रिपोर्ट : 2020 में 20 सीटें भी नहीं जीत पाएंगे अरविंद केजरीवाल ?
क्या दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी का हाल कांग्रेस जैसा होने वाला है। जानिए आखिर क्यों उठ रहे हैं इस तरह के सवाल ?
New Delhi Jan 30 : आम आदमी पार्टी के लिए बुरी खबर है। हालांकि अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए पिछले कुछ दिनों से कोई अच्छी खबर आ भी नहीं रही है। एक ओर 14 फरवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपने तीन साल पूरे कर लेगी। वहीं दूसरी ओर संसदीय सचिवों के मामले में अरविंद केजरीवाल की पार्टी को बड़ा झटका लग चुका है। चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति आम आदमी पार्टी के बीस विधायकों की सदस्यता को रद्द कर चुके हैं। दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी से बहुत खुश नहीं है। दिल्ली में अगले विधानसभा चुनाव 2020 में होंगे। लेकिन, इससे पहले ही अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को लेकर रिपोर्ट्स सामने आने लगी है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि जिस तरह से दिल्ली सरकार चल रही है और विवादों में घिरती जा रही है उससे 2020 में उसका हाल कांग्रेस जैसा हो सकता है। यानी केजरीवाल को अगले चुनाव में मुंह की खानी पड़ सकती है।
दरसअल, दिल्ली में आम आदमी पार्टी जितनी तेजी के साथ खड़ी हुई थी उतनी ही तेजी से गिरती हुई नजर आ रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक पांच साल में पहली बार ऐसा देखने को मिला रहा है कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली की जनता की सहानुभूति नहीं है। इस बात की जानकारी अरविंद केजरीवाल को भी है। शायद यही वजह है कि आम आदमी पार्टी नहीं चाहती है कि दिल्ली में बीस सीटों पर उपचुनाव हों। इसीलिए उसने इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाया है। दरसअल, अभी कुछ दिनों पहले ही आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने दावा किया था कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की बीस सीटों पर एक आंतरिक सर्वे कराया है। जिसमें लगभग सभी सीटों पर AAP की हालात खराब है। यानी इन सीटों पर अगर उपचुनाव होते हैं तो आम आदमी पार्टी के विधायक रहे नेता दोबारा विधानसभा पहुंचेगे इस बात की कोई गारंटी नहीं है।
अरविंद केजरीवाल को इस बात का डर है कि अगर उपचुनाव में करारी शिकस्त हुई तो इसका असर 2020 के विधानसभा चुनाव में भी पड़ेगा। दिल्ली की जनता केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच अकसर झगड़ा देखती रहती है। नजीब जंग के वक्त से जिस झगड़े की शुरुआत हुई थी वो अनिल बैजल के दरबार तक में दिखती है। कुछ रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि दिल्ली की जनता को भी ये लगने लगा है कि अरविंद केजरीवाल कानून के मुताबिक नहीं चलना चाहते हैं। वो कई मसलों पर जानबूझकर विवाद खड़ा करते हैं ताकि इसका उन्हें राजनैतिक फायदा मिल सके। अब बीस संसदीय सचिवों का ही मामला ले लीजिए। लंबी सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति से इन विधायकों की सदस्यता को रद्द करने की सिफारिश की थी। जिसे राष्ट्रपति ने मान लिया। लेकिन, आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रपति के फैसले पर ही सवाल खड़े करने शुरु कर दिए।
ऐसे में क्या समझा जाए कि आम आदमी पार्टी के नेता खुद को कानून से भी ऊपर समझते हैं। जबकि चुनाव आयोग और राष्ट्रपति ने फैसला कानून के दायरे में रहकर ही किया। बावजूद इसके इस पर बखेड़ा खड़ा किया गया। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बीस सीटें जीतने के भी लाले पड़ जाएंगे। साफ तौर पर कहा जा रहा है कि इस वक्त दिल्ली का माहौल आम आदमी पार्टी के फेवर में नहीं है। जिसका नुकसान अरविंद केजरीवाल को उठाना पड़ेगा। दिल्ली की जनता का ये भी मानना है कि केजरीवाल ने जो वादे किए थे उन्हें भी पूरा नहीं किया। दिल्ली में केजरीवाल ने सरकार बनाने से पहले जिस अलग राजनीति का दावा किया था वो भी देखने को नहीं मिला। केजरीवाल के तमाम मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। स्कैंडल में फंस चुके हैं। पुराने साथियों के साथ ही विवाद खड़ा हो गया है। ये सारी बातें दिल्ली की जनता को पसंद नहीं आ रही हैं। क्योंकि ऐसा तो दूसरे दलों में भी होता था फिर केजरीवाल खुद को दूसरे से अलग होने का दावा कैसे कर सकते हैं। केजरीवाल के सामने 2020 के चुनाव बड़ी चुनौती हैं। देखिए क्या होता है AAP का ?