नौकरी पर नई रिपोर्ट- 2017 के साल में 55 लाख नौकरियां मिलीं ?

भारत में PAY-ROLL के ज़रिए नौकरियों की संख्या को देखने का पहला प्रयास हुआ है। जब आपको नौकरी मिलती है तो पे-रोल बनता है।

New Delhi, Jan 17: भारत में रोज़गार की संख्या की गिनती के लिए कोई मुकम्मल और पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। आई आई एम बंगलौर के प्रोफेसर पुलक घोष और स्टेट बैंक आफ इंडिया की सौम्य कांति घोष ने एक रिसर्च पेपर पेश किया है। उम्मीद है इस पर बहस होगी और नए तथ्य पेश किए जाएंगे। जब तक ऐसा नहीं होता, आप सभी को यह रिपोर्ट पढ़नी चाहिए। जब पे-रोल देख ही रहे थे तो प्रोफेसर साहब यह भी देख लेते कि कितने लोगों की नौकरी गईं और जिन्हें मिली हैं उनमें महिलाएं कितनी हैं। इस लेख में कुछ संगठन का नाम संक्षिप्त से आएगा जिनका विस्तार समझ लेना ठीक रहेगा। EPF0- Employee’s Pension Fund Organisation, ESIC-Employee’s State Insurance Corporation, NPS- National Pension System

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भारत में PAY-ROLL के ज़रिए नौकरियों की संख्या को देखने का पहला प्रयास हुआ है। जब आपको नौकरी मिलती है तो पे-रोल बनता है। उसका एक हिस्सा पेंशन फंड को जाता है। वहां मौजूद रिकार्ड के आधार पर देखने का प्रयास हुआ है कि कितनों को जॉब मिली है। कई बार लोग फर्ज़ी पे-रोल बना लेते हैं। प्रोफेसर का दावा है कि उसका ध्यान रखा गया है मगर इस दावे की जांच अभी बाकी है। प्रोफेसर पुलक घोष का कहना है कि EPFO, ESIC और NPS को मिलकर नियमित रूप से अपना डेटा सार्वजनिक करना चाहिए कि कितने लोग पे-रोल पर आए हैं ताकि लोगों को रोज़गार के बारे में सही-सही अंदाज़ा हो। बिल्कुल ठीक बात है। यह काम दो दिन में किया जा सकता है।

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मैं कोई प्रोफेसर नहीं हूं मगर जब 15 जनवरी के प्राइम टाइम में महेश व्यास से नौकरी पर बात कर रहा था तब यही था कि केंद्र और राज्य सरकारों को हर महीने आंकड़ा देना चाहिए कि कितनी नौकरियां निकली हैं, कितनी की प्रक्रिया पूरी हुई है और कितनों ने ज्वाइन किया है। क्या यह मुश्किल आंकड़ा है? भारत में पिछले पचास वर्षों में आबादी की दर घटी है। इसके और घटने की संभावना है। हर साल ढाई करोड़ बच्चे पैदा होते हैं और डेढ़ करोड़ लेबर मार्केट में प्रवेश करते हैं। इनमें से 88 लाख ग्रेजुएट होते हैं मगर सभी ग्रेजुएट लेबर मार्केट में नहीं आते हैं। लेखक मानते हैं कि इनमें से 66 लाख क्वालिफाइड मैनपावर है। EPFO में 190 से अधिक प्रकार के वैसे उद्योग हैं, जहां 20 या उससे अधिक लोग काम करते हैं। इसके साढ़े पांच करोड़ सब्सक्राइबर हैं।

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एक दूसरा है ESIC, यहां दस या दस से अधिक काम करने वाले ठिकानों के कर्मचारियों का हिस्सा जमा होता है। इसके तहत 60 से अधिक उद्योगों के 1 करोड़ 20 लाख सब्सक्राइबर हैं। इसके अलावा नेशनल पेंशन फंड के 50 लाख लोग हैं। जीपीएस से 2 करोड़ लोग जुड़े हैं। ख़ुद देखिए औपचारिक रूप से भारत जैसे विशाल देश में पे-रोल पर कितने कम लोग हैं। दस करोड़ से भी कम। जबकि अमरीका में 16 करोड़ और चीन में 78 करोड़ हैं। दोनों लेखकों ने इस विशाल डेटा भंडार में ख़ुद को पिछले तीन साल में पहली बार नौकरी पाने वालों तक ही सीमित रखा है। जिनकी उम्र 18 से 25 साल के बीच है। इस आधार पर इनका आंकलन है कि वित्त वर्ष 2016-17 में 190 उद्योंगो में 45 लाख ग्रेजुएट को नौकरी मिली। 2017-18 के नवंबर तक करीब 37 लाख लोगों को नौकरियां मिलीं। यह बढ़कर 55 लाख तक जा सकती है। ESIC जहां दस या दस से अधिक लोग काम करते हैं, इसके 60 उद्योगों में 6 लाख लोगों को काम मिला।

हर महीने औसतन 50,000 नए लोगों को नौकरियां मिल रही हैं। यह सभी सेक्टर को मिलाकर औसत निकाला गया है जिनका आंकड़ा आपको पे रोल से मिलता है। NATIONAL SAMPLE SURVEY ने अनुमान लगाया है कि 2012 में 50 करोड़ लोग काम के क्षेत्र में थे। इनमें से 80 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इनमें से 50 फीसदी तो खेती में काम करते हैं। आप समझ सकते हैं कि वहां कितनी कमाई होती है और हम इनके रिसर्च पेपर से नहीं जान सके हैं कि असंगठित क्षेत्र में जहां 80 फीसदी हैं वहां रोज़गार घटा है या कितना बढ़ा है। INDIA SPEND ने पिछले साल जुलाई में श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर बताया है उसे भी ध्यान में रखिए। जुलाई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच आठ सेक्टर में रोज़गार को देखा गया है। मैन्यूफैक्चरिंग, ट्रेड, निर्माण, शिक्षा,स्वास्थ्य, सूचना टेक्नालजी, ट्रांसपोर्ट, होटल रेस्त्रा वगैरह।

इन सबने मिलकर 6, 41,000 नौकरियां दी। जबकि इन्हीं आठ सेक्टर में जुलाई 2011 से दिसंबर 2013 के बीच 13 लाख रोज़गार दिए गए थे। श्रम मंत्रालय का डेटा है। सरकार का आंकड़ा है। इन सेक्टरों में जहां दस या दस से अधिक लोग काम करते हैं। CMIE बांबे स्टाक एक्सचेंज के साथ मिलकर महेश व्यास ने सितंबर से दिसंबर 2017 के बीच 1 लाख 68 हज़ार घरों में जाकर सर्वे किया है। यह सर्वे भी उन्हीं आठ सेक्टरों से संबिधित है। चार लाख से अधिक लोगों का सर्वे हुआ है। इसका यही नतीजा निकला है कि नौकरियां घटी हैं। मज़दूरी कम हुई है और जहां दो लोग कमाते थे वहां एक लोग कमा रहे हैं। कितना अंतर है। कोई 55 लाख बता रहा है, कोई 6 लाख बता रहा है, बस सरकार नहीं बता रही है। हम और आप नहीं पूछ रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)