चीन की तरफदारी कब तक करेगा सीपीएम, ऐसे बयान दुखी करने वाले
सीपीएम. के इस प्रमुख नेता का बयान अधिकतर भारतीयों को दुःखी करने वाला है।इस बयान से भाजपा को बंगाल में फैलने में सुविधा हो सकती है।
New Delhi, Jan 18: सीपीएम.के पोलित ब्यूरो के सदस्य के. बाला कृष्णन ने कहा है कि अमेरिका के नेतृत्व वाली साम्राज्यवादी ताकतों की धुरी का भारत एक पार्टनर है।यह धुरी चारों तरफ से चीन को घेर रही है। हमलावर है। गत 15 जनवरी को अंग्रेजी दैनिक पाॅयोनियर में प्रकाशित इस खबर के अनुसार बालाकृष्णन ने, जो केरल सी.पी.एम. के सचिव भी हैं , उत्तर कोरिया के किम का भी समर्थन किया है। मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में शायद सी.पी.एम.अपने इस नेता के इस बयान का खंडन करेगी। पर जब दो दिन बीत गए और खंडन नहीं हुआ तो मैंने सोचा कि इस पर एक पोस्ट लिख दिया जाए। ऐसे समय में जब पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत को घेरने में लगे हैं.
सीपीएम. के इस प्रमुख नेता का बयान अधिकतर भारतीयों को दुःखी करने वाला है।इस बयान से भाजपा को बंगाल में फैलने में सुविधा हो सकती है। लगता है कि सी.पी.एम. अब भी 1962 के ही मिजाज में है। 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया था तो अविभाजित सी.पी.आई.के चीन पक्षी नेताओं ने उल्टे भारत को ही हमलावर बताया था।तब अनेक चीनपक्षी कम्युनिस्ट नेता इसको लेकर गिरफ्तार भी हुए थे।पार्टी भी टूट गयी।सी.पी.एम.का गठन हुआ। हालांकि तब अविभाजित सी.पी.आई.के सोवियतपक्षी नेताओं ने भारत सरकार का साथ दिया था।
वैसे तब सोवियत संघ ने भारत की मदद नहीं की।बल्कि अमेरिका ने मदद की थी। खुद चीन और सोवियत संघ की सरकारें 1969 में आपसी विवाद में उलझी हुई थीं।पर इन देशों के कोई नेता अपने ही देश के खिलाफ बयान दे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।वैसे भी वहां वाणी की स्वतंत्रता थी नहीं। जबकि दोनों देशों के कम्युनिस्ट ‘दुनिया के मजदूरो एक हो’ का नारा लगाते थे। भारत एक अजीब देश है जहां के कुछ लोग व संगठन दूसरे देश के हितों के बारे में अधिक सोचते व करते है।फिर भी उनका चल जाता है।
कहीं पढ़ा था कि चीन ने जब 1964 में परमाणु विस्फोट किया तो सीपीएम.ने उसकी सराहना की।पर जब सत्तर के दशक में इंदिरा सरकार ने किया तो उसकी आलोचना की। सी.पी.एम.एक ऐसी पार्टी है जिसमें किसी भी दल से अधिक त्यागी,तपस्वी कार्यकत्र्ता और नेता हैं।भारत जैसे गरीब देश के लिए वे बहुत बड़ी पूंजी बन सकते थे। पर राष्ट्रहित और सामाजिक न्याय को लेकर सी.पी.एम.की गलत समझदारी के कारण एक अच्छी पार्टी पूरे देश की पार्टी नहीं बन सकी।