उद्धव ठाकरे अपने बेटे को सेट करना चाहते हैं, इसलिए राहुल के लिए हैं नर्म

उद्धव ठाकरे शायद खुद को ज्यादा आंक गए हैं, बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद वो क्या अपने दम पर शिवसेना को सत्ता में ला सकते हैं।

New Delhi, Jan 28: एक बाप अपने बेटे को सियासत में सेट करने के लिए अपने ही फायरब्रांड भतीजे को किनारे कर देता है, वही बेटा अब अपने बेटे को सेट करने के लिए सालों पुराना गठबंधन खत्म कर देता है, ये सियासत का नियम है जिसके बारे में कहीं लिखा नहीं है, लेकिन फिर भी इसे सब मानते हैं। बात कर रहे हैं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और बीजेपी के बीच हुए तलाक के बारे में। उद्धव ने एलान किया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव शिवसेना बीजेपी के साथ नहीं लड़ेगी. इसी के साथ विधानसभा चुनाव भी अपने दम पर लड़ा जाएगा। ये अलग बात है कि एलान से पहले उद्धव ने अपने दम का आंकलन नहीं किया है।

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फिलहाल उद्धव ठाकरे अपने दम पर शिवसेना को ना तो महाराष्ट्र में जीत दिला सकते हैं, ना ही वो लोकसभा चुनाव में कुछ कमाल कर सकते हैं। महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना अलग उतरी थी, बीजेपी के साथ तो चुनाव बाद गठबंधन बना था, तब भी शिवसेना दूसरे नंबर की पार्टी रही थी। ऐसे में ये सवाल जायज है कि उद्धव ने गठबंधन तोड़े का फैसला क्यों किया। इसका जवाब है कि वो अपने बेटे को सेट करना चाहते हैं। उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे लगातार युवा राजनीति में काम कर रहे हैं। अब उनको पार्टी का नेता भी चुन लिया गया है, जो नीतियां तय करेगा, आदित्य पिछले काफी समय से बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने की वकालत कर रहे थे।

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खास बात ये है कि बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने से पहले शिवसेना का कांग्रेस के प्रति रुख नरम हो गया था। जो शिवसेना राहुल गांधी और कांग्रेस पर तंज कसती थी, वही शिवेसना अचानक से राहुल गांधी को बड़ा नेता मानने लगी है। खास तौर पर अमेरिका में राहुल गांधी के बयान के बाद से शिवसेना के रुख में बदलाव आया है, राहुल ने अमेरिका में कहा था कि वंशवाद से ही देश चलता है। शिवसेना भी तो इसी लाइन पर राजनीति कर रही है, बाल ठाकरे के बाद उद्धव, और उद्धव के बाद आदित्य ये सिलसिला चलता रहेगा। इसलिए राहुल गांधी अचानक से शिवसेना को प्रिय हो गए हैं। दरअसल शिवसेना को पता है कि वो अपने दम पर कोई खेल करने की स्थिति में नहीं है।

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उद्धव ठाकरे जानते हैं कि उनको गठबंधन चाहिए, कांग्रेस के प्रति नरमी दिखा कर उन्होंने बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन बीजेपी उस चाल में नहीं फंसी, बीजेपी को भी ये अच्छे से पता है कि अब महाराष्ट्र में शिवसेना का वो दबदबा नहीं है जो बाल ठाकरे के समय में होता था। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग अलग लड़ने से शिवसेना को ही नुकसान होगा, कोई बड़ी बात नहीं कि चुनाव के बाद फिर से शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन हो जाए, राजनीति में कुछ भी हो सकता है। वैसे भी शिवसेना ने अभी तक राज्य और केंद्र से अपने मंत्रियों को वापस नहीं बुलाया है। आदित्य ठाकरे की नीतियां शिवसेना को कहां ले जा रही हैं, ये खुद उद्धव को नहीं पता होगा।