अब तो नीतीश कुमार भी संघ के समर्थन में आ गए, कांग्रेस अध्यक्ष को पढ़ाया पाठ

नीतीश कुमार कभी संघ मुक्त भारत का नारा दिया करते थे, वो अब संघ प्रमुख मोहन बागवत के बयान का बचाव कर रहे हैं, क्या गजब बदलाव है

New Delhi, Feb 13: राजनीति में कितनी तेजी से हालात बदल जाते हैं, इसके कई उदाहरण हैं, लेकिन हालिया उदाहरण नीतीश कुमार का है, 2014 में एनडीए से अलग हो कर महागठबंधन में शामिल हो कर चुनाव लड़ने वाले नीतीश ने दो साल में ही महागठबंधन को तिलांजलि दे कर वापस एनडीए का दामन थाम लिया था। इतनी तेजी से बदलाव का शायद ये पहला उदाहरण होगा, बहरहाल बीजेपी इस से खुश थी, नीतीश भी कमोवेश खुश ही थे, उनको लालू के दबाव का सामना नहीं करना पड़ रहा है। एक और बदलाव आया है नीतीश के अंदर, जब तक एनडीए से बाहर रहे संघ पर जोरदार हमला बोलते रहे, लेकिन अब संघ का बचाव कर रहे हैं। इस से पता चलता है कि राजनीति में जो आज आपके खिलाफ हैं वो कल साथ भी आ सकते हैं।

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दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सेना की तैयारियों को लेकर एक बयान दिया था, उन्होंने कहा था कि स्वयंसेवकों को तैयार होने में केवल 2 दिन लगेंगे, जबकि सेना को तैयार होने में 6 महीने का समय लगेगा, ये बात उन्होंने आतंकियों को सबक सिखाने के संदर्भ में कही थी। इसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, राहुल गांधी ने कहा कि भागवत ने सेना का अपमान किया है, वो सेना के जवानों का हौसला कम कर रहे हैं। इस पर बीजेपी ने भी पलटवार किया, लेकिन संघ के बचाव में नीतीश कुमार का आना लोगों को हैरान कर गया। नीतीश जो संघ के खिलाफ हुआ करते थे, वो संघ प्रमुख भागवत के बयान के समर्थन और बचाव में सामने आए, उन्होंने जो कहा उस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नीतीश के सुर कितने बदल गए हैं।

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नीतीश कुमार ने कहा कि इस में गलत क्या है, अगर कोई संस्था देश की रक्षा के लिए सीमा पर जाने को तैयार है और कह रही है कि उसे तैयार होने में 2 दिन से भी कम का समय लगेगा तो इस पर विवाद का कारण क्या है। नीतीश ने सीधे कहा कि इस में विवाद की कोई वजह नहीं है, नीतीश के इस बयान पर हैरानी क्यों हो रही है इसका कारण भी बताते हैं, नीतीश महागठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री रहते हुए संघ के खिलाफ हमला बोला करते थे, बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था तो नीतीश ने संघ मुक्त भारत का नारा दिया था। वो हर रैली और सभा में संघ मुक्त भारत की बात करते थे। लेकिन एनडीए में दोबारा वापसी के बाद वो नरम पड़ गए, क्या ये विचारधारा के साथ समझौता नहीं है।

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कुछ भी हो नीतीश कुमार के सामने अब कोई विकल्प नहीं बचा है, अपने सियासी जीवन में अब तक नीतीश ने कई बार इस तरह से बदलाव किए हैं, लेकिन ये उनका आखिरी दांव है, ये वो भी समझ रहे हैं इसलिए इस बार कुछ ऐसा कहने से बच रहे हैं जिसका उनको नुकसान उठाना पड़े। इसलिए वो संभल संभल कर चल रहे हैं। विचारधारा की कीमत राजनीति सिवाय खुद को अलग दिखाने के कुछ नहीं है, हम उनकी विचारधारा से अलग हैं, वो हमारी विचारधारा के नहीं है। बाकी राजनीति का रुख और रवैया तो आ देख ही रहे हैं। आगे देखते रहिए लोकसभा चुनाव तक जाने क्या क्या देखने को मिलेगा। सत्ता के लिए एक दूसरे का गला काटने की इच्छा रखने वाले भी साथ आ सकते हैं।