UPA सरकार ने मानी होती इस शख्‍स की बात तो नहीं होता PNB महाघोटाला

PNB महाघोटाला UPA सरकार की देन है। इस बात का खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि कांग्रेस के ही एक बेहद करीबी व्‍यक्ति ने किया है।

New Delhi Feb 20 : बेशक कांग्रेस पार्टी PNB महाघोटाले पर राजनीति कर रही हो। वो इस केस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कोशिश कर रही हो लेकिन, हकीकत ये है कि अगर UPA सरकार चाहती तो आज नीरव मोदी और मेहुल चौकसी पंजाब नेशनल बैंक को 11 हजार 300 करोड़ रूपए की चपत नहीं लगा पाते। देश के सबसे बड़े बैंकिंग सेक्‍टर का घोटाला UPA सरकार की ही देन है। अगर साल 2013 में UPA सरकार ने अपने ही एक आदमी की बात मानी होती तो यकीनन आज ये दिन ना देखना पड़ता। इस शख्‍स ने पांच साल पहले ही इस बात का अंदेशा जाता दिया था कि कुछ गड़बड़ होने वाली है। लेकिन, UPA सरकार के दौरान तो सरकार ने इस बात पर ध्‍यान दिया और ना ही उस वक्‍त भारतीय रिजर्व बैंक ने इस शिकायत पर कोई संज्ञान लिया। जिसका नतीजा आज देश के सामने है।

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हालांकि UPA सरकार में ऐसा क्‍यों हुआ और क्‍यों किया गया इस पर सवाल खड़े हो सकते हैं। कांग्रेस पार्टी से ये पूछा जाना चाहिए कि 2013 में उन्‍होंने इस फ्रॉड को रोकने के लिए कोई कदम क्‍यों नहीं उठाया। क्‍या जान बूझकर इस केस में ढील दी गई ताकि घोटाला हो सके या फिर अनजाने में ही नीरव मोदी और मेहुल चौकसी UPA सरकार की नजरों से बच गए। सवाल कई हैं। जिनके जवाब कांग्रेस को देने होंगे। लेकिन, मसला क्‍या है जरा इसे भी समझ लीजिए। आपने इस केस में दिनेश दुबे का नाम जरूर सुना होगा। दिनेश दुबे UPA सरकार में इलाहाबाद बैंक के इंडिपेंडेंट डायरेक्‍टर हुआ करते थे। दिनेश दुबे राजस्‍थान के बूंदी में कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे। UPA सरकार में ही उन्‍हें एक पत्रकार की हैसियत से इलाहाबाद बैंक के बोर्ड में नियुक्त किया गया था। इसी दौरान पद पर रहते हुए उन्‍हें कई गड़बड़झाले का पता चला।

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दिनेश दुबे ने ही साल 2013 में इलाहाबाद बैंक के इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के तौर पर गीतांजलि जेम्स के खिलाफ UPA सरकार और आरबीआई को असहमति पत्र यानी डिसेन्ट नोट भेजा था। दिनेश दुबे ने सरकार और आरबीआई को ये डिसेंट नोट इसलिए लिखा था कि उस वक्‍त मेहुल चौकसी की कंपनी गीतांजलि जेम्स के लोन को अप्रूव करने के लिए उन पर दवाब डाला गया था। लेकिन, सबसे अफसोस की बात ये है कि दिनेश दुबे के इस डिसेंट नोट पर ना तो UPA सरकार ने कोई संज्ञान लिया और ना ही आरबीआई ने। जबकि आज इन्‍हीं दिनेश दुबे को इस केस का विसल ब्‍लोअर माना जा रहा है। प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और मीडिया हाउसेस के लोगों की लाइन इनके घर के बाहर लगी है। ताकि UPA सरकार के दौरान में उपजे इस महाघोटाले में कुछ एक्‍सक्‍लुसिव हाथ लग जाए। दिनेश दुबे का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे मुलाकात करें तो वो ये बता सकते हैं कि बैंकों की लूट को कैसे रोका जाए।

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बताया जाता है कि दिनेश दुबे को जब UPA सरकार और आरबीआई से अपने डिसेंट नोट पर कोई जवाब नहीं मिला तो उन्‍होंने इलाहाबाद बैंक के बोर्ड से ही अलग होने का मन बना लिया था। उन्‍होंने स्‍वास्‍थ्‍य कारणों का हवाला देकर बोर्ड से इस्‍तीफा दे दिया था। वाकई अगर UPA सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने उस वक्‍त दिनेश दुबे की चेतावनी को मान लिया होता तो आज ये दिन ना देखना पड़ता। इस केस ने दिनेश दुबे की जिदंगी को ही बदल दिया है। कल तक उन्‍हें कोई पूछता नहीं था आज उनका फोन लगातार बजता रहता है। उनके पास मैसेज आते हैं। मीडिया हाउस के लोग उनसे मिलना चाहते हैं। इस केस के बारे में जानना चाहते हैं। प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई भी इस केस में दिनेश की मदद ले रही हैं। काश ये मदद पहले ही ले ली जाती। दिनेश 11 महीने तक इलाहाबाद बैंक के बोर्ड में रहे थे। दिनेश कहते हैं कि अब मैं कांग्रेस से भी अलग हो चुका हूं।