अमेरिका की बंदूक-संस्कृति

ट्रंप ने कहा कि इन स्कूलों के अध्यापकों को बंदूक चलाने और उन्हें छिपाकर रखने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे बंदूकों का मुकाबला बंदूकों से कर सकें।

New Delhi, Feb 26 : अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बंदूकबाज राष्ट्र है। अमेरिका के नागरिकों के पास जितनी बंदूकें हैं, उतनी दुनिया के किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के पास नहीं है। अमेरिका में सिर्फ 31 करोड़ लोग रहते है लेकिन उनके पास लगभग 30 करोड़ बंदूकें हैं। दुनिया के सबसे उन्नत 22 देशों में बंदूकों से जितनी हत्याएं होती है, उनसे 25 गुना ज्यादा हत्या अकेले अमेरिका में हो जाती हैं।

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अमेरिकी टीवी चैनल और अखबार बंदूकबाजी से भरे होते हैं। पिछले दो माह में सात अमेरिकी स्कूलों में गोलीबार के वाकए हो गए है। जिस दुर्घटना ने अमेरिका में आजकल बंदूक-विरोधी माहौल खड़ा कर दिया है, वह वेलेंटाइन डे पर फ्लोरिडा के एक स्कूल में घटी थी। उसमें 17 लोग मारे गए और 15 बुरी तरह घायल हो गए। इस बंदूकबाजी पर जो प्रतिक्रिया डोनाल्ड ट्रंप ने दी, उसने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है।
ट्रंप ने कहा कि इन स्कूलों के अध्यापकों को बंदूक चलाने और उन्हें छिपाकर रखने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे बंदूकों का मुकाबला बंदूकों से कर सकें। ट्रंप के इस बयान के विरोध में कई अध्यापक और छात्र सड़कों पर उतर आए हैं। इस बयान से साफ जाहिर होता है कि ट्रंप विचारशील आदमी नहीं हैं। उन्होंने ऐसा बयान देकर अमेरिका की बंदूक संस्कृति को और अधिक मजबूत बना दिया है। वहां बंदूकें घटने की बजाय बढ़ेंगी।

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इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अमेरिका की रायफल एसोसिएशन ने उनके चुनाव में उनकी सक्रिय सहायता की थी। Donald Trumpट्रंप ने कल बंदूकबाजी के लिए वीडियो गेम्स और फिल्मों को भी जिम्मेदार ठहराया है लेकिन बंदूक रखने को नियंत्रित करने या प्रतिबंधित करने के बारे में वे एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। रायफल संघ का कहना है कि ऐसा करना अमेरिकी संविधान का उल्लंघन और मानवीय स्वतंत्रता का हनन होगा।

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सच्चाई तो यह है कि गोरे यूरोपीय लोगों ने दो-ढाई सौ साल पहले जब अमेरिका पर कब्जा किया था तो उनका एक मात्र सहारा बंदूक ही थी। Donald Trump1लेकिन अब वे चाहें तो बंदूक रखने पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। अमेरिका अब इतना सभ्य और संपन्न बन गया है कि वह अपनी इस बंदूक-संस्कृति को अंतिम नमस्कार कर सकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉ़ल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)