राजस्थान में इस तरह से जीतेगी बीजेपी, MCD का मॉडल लागू किया जाएगा

राजस्थान में बीजेपी भले उपचुनाव हार गई लेकिन वो अभी भी विधानसभा चुनाव जीत सकती है, इस के लिए वो MCD वाला फॉर्मूला अपना सकती है।

New Delhi, Feb 04: चुनावों को सियासत में पैमाना माना जाता है, जनता की अदालत से पास होना आसान नहीं है, जनता मौका तो देती है लेकिन संतुष्ट ना होने पर ऐसे वक्त में मार लगाती है जब आपको उम्मीद ही नहीं होती है। राजस्थान में बीजेपी के साथ यही हो रहा है। उप चुनाव में बीजेपी को राज्य की तीनों सीटों पर कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा, मोदी तुझसे बैर नहीं लेकिन महारानी की खैर नहीं, ये वो नारा था जो राजस्थान में गूंज रहा था। क्या ये माना जाए कि भाजपा को वसुंधरा राजे के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है, राजस्थान के समीकरण और इतिहास की बात करें तो यहां पर हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा रही है, वसुंधरा से पहले कांग्रेस के अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे।

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गहलोत से जनता ऊबी तो वसुंधरा मुख्यमंत्री बनी, अब फिर से पांच साल वाला फॉर्मूला सच होने को है, भाजपा के लिए परेशानी तो बहुत है लेकिन एक मॉडल है जिसे लागू करके बीजेपी राजस्थान में जीत फिर से हासिल कर सकती है। ये फॉर्मूला दिल्ली के MCD चुनाव वाला है. एमसीडी चुनाव में भाजपा ने अपने सभी पार्षदों के टिकट काट दिए थे, जनता बीजेपी के काम से नाराज थी, इसलिए ये माना जा रहा था कि एमसीडी के चुनाव में भाजपा की हार होगी. केजरीवाल को भी उम्मीद यही थी. लेकिन भाजपा ने नया दांव चलते हुए सभी पार्षदों के टिकट काट कर नए चेहरों को मौका दिया. इस से भाजपा जीत गई, इस फॉर्मूले से पचा चलता है कि जाना पार्टी से नहीं नेताओं से नाराज थी। यही फॉर्मूला भाजपा राजस्थान में इस्तेमाल कर सकती है।

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राजस्थान के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि सरकार विरोधी लहर के कारण ज्यादातर विधायक चुनाव हार जाते हैं। उपचुनाव में मिली हार से भाजपा अब इस फॉर्मूले को अपनाने की तरफ बढ़ रही है। माना जा रहा है कि भाजपा अपने 125 विधायकों के टिकट काट सकती है। इसके पीछे आंकड़ों का भी खेल है. राजस्थान में चुनाव में उतरने वाले सत्ता पक्ष के विधायकों में से केवल 17 फीसदी ही जीत पाते हैं। इसके अलावा सत्ता बदलने का ट्रेंड भी इस राज्य में रहा है। ऐसे में भाजपा के पास केवल एक विकल्प है कि वो अपने मौजूदा विधायकों के टिकट काटे। नए चेहरों का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि वो जनता से ये कह सकते हैं कि पुराने वाले ने काम नहीं किया तो इसकी सजा हमें मत दो।

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कुल मिलाकर राजस्थान में भाजपा के सामने एक ही रास्ता है कि वो दिल्ली के एमसीडी चुनाव वाला फॉर्मूला लागू करे, इस से विद्रोह की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है लेकिन जीत के लिए ये दांव खेलना जरूरी है, अगर भाजपा ये दांव नहीं चलती है तो चुनाव तो पहले से हारा हुआ है ही, वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा एक नहीं कई मौकों पर जाहिर हो चुका है। वसुंधरा वैसे भी अपनी ही पार्टी के लिए कई बार मुसीबत खड़ी कर चुकी हैं। उपचुनाव में हार के बाद उनका कद भी कम हुआ है. ऐसे में भाजपा टिकट वितरण में वसुंधरा को किनारे कर सकती है, बहुत संभव है कि इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा भी कोई नया और युवा नेता हो।