लोकसभा के साथ सारे चुनाव एक साथ हों

यदि 2018 में ही सभी विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ करवा दिए जाएं तो भारत में नया इतिहास रचा जा सकता है ?

New Delhi, Feb 01: राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने आग्रह किया है कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। यदि ऐसा हो जाए तो नरेंद्र मोदी का नाम भारत के इतिहास में जरुर दर्ज हो सकता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तो आते-जाते रहते हैं। इतिहास के बरामदों में उनके नाम कहां गुम हो जाते हैं, किसी को पता नहीं चलता लेकिन ऐसे लोगों के नाम, चाहे वे इन कुर्सियों को भरें या न भरें, इतिहास हमेशा याद रखता है, जो बुनियादी परिवर्तन का विचार या कर्म उपस्थित करते हैं। सभी चुनावों को एक साथ करवाने का प्रस्ताव रखकर मोदी ने यही काम किया है। यदि समस्त विधानसभाओं और लोक सभा के चुनाव एक साथ हों तो देश को कई फायदे हैं।

Advertisement

पहला, पांच साल में सिर्फ 15-20 दिन ऐसे होंगे, जब नेता लोग सरकारी कामकाज में ढील देंगे। अभी तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ कई मंत्री और मुख्यमंत्रियों का एक ही काम रह गया है कि वे किसी न किसी चुनावी दंगल में लगातार खम ठोकते रहें, जैसे कि गुजरात में अभी-अभी हुआ। इस साल आठ राज्यों में चुनाव हैं। नेता लोग शासन करेंगे या चुनाव लड़ेंगे ? दूसरा, चुनावी दंगल चलते रहने के कारण राजनीतिक कटुता का सिलसिला भी जारी रहता है, जैसे कि उत्तरप्रदेश और गुजरात के चुनावों के दौरान हुआ।

Advertisement

इस कटुता की वजह से सामान्य कानून-निर्माण और शासन-संचालन में भी बाधा उपस्थित होती है। तीसरा, जगह-जगह होनेवाले चुनावों के कारण सरकार को बेहद फिजूलखर्ची करनी पड़ती है। सरकारी कर्मचारियों को भी खपाना पड़ता है। 1952 के पहले चुनाव में सिर्फ 10 करोड़ रु. खर्च हुए थे और 2014 के चुनाव में 4500 करोड़ रु. खर्च हुए। यदि सारे चुनाव एक साथ होंगे तो खर्च घटेगा।  सारे चुनाव एक साथ करवाने के लिए हमारे संविधान में एक बुनियादी संशोधन होना चाहिए। वह यह कि प्रत्येक विधानसभा और लोकसभा पूरे पांच साल काम करेंगी। बीच में कभी भंग नहीं होगी।

Advertisement

कोई भी सरकार तब तक इस्तीफा नहीं देगी, जब तक कि नई सरकार नहीं बन जाए। यह बात मैं कई वर्षों से कहता रहा हूं। यदि यह कायदा हमारे यहां शुरु हो जाए तो हमारे पड़ौसी देशों को भी अच्छी प्रेरणा मिलेगी। नेपाल में पिछले दस साल में दस सरकारें बदल चुकी हैं। हमारे यहां लोकसभा के चुनाव 2019 में होने हैं और आठ-दस विधानसभाओं के 2018 में ! यदि 2018 में ही सभी विधानसभाओं और लोक सभा के चुनाव एक साथ करवा दिए जाएं तो भारत में नया इतिहास रचा जा सकता है ? गुजरात, उप्र, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर जैसे प्रांतों के विधायकों को यह अपने प्रति अन्याय लग सकता है, क्योंकि उन्हें चुने हुए अभी साल भर भी नहीं हुआ है लेकिन देशहित के खातिर उन्हें यह खतरा जरुर मोल लेना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)