रास्ते पर बढ़ती अर्थव्यवस्था, आर्थिक मोर्चे पर अच्छी खबर

जो मोदी बैंकों की कतार में खड़े लोगों से मोदी मोदी बुलवा सकते हैं, वो इन सकारात्मक आर्थिक नतीजों के बाद जनता को किस कदर दीवाना बनाएंगे

New Delhi, Jan 14: नोटबंदी और जीएसटी के फैसले ने भारत की विकास दर को प्रभावित किया था, लेकिन अब असर खत्म हो चुका है। भारत के लिए राहत भरा ये आकलन विश्व बैंक के डेवलपमेन्ट प्रॉस्पेक्ट्स ग्रुप के डायरेक्टर अह्यान कोसे का है। लेकिन देशवासियों के लिए सबसे बड़ी राहत, संतोष और गर्व की बात विश्व बैंक का ये आकलन है कि इस साल भारत सबसे तेज विकास वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। ग्लोबल इकॉनोमिक प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट के अनुसार भारत 2018-19 में 7.3 प्रतिशत की दर से विकास करेगा, जो 2019 में 7.5 फीसद तक पहुंच जाएगा। जबकि चीन के आर्थिक विकास में वृद्धि की दर 2019 में गिरकर 6.3 फीसद हो जाने का अनुमान है। अमेरिका में भी गिरावट का ट्रेंड जारी रहने का विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है।देशवासियों के साथ-साथ नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए भी यह खबर राहत भरी है। नोटबंदी और जीएसटी के बाद से विकास दर पर असर पड़ा था। नोटबंदी के बाद की तिमाही में विकास दर में जबरदस्त गिरावट ने तो मोदी सरकार को आलोचनाओं के केन्द्र में ला दिया था, लेकिन अब मोदी सरकार न सिर्फ उन आलोचनाओं का जवाब देने की स्थिति में आ गई है बल्कि और भी साहसिक फैसले लेने की हिम्मत इस सरकार में बढ़ गई है।

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इसी का नमूना पेश करते हुए विश्व बैंक की रिपोर्ट के अगले ही दिन मोदी कैबिनेट ने सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 फीसद एफडीआई को मंजूरी दे दी। यह फैसला इसलिए भी बड़ा है क्योंकि 2014 में सत्ता में आने से पहले जब मनमोहन सरकार ऐसी कोशिश कर रही थी, तब बीजेपी ने बड़े पैमाने पर कारोबारियों को विरोध के लिए एकजुट किया था और इसे स्थानीय कारोबारियों के खिलाफ बताया था।सरकार ने न सिर्फ सिंगल ब्रांड रिटेल में शत प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी, बल्कि एयर इंडिया में 49 फीसद एफडीआई को मंजूरी देकर इसके निजीकरण का रास्ता भी साफ कर दिया है। सरकार का दावा है कि देश में रोजगार बढ़ाने के लिए ये आर्थिक कदम उठाए जा रहे हैं। टाउनिशप, हाउसिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और रीयल स्टेट ब्रोकिंग संबंधी निर्माण क्षेत्र में भी शत प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी गई है। हालांकि, मोदी समर्थकों को यह बात मानने में थोड़ा संकोच होगा, लेकिन जो इकॉनमिक क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हैं अब महसूस कर रहे हैं कि मोदीनॉमिक्स और मनमोहनॉमिक्स में जो ‘‘स्वदेशी’ के नाम पर फर्क रखा गया था, वह मिट चुका है। अब ये दोनों शब्द एक हो गए हैं। 1990 में जिस इकॉनमिक सुधार को मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते नरसिम्हा राव सरकार ने अपनाया था, वह राजनीतिक झंझावात झेलते हुए मोदी सरकार में पूरे देश को स्वीकार्य हो गया है।

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इकॉनमिक नीतियों पर वाम और दक्षिणपंथियों का जो दोतरफा विरोध मनमोहन सिंह-नरसिंहराव और फिर यूपीए की सरकार में मनमोहन सिंह को झेलना पड़ा था, उस विरोध के दौर से मोदी सरकार बाहर निकल चुकी है। कांग्रेस यह आरोप तो बीजेपी पर लगा सकती है कि बीजेपी ने अपनी घोषित इकॉनमिक नीतियों से यू टर्न लिया है, लेकिन वो उसे गलत नहीं ठहरा सकती। वाम मोर्चा अब इतना सशक्त नहीं है और न ही कोई तीसरा या चौथा मोर्चा उसके साथ खड़ा है, जिनसे मिलकर वामदल कोई विरोध दर्ज करा सकें। उनके विरोध को आज कोई सुनने वाला भी नहीं है। इसलिए मोदी सरकार के ताजा फैसले और आने वाले समय में लिए जाने वाले फैसले महज प्रतीकात्मक विरोध ही झेलेंगे। हालांकि सिंगल ब्रांड में एफडीआई को शत-प्रतिशत निवेश के बाद राजनीतिक विरोध को कारोबारियों का समर्थन मिल सकता है। मगर, पिछले दिनों जिस तरीके से मोदी सरकार ने जीएसटी के बाद कारोबारियों को मना लिया था और उससे पहले सोना कारोबारियों के देशव्यापी विरोध को शांत कर लिया था, उसे देखते हुए एक बार फिर मोदी सरकार अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन करेगी और उसमें सफल होगी, इसकी पूरी सम्भावना है।

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वहीं, अगर विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में ये नीतियां कारगर रहीं और रोजगार पैदा होने के संकेत भी मिलने लगे, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में इतनी क्षमता और वाकपटुता है कि वह अपनी नीतियों को लोकलुभावन बना देंगे, इसमें संदेह नहीं है। पिछले कुछ समय से दुनिया की रेटिंग एजेंसियां लगातार भारत के बारे में सकारात्मक संकेत देती रही हैं। अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग संस्था मूडीज के इन्वेस्टर सर्विस सर्वे ने अपना अनुमान रखा था कि अगले एक से डेढ़ साल के भीतर भारत में विकास की दर 6.5 फीसद से 7.5 फीसद रहेगी। खास बात ये थी कि मूडीज के सर्वे में 200 से ज्यादा बाजार के भागीदार थे। इसी तरह आईएमएफ अनुमान जता चुका है कि भारत 2018 में 7.8 फीसद की दर से विकास करेगा, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने ‘‘र्वल्ड इकॉनोमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट 2018’ की रिपोर्ट में भारत के लिए 2018 में विकास दर 7.2 होने और 2019 में इसके 7.4 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान पहले ही लगा रखा है। विश्वप्रसिद्ध निवेश संस्था गोल्डमैन सैक्स ने तो यहां तक कह दिया है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत 8 फीसद की दर से विकास करेगा।ये सारे अनुमान बताते हैं कि भारत के लिए अच्छे दिन आने वाले हैं अगर ऐसा हुआ, तो मोदी सरकार के लिए 2019 का आम चुनाव इसी फीलगुड फैक्टर के माहौल में होगा और तब विपक्ष के लिए उन्हें रोक पाना आसान नहीं होगा।

कल्पना कर सकते हैं कि जो नरेन्द्र मोदी आम जनता को बैंकों की कतार में खड़ा करके भी उनसे ‘‘मोदी-मोदी’ के नारे बोलवाने की क्षमता रखते हैं, वे इन सकारात्मक आर्थिक नतीजों के बाद जनता को किस कदर अपना दीवाना बना लेंगे।राजनीतिक रूप से नरेन्द्र मोदी चाहे कांग्रेस की जितनी आलोचना कर लें, लेकिन आगे से उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निशाना बनाने से पहले सोचना पड़ेगा। हाल में मनमोहन की आलोचना के बाद उन्हें राज्य सभा में माफी मांगनी पड़ी थी, इस तय को भी याद रखना होगा। मोदी सरकार के फैसलों ने दरअसल मनमोहन सिंह का कद बढ़ाया है और आने वाले समय में यह कद और बढ़ेगा। नरेन्द्र मोदी के लिए जो सत्ता की ताकत की सहूलियत है, वह मनमोहन सिंह के पास नहीं थी। फिर भी उन्होंने कभी सरकार को संकट में डालकर परमाणु करार कर दिखलाया, तो कभी भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच अपमानजनक परिस्थितियों में अपने मौन से उन हालात का सामना किया। मगर, आर्थिक सुधारों के लिए जो कदम उठाए गए थे उसे आगे बढ़ाते रहने का काम नहीं छोड़ा। नरेन्द्र मोदी आज उन्हीं सुधारों की गति को तेज करते हुए दिख रहे हैं। यहां तक कि अपनी ही पार्टी की नीतियों और फैसलों को भी पलट रहे हैं।चाहे मनमोहन सिंह हों या नरेन्द्र मोदी पिछले 27 सालों से इकॉनमिक क्षेत्र में उदारीकरण की जो प्रक्रिया चली है, उसके लिए सारा श्रेय इन्हें ही दिया जाना चाहिए। ये दोनों नेता भविष्य में अपनी-अपनी पार्टयिों के कद से ऊंचे देखे जाएंगे, इसमें संदेह नहीं है। दोनों ने अपनी-अपनी पार्टयिों के घोषित सिद्धांतों को उलटने का साहस दिखलाया है। इसलिए सही मायने में ये दोनों देश के शीर्ष नेताओं में शुमार किए जाते रहेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)