आम बजट का विरोध करने से पहले अपने गिरेबान में झांके विपक्ष

आम बजट पेश होने के बाद अब इस पर राजनैतिक बहस शुरु हो गई है। विपक्ष के नेता एक सुर में बजट पर अपनी नाखुशी जता रहे हैं। जानिए क्‍यों ?

New Delhi Feb 01 : आम बजट पेश हो चुका है। वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने अपनी पोटली से हर वर्ग को लुभाने की कोशिश की। किसी भी खास वर्ग पर कोई विशेष बोझ नहीं डाला गया है। अगर सामान सस्‍ते नहीं किए गए हैं तो महंगे भी नहीं हुए हैं। बीजेपी नेता केंद्र सरकार के इस आम बजट को ऐतिहासिक करार दे रहे हैं। लेकिन, विपक्ष के नेताओं को ये बजट दो कौड़ी का लग रहा है। विपक्ष से तारीफ की उम्‍मीद भी नहीं की जा सकती है ओर करनी भी नहीं चाहिए। क्‍योंकि राजनैतिक गलियारे में विपक्ष का मतलब ही विरोध होता है। विपक्ष में जब बीजेपी हुआ करती थी तब वो भी आम बजट का विरोध करती थी। आज वही काम दूसरे दल कर रहे हैं। हालांकि राजनीति में भी विरोध के स्‍तर में भी बदलाव की जरुरत है। आम बजट पर जो विपक्ष आज सरकार के बजट को घटिया ओर वाहियात बता रहा है दरअसल, विरोध करने से पहले उसे अपने भी गिरेबान में झांक लेना चाहिए।

Advertisement

जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम बजट पेश होने के बाद वित्‍त मंत्री अरुण जेटली और उनकी टीम को बधाई दी और कहा कि इस बजट से ‘नए भारत’ की परिकल्पना को मजबूत करने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी ओर पूर्व वित्‍त मंत्री और कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम का कहना है कि अरुण जेटली राजकोषीय मजबूती की परीक्षा में फेल हो गए हैं। उनका कहना है कि इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। पी चिदंबरम का कहना था कि 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP का 3.2% पर रखा गया था, लेकिन इसके 3.5 फीसदी पर पहुंचने की आशंका है। लेकिन, पी चिदंबरम को ये भी बता देना चाहिए था कि यूपीए वन और टू की सरकार में उन्‍होंने वित्‍त मंत्री रहते हुए कौन सा ऐसा तीर मार लिया था जिससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था में नई जान आ गई थी। अर्थव्‍यवस्‍था के हालात उस वक्‍त भी बहुत अच्‍छे नहीं थे।

Advertisement

लेकिन, अपनी गलतियां और कमियां किसी को नजर नहीं आती हैं। विपक्ष के साथ भी यही हाल है। आम बजट की खूबियां विपक्ष के किसी भी नेता को नहीं दिखाई पड़ रही है आखिर क्‍यों। मोदी सरकार के आम बजट में गरीबों और किसानों के लिए बहुत कुछ है। आखिर उस पर बात क्‍यों नहीं की जा रही है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड्गे कहते हैं कि आम बजट में मिडिल क्लास का ध्यान नहीं रखा गया। उधर, लालू यादव के बेटे तेजस्‍वी यादव कहते हैं आम बजट में किसानों के साथ छलावा किया गया। गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1600रू प्रति क्विंटल है लेकिन बाज़ार मे उस मूल्य पर कोई गेहूँ ख़रीदने वाला नहीं है। किसान को मजबूरन 1300 रुपए क्विंटल पर अपना गेहूं बेचना पड़ता है। अब जरा तेजस्‍वी से कोई ये बात पूछे कि जब सरकार किसान की फसल महंगे दाम पर खरीदने को तैयार है तो भला कोई क्‍यों बाहर जाकर कम दाम में फसल बेचेगा।

Advertisement

उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव भी आम बजट को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वो कहते हैं कि आम बजट से गरीब, किसान और मजदूरों को निराशा हाथ लगी है। बेरोजगार युवाओं को हताशा मिली है। ये बजट कारोबारियों, महिलाओं, नौकरीपेशा और आम लोगों के मुंह पर तमाचा है। यानी सीधे शब्‍दों में कहें तो अखिलेश यादव को लगता है कि अरुण जेटली ने आम बजट में किसी को कुछ दिया ही नहीं। हकीकत क्‍या है इसकी पड़ताल आप खुद भी कर सकते हैं। ऐसे नेताओं के लिए तो सिर्फ यही कहना मुनासिब होगा कि शायद उन्‍हें बजट के बारे में कुछ जानकारी ही नहीं। तभी तो वो हर वर्ग को लपेटकर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। बजट के बिंदुवार कोई भी कटाक्ष नहीं कर रहा है। क्‍या ये फौरी ज्ञान है या फिर सिर्फ विरोध की राजनीति जो नेता बिना अपने गिरेबान में झांकते हुए करते हैं।