क्या कांग्रेस के पास ताकत बढ़ाने के लिए अच्छे नारे नहीं है ?

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार ऐसे दोहरा मापदंड से ही कांग्रेस की चुनावी दुर्दशा होती जा रही है।दोहरा मापदंड के उदाहरण और भी हैें।

New Delhi, Jan 16: राजीव गांधी हत्याकांड जैसे अत्यंत संवेदनशील मामले की भी सुप्रीम कोर्ट में अपेक्षाकृत जूनियर जजों की बेंच ने सुनवाई की थी। टाइम्स आॅफ इंडिया के अनुसार पिछले 20 वर्षों में 15 ऐसे संवेदनशील मामलों की सुनवाई के लिए बेंच गठित करने में सुप्रीम कोर्ट ने जजों की वरीयता का ध्यान नहीं रखा था। यानी इन अति संवेदनशील मामलों को सुनवाई के लिए वरिष्ठत्तम जजों को नहीं सौंपा गया था। पर तब कांग्रेसया किसी जज ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों के निर्णय पर कोई सवाल नहीं उठाया था। पर जब गत शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठत्तम जजों ने प्रेस कांफ्रेंस करके मौजूदा मुख्य न्यायाधीश पर यह आरोप लगाया कि केस के बंटवारे में वरीयता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है तो लपक कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कह दिया कि ‘जजों ने जो मामला उठाया हैै,वह अत्यंत गंभीर है और उसकी जांच होनी चाहिए।’

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राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार ऐसे दोहरा मापदंड से ही कांग्रेस की चुनावी दुर्दशा होती जा रही है।दोहरा मापदंड के उदाहरण और भी हैें। राहुल गांधी ने जस्टिस बृज गोपाल लोया की मौत का मामला उठाते हुए भी शुक्रवार को कहा था कि उसकी जांच सुप्रीम कोर्ट में उच्च स्तर पर होनी चाहिए। याद रहे कि राहुल गांधी ने यह मामला इसलिए उठाया क्योंकि जस्टिस लोया एक कथित माफिया शोहराबुद्दीन शेख की मुंठभेड़ में मौत के मामले की जांच कर रहे थे।हालांकि लोया के पुत्र अनुज लोया ने कहा है कि उसके पिता की मौत के पीछे कोई रहस्य नहीं है। हार्ट अटैक से 2014 में उनका निधन हुआ था। याद रहे कि नरेंद्र मोदी के मुख्य मंत्रित्वकाल में पुलिस के साथ विवादास्पद मुंठभेड़ में शोहराबुददीन मारा गया था। आरोप लगाया गया कि मुंठभेड़ नकली थी। उस संबंध में केस चल रहा है।

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शोहराबुददीन जैसे मामले में भी कांग्रेसका दोहरा रवैया रहा है।शोहराबुददीन जिस माफिया लतीफ का पहले डाइवर था,उस लतीफ की भी 1997 में पुलिस मुंठभेड़ में ही हत्या हुई थी।आरोप है कि लतीफ गुजरात में वही धंधा करता था जो धंधा मुम्बई में दाउद इब्राहिम करता था। पर गुजरात में 1997 में कांग्रेस समर्थित सरकार थी जिसके मुख्य मंत्री शंकर सिंह बघेला की पार्टी राजपा के एक नेता थे। उस सरकार ने लतीफ को मारने वाले पुलिस अफसरों को तब सार्वजनिक रूप से सम्मानित भी किया था। पर शोहराबुददीन हत्याकांड में कई आई.पी.एस.अफसर भी जेल गए। गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह भी कुछ समय के लिए जेल में थे। पर अदालत ने बाद में अमित शाह के खिलाफ लगे आरोपों को रद कर दिया था।याद रहे कि लतीफ की मौत के बाद शोहराबुददीन उसका उत्तराधिकारी बन गया था। संभव है कि लतीफ की तरह शोहराबुददीन की मौत भी नकली मुंठभेड़ में ही हुई हो। पर इस देश में ऐसे सैकड़ों मुंठभेड़ें हर साल होती रहती हैं।

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इन दिनों भी उत्तर प्रदेश में पुलिस के साथ धुंआधार मुंठभेड़ें हो रही हैं।पर ,उनकी जांच -पड़ताल करने या उन पर शंका उठाने से किसी को कोई वोट नहीं मिलने वाला है। पर लोया-शोहराबुददीन प्रकरण में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोट बैंक की फसल नजर आ रही है।पर अंततः ऐसे मुददे कांग्रेस के लिए महंगे ही साबित होते रहे हैं।  पहले भी वर्षों तक कांग्रेस शोहराबुददीन मामले का इसी उद्देश्य से इस्तेमाल करने की कोशिश करती रही।पर हर बार उसका लाभ उल्टे भाजपा को मिला। कांग्रेसी दांव उल्टा पड़ा। पर कांग्रेसने उससे शिक्षा नहीं ली।गुजरात विधान सभा के गत चुनाव में भाजपा ने खुद को कमजोर स्थिति में पाकर मतदाताओं से अपील की थी कि आपको ‘भाजपा राज चाहिए या लतीफ राज ?’ भाजपा ने मतदाताओं को ‘लतीफ राज’ की याद दिलायी जो कांग्रेसशासन काल का दुःस्वप्न माना जाता रहा है। कहा जाता है कि इस नारे ने कांग्रेसके चुनावी बढ़ाव को रोक दिया था।क्योंकि गुजरात और उसके आसपास के कुछ राज्यों के अनेक लोग लतीफ और शोहराबुददीन के नाम सुन कर आज भी कांप उठते हैें। क्या कांग्रेसके पास अपनी चुनावी ताकत बढ़ाने के लिए लोया-शोहराबुददीन प्रकरण की जगह  कुछ अच्छे मुददे और बेहतर नारे नहीं हैं ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)