घटते रोजगार के बीच परेशान हैं रेलवे के परीक्षार्थी

रेलवे में इस बार अलग अलग श्रेणियों की 90,000 भर्तियां आईं हैं। रोजगार और नौकरियों में नई नई शर्तें जोड़े जाने से छात्रों में बंटवारा हो गया है।

New Delhi, Feb 19: अप्रैल से जून 2017 के बीच संगठित क्षेत्रों में रोजगार सृजन में गिरावट आई है। नए रोजगार का सृजन 65 प्रतिशत कम हुआ है। मार्च 2017 में 1 लाख 85 हज़ार रोजगार सृजित हुए थे जो अप्रैल से जून के बीच घट कर 65,000 पर आ गए। भारत सरकार के लेबर ब्यूरो के आंकड़े हैं। 2016 के अप्रैल जून में 77,000 रोजगार सृजित हुए थे। रेलवे में इस बार अलग अलग श्रेणियों की 90,000 भर्तियां आईं हैं। नौकरियों में नई नई शर्तें जोड़े जाने से छात्रों में बंटवारा हो गया है। जहां आई टी आई की पात्रता नहीं थी वहां यह पात्रता लगाकर बाकी छात्रों को रेस से बाहर कर दिया गया है। ग्रुप डी और सहायक लोको पायलट की नौकरियां अब आई टी आई वालों के लिए रिज़र्व हो गईं हैं। बहुत कम सीट ग़ैर आई टी आई वालों के लिए छोड़ी गई है।

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इस कारण अब रेलवे के बेरोज़गार आई टी आई बनाम ग़ैर आई टी आई की डिग्री में बंट गए हैं। दूसरी तरफ़ उम्र सीमा घटाकर बड़ी संख्या में छात्रों को बाहर कर दिया गया है जो तीन चार साल से तैयारी कर रहे थे। उम्र के हिसाब से भी छात्र बंट गए हैं। कोई चुप है तो कोई सड़क पर आंदोलन कर रहा है। इस झगड़े में यह सवाल ग़ायब हो गया है कि पिछले चार साल से जो बहालियां बंद थीं, उसका आई टी आई, ग़ैर आई टी आई, 28 साल वाले और 30 साल वालों पर क्या असर पड़ा है। आई टी आई के छात्र इसमें बिजी हो गए हैं कि उन्होंने तकनीकि शिक्षा हासिल की है तो उन्हें ये सीट मिलनी चाहिए। वे आपस में लड़ते रहें मगर इस गेम के बाद इस पर नज़र रखनी चाहिए कि भर्ती की प्रक्रिया कितने दिनों में पूरी होती है। कई बार दो दो साल लग जाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि भर्ती निकालकर नौजवानों को 2019 तक के लिए उलझा दिया गया हो। उसके बाद परीक्षा लटकाने और अटकाने के सौ बहाने तो पहले से ही हैं।

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इस दांव से दो काम हो गया। अगर सभी प्रकार के छात्र फार्म भरते तो इस बार फार्म भरने वालों की संख्या 3 करोड़ तक पहुंच जाती जिससे हंगामा होता। बेरोज़गारों की संख्या दिखती और मुद्दा बनता। साथ ही 3 करोड़ छात्रों का इम्तहान लेने की क्षमता भी नहीं है। ग़लतियां होतीं और नकल होने के आरोप में हंगामा होता सो अलग। किसी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर ये ज्ञान दिया है। 2014 में ग्रुप डी की भर्ती आई थी तब 1 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने फार्म भरे थे। इसलिए इस बार ऐसी शर्तें हर जगह जोड़ दी गईं ताकि बेरोज़गारों की संख्या कम दिखे। अब जब छात्र कई राज्यों में सड़कों पर उतर आए हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार उम्र की सीमा में छूट देगी। बात सही है कि अगर कमी करनी थी तो पहले ही बता देते। छात्रों से चार साल तैयारी करवा कर अचानक कहेंगे कि 30 साल वाले नहीं, 28 साल वाले ही देंगे तो यह सरासर नाइंसाफी है।

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भारत में इस साल सड़क निर्माण की रफ़्तार धीमी हुई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में कहा था कि इस साल 9000 किमी सड़क बनने का अनुमान है। इस हिसाब से इसका ग्रोथ रेट 10 प्रतिशत ही रहा जबकि 2015-16, 2016-17 में ग्रोथ रेट 37 और 36 प्रतिशत रहा है। 2015-16 में 6,061 किमी सड़कें बनी थीं। 2016-17 में 8,231 किमी सड़कें बनी थीं। 2017-18 में अभी तक 5,680 किमी सड़कें बनी हैं। चार साल पहले की तुलना में यह लंबाई भी दुगनी है। उम्मीद है कि 9000 किमी का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। यह धीमापन इसलिए आया है क्योंकि ठेके देने में काफी देरी हुई है। पिछले दो साल में कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं बना है। एक और जानकार ने कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की सुस्ती के कारण धीमापन आया है। यह रिपोर्ट बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी है। मेघा मनचंदा ने लिखी है। लाइव मिंट की अपर्णा अय्यर ने लिखा है कि पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले के कारण सभी बैंकों की चौथी तिमाही की रिपोर्ट में घाटा ही दिखेगा। अकेले गीतांजली जेम्स लिमिटेड पर 7,800 करोड़ से अधिक का लोन है। बाकी तीन कंपनियों पर कितना लोन है, इसका पब्लिक में कोई रिकार्ड नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार और टीवी एंकर रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)