे दिमाग वाले इंसान की गदंगी दूर कर सके। ऐसा नहीं है ये खबर मन्‍नान वानी तक नहीं पहुंची होगी। लेकिन, उसे अफजल गुरु के बेटे से सीख लेनी चाहिए। क्‍योंकि मन्‍नान वानी के अब्‍बू बशीर अहमद वानी भी कभी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा आतंकी बने। वो अपने जिस बेटे को पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजना चाहते थे उन्‍हें क्‍या पता था कि वो आतंक की पाठशाला को ज्‍वाइन कर लेगा। सोच-सोच का फर्क है। कश्‍मीर में एक आतंकी का बेटा डॉक्‍टर बनना चाहता है तो दूसरी ओर लेक्‍चरर का बेटा आतंकी बन रहा है। इस सूरत में कश्‍मीर के हर मां-बाप को सतर्क रहना होगा। अपने बच्‍चों पर उन्‍हें निगरानी रखनी होगी।

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देखना होगा कि कहीं उनके जेहन में कोई जहर तो नहीं घोल रहा है। क्‍योंकि कश्‍मीर में सही रास्‍ता दिखाने वाले कम और भटकाने वाले ज्‍यादा मौजूद हैं। अलगाववादी नेताओं से लेकर कुछ राजनैतिक दल के नेता तक अपने निजी फायदे के लिए कश्‍मीर के युवाओं को भड़का रहे हैं। उन्‍हें आतंकवाद में धकेल रहे हैं। लेकिन, क्‍या कभी किसी ने सैयद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादी नेताओं से पूछा है कि उनके बेटे या परिवार के लोग हथियार क्‍यों नहीं थामते। कश्‍मीर के युवाओं को आतंकवाद के सब्‍जबाग से बचना होगा। उन्‍हें ये मानना होगा कि इस राह में सिर्फ खून ही खून है। जो आतंकवाद की राह पर चलेगा वो आज नहीं तो कल मारा ही जाएगा। जिसका फायदा किसी को नहीं होने वाला। सोच रखनी है तो अफजल गुरु के बेटे गालिब गुरु की तरह रखनी चाहिए। ना कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नव नवेले आतंकी मन्‍नान वानी की तरह।