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कभी सोचा है कि हम-आप इन दलों को कोई पैसा नहीं देते हैं, तो विलासिता से पार्टी कैसे चलती है?

कभी सोचा है कि जब हम-आप इन दलों को कोई पैसा नहीं देते हैं तो विलासिता से पार्टी किस तरह चलती है? किस तरह राहुल हो या मोदी सालों भर चुनावी रैलियां करते रहते हैं?

New Delhi, Feb 21 : आम लोग मोदी-मोदी, राहुल-राहुल करते रहे,”मेरी कमीज तेरी कमीज से सफेद कैसे” की अंतहीन बहस में लगे रहे हैं, लेकिन कभी हकीकत का सामना करने की कोशिश न करें।
जरा रुक कर सोचें। किस तरह ये गोरमिंट और दूसरी पार्टी सबकी काट रही है।
जरा सोचें-
हम-सब किसी न किसी दल-विचाधारा के सपोर्टर होते हैं। उनके लिए वोट करते हैं। लड़ते हैं। मेरा दावा है कि मोदी के बड़े से बड़े सपोर्टर हो या राहुल के बड़े से बड़े सपोर्टर ने कभी अपनी पार्टी को कोई फंड नहीं दिया होगा।
कभी सोचा है कि जब हम-आप इन दलों को कोई पैसा नहीं देते हैं तो विलासिता से पार्टी किस तरह चलती है? किस तरह राहुल हो या मोदी सालों भर चुनावी रैलियां करते रहते हैं? बिना रुके। बिना किसी कमी के।

हम-आप पूरे जीवन में एक सावर्जनिक काम करने में हांफ जाते हैं। सारी पूंजी निकल जाती है। ये दल हर दिन ऐसे आयोजन में लगे रहते हैं। कभी मोदीजी की रैली देखी है? कभी राहुल का रोड शो देखा है? मोदीजी की एक रैली में करोड़ों खर्च आसानी से आ जाता है। रैली के लिए मंच बनाने में इतना खर्च आता है कि उससे भी कम हम-आप पूरी जिंदगी में एक मकान बनाने में कर देते हैं। और उस मंच को महज चंद घंटे के उपयोग करने के बाद तोड़ दिया जाता है। पूरी रैली में पैसा फेंका हुआ दिखता है। कांग्रेस-बीजेपी या कोई बड़े दल के कार्यक्रम में जाएं, लगेगा पैसा खर्च की न सीमा है न अहमियत। पानी की तरह बहता दिखता है। चुनावों में छुटभैया नेता भी महीनों चाटर्ड प्लेन से घूमता रहता है। हवाई जहाज का यूज तो ये ओला टैक्सी की तरह करते हैं।

अब जरा जवाब दें, इसके लिए खर्च कहां से आता है? कौन देता है? कैसे देता है? और जो देता है वह किन अपेक्षाओं पर देता है? लोगों के लिए एक-एक पाइ का हिसाब देने के लिए मजबूर किया गया लेकिन पॉलिटिकल डोनेशन पर परदा और पहरा दिनों-दिन मजबूत ही क्यों किया जा रहा है? क्या है जो वे छिपाना चाहते हैं? क्यों नहीं ये दल अपनी फंडिंग को सार्वजनिक करते हैं अगर ये ईमानदारी की मिसाल हैं? मिसाल तो घर से ही देनी चाहये ना?

आप अपने-अपने दलों की भक्ति में लीन रहे। हकीकत है कि विजय माल्या, राहुल और मोदी, दोनों की मदद से राज्यसभा पहुंचता है। नीरव मोदी राहुल और मोदी दोनों से नजदीकी संबंध बनाए रखता है।
आप को ये सब मिलकर फुटबॉल की तरह अपने हिसाब से इधर-उधर टहलाते रहेंगे और आप भी मोदी-मोदी, राहुल-राहुल करते इधर-उधर बिन पेंदी लोटा की तरह बिना उद्देश्य, तर्क के भटकते रहेंगे। फिर कह रहा हूं, नागरिक बनें। दल के कार्यकत्ता बनें। नहीं तो बैंकों की कतार में आप ईएमआई चुकाने के लिए खड़े रहेंगे और कोई आपको चिढ़ाते हुए सामने दिखता रहेगा।

(वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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