लालू प्रसाद यादव के समर्थकों के आरोपों में कितना दम

आजादी के बाद बहुत घोटाले हुए,पर किसी बड़े नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। लालू के प्रति उनके समर्थकों की यह भावना उनसे यह कहलवाती है।

New Delhi, Jan 26: लालू प्रसाद के कुछ समर्थकों की लगातार यह शिकायत रही है कि इस देश में सिर्फ उन्हें ही जांच एजेंसियों द्वारा और अन्य तरह से परेशान किया जा रहा है। आजादी के बाद बहुत घोटाले हुए,पर किसी बड़े नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। लालू जी के प्रति उनके समर्थकों की यह भावना उनसे यह कहलवाती है।मैं उस भावना को समझ सकता हूं। हालांकि वे गैर जानकारी में ऐसी बात कह रहे हैं।लालू जी ने कभी कमजोर तबकों को आवाज देने के काम में ऐतिहासिक भूमिका निभाइ्र्र । इसलिए उनके प्रति अनेक लोगों में ऐसी भावना स्वाभाविक है।पर एक अच्छे काम के कारण कानून उनके दूसरे विवादास्पद कामों के प्रति आंखें कैसे मोड़ सकता है ! एक जीवंत लोकतंत्र में यह संभव नहीं है। जहां तक आजादी के बाद सजा मिलने का सवाल है,कमोवेश सजाएं तो मिलती रही हैं।दोषियों को जात -पांत और दलगत आधार से ऊपर उठकर भी कई बार सजाएं मिली हैं।हालांकि कोई आदर्श स्थिति नहीं है।

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क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बेहतरी की सख्त जरूरत है। पर दरअसल आजादी के बाद आम मामलों में सजा मिलने का प्रतिशत ही कम होता चला गया है।इसके लिए लगभग सभी दलों के अधिकतर सत्ताधारी नेता जिम्मेदार रहे हैं।क्योंकि सबके अपने -अपने आरोपी और ‘आरोपित’ रहे हैं। इस देश में सौ में से 55 आरोपित रिहा हो जाते हैं। रिहा होने और सजा पाने वालों में विभिन्न समुदायों के लोग रहे हैं। यहां मैं अपनी सूचनाओं के आधार पर कुछ बड़ी हस्तियों को मिली सजाओं के उदाहरण दे रहा हूं। किसी अन्य मित्र को ऐसे महत्वपूर्ण मामलों के इससे अलग के अन्य उदाहरण याद हों तो जरूर बताएं। पचास के दशक में मध्य प्रदेश के राव शिव बहादुर सिंह को भ्रष्टाचार के आरोप में सजा हुई थी। वे नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य भी रह चुके थे।उनका जेल में ही निधन हो गया।

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वे पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के पिता थे।उत्तर प्रदेश के श्याम धर मिश्र केंद्रीय उप मंत्री थे।हत्या के आरोप में सजा पाए थे। व्यापम केस में पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा सहित करीब 100 नेता गिरफ्तार हुए थे। बिहार के एक बड़े नेता के सत्तर के दशक में जब जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने जहर खाकर अपनी जान दे दी। पंडित सुख राम को टेलकाम घोटाले में 2011 में सजा हुई थी।वे जेल में रहे। पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंह राव और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह को सन 2000 में दिल्ली के लोअर कोर्ट से सजा हुई थी।ऊपरी अदालत से ही वे 2002 में बरी हो सके। भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण सजा पाए। जय ललिता सजायाफ्ता हुईं।यदि जीवित रहती तो आज वह भी शशि कला के साथ जेल में होती।

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नरसिंह राव सरकार के ताकतवर केंद्रीय राज्य मंत्री मतंग सिंह सारधा घोटाले में अब भी जेल में हैं। शेयर घोटाले बाज हर्षद मेहता जेल में ही मर गया। छगन भुजबल अब भी जेल में हैं। ओम प्रकाश चैटाला और उनके पुत्र अजय चैटाला भ्रष्टाचार के आरोप में दस साल की सजा काट रहे हैं। इसके अलावा भी अनेक महत्वपूर्ण मामलों में जांच और सुनवाई विभिन्न स्टेज में है। चारा घोटाले में भी लालू प्रसाद के साथ अन्य कई नेताओं को सजा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों -विधायकों के खिलाफ चल रहे  मुकदमों की सुनवाई त्वरित अदालतों  के जरिए कराने का केंद्र सरकार को हाल में निदेश दिया है।केंद्र ने उसे मान भी लिया है।वह काम शुरू हो जाने के बाद सजा या रिहाई के काम में तेजी आएगी

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)