कर्नाटक में भी राहुल गांधी को चाहिए तीन बैसाखियां, नहीं मिली तो होंगे चित्त

गुजरात की तरह राहुल गांधी कर्नाटक में जिग्नेश, हार्दिक और अल्पेश तलाश रहे हैं। व्यवस्था के खिलाफ निकले युवा कर्नाटक में कांग्रेस का खेल खराब कर सकते हैं।

New Delhi, Jan 18: कर्नाटक में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं, सबसे बड़ी चुनौती तो देश में लगातार सिकुड़ रही पार्टी को जीवंत रखने की है, अगर कर्नाटक हाथ से गया तो कांग्रेस की हालत खराब हो जाएगी। इसके लिए पार्टी अभी से जी जान लगा रही है, गुजरात के चुनाव परिणामों ने पार्टी को कुछ संजीवनी जरूर दी, लेकिन गुजरात के चुनावों की गहन विवेचना करें तो पता चलता है कि राहुल गांधी बैसाखियों के सहारे बीजेपी को टक्कर दे सकते हैं, अपने दम पर वो मोदी को टक्कर नहीं दे सकते हैं, गुजरात में कांग्रेस को हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा आंदोलनकारियों का साथ मिला था। इन तीनों ने काफी पहले से बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया था। जातिगत आंदोलन के कारण बीजेपी बैकफुट पर थी.

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गुजरात के नतीजों को राहुल गांधी नैतिक जीत भले ही बताते रहें, लेकिन वो खुद जानते हैं कि इन तीन नेताओं के बिना वो गुजरात में बीजेपी के किले में इस तरह की सेंध लगाने में कामयाब नहीं हो पाते। ये अलग बात है कि कुछ सियासी पंडित ये कह रहे हैं कि गुजरात में अगर राहुल थोड़ा और जोर लगाते तो बीजेपी का किला गिरा सकते थे. ये अतिश्योक्ति है, सत्ता विरोधी लहर और तीन युवा नेताओं की खिलाफत के बाद बी बीजेपी ने अपनी सरकार बचा ली। गुजरात के चुनावी मॉडल को ही कांग्रेस कर्नाटक में लागू करने की कोशिश कर रही है। राहुल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं, इसी के साथ वो कर्नाटक में भी जिग्नेश, हार्दिक और अल्पेश जैसे नेता खोज रहे हैं।

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यहां पर समझने वाली बात ये है कि राहुल युवाओं के सहारे चुनावी जीत के सपने संजो रहे हैं, वहीं बीजेपी कांग्रेस की हर कोशिश से अपना फायदा और नुकसान देख रही है। कर्नाटक में बीजेपी के सामने आसानी इस बात की है कि उस पर सरकार बचाने का दबाव नहीं है जो गुजरात में था। ये दबाव कांग्रेस के ऊपर है। शायद राहुल गांधी इस बात को समझ रहे हैं, इसलिए कांग्रेस के नेताओं को चुनाव के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है. बाकायदा वर्कशॉप लगाकर नेताओं को ये समझाया जा रहा है कि उनको कब और क्या बोलना है, किन मुद्दों को उठाना है। बीजेपी पर किस तरह से हमला करना है। खास बात ये है कि कांग्रेस के नेता युवा हैं, यानि युवाओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश।

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कर्नाटक चुनाव के लिए कांग्रेस काम करने की पुरानी शैली को बदल रही है। वो ज्यादा से ज्यादा युवाओं को तरजीह दे रही है। वो ऐसे युवाओं की तलाश कर रही है वो जोश से भरे हों, राहुल का ये प्रयोग कामयाब होगा इस पर संशय है, क्योंकि राज्य में कांग्रेस की ही सरकार है, पिछले पांच साल में अगर पार्टी ने कुछ काम किया होगा तो युवा अपने आप ही उसे वोट देंगे. नहीं तो इस तरह से वर्कशॉप की राजनीति करके कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं होगा। दूसरी बात ये है कि क्या कांग्रेस इस उम्मीद में चुनाव में उतरेगी कि बीजेपी के पास कुछ नहीं होगा, बीजेपी के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी युवाओं को देश की ताकत बताते रहते हैं। कांग्रेस जहां निवेश करने वाली है वहां पर पहले ही नरेंद्र मोदी अपनी फैक्ट्री लगा चुके हैं। अब ऐसे माहौल में कांग्रेस कितनी कामयाबी हासिल करती है ये देखना रोचक होगा।