आजाद भारत में सबसे लंबे समय तक चले दंगे की कहानी
बिहार पुलिस कप्तान द्विवेदी का सीधे क्या सरोकार था इस दंगे में, इसे दूसरे तरीके से साफ समझा जा सकता है।
New Delhi, Mar 02 : भागलपुर दंगे में घटनाओं को नृशंस तरीके से अंजाम देने की कई कहानियां तो है हीं और अपराधियों-राजनेताओं के गंठजोड़ द्वारा इसे परवान चढ़ाने की बात भी है ही लेकिन उस समय सबसे शर्मसार करनेवाली दूसरी बात थी. वह यह कि तब जिले के पुलिस के कप्तान केएस द्विवेदी एक ऐसे पुलिस अधिकारी के तौर पर उभरे थे जो खुद तो खुलेआम इस कत्लेआम को करने-करवाने में रुचि ले ही रहे थे, उनके इशारे पर पुलिसवाले भी इस खेल में शामिल हो गये थे.
पुलिस कप्तान द्विवेदी का सीधे क्या सरोकार था इस दंगे में, इसे दूसरे तरीके से साफ समझा जा सकता है. घटना के बाद द्विवेदी को उनके पद से हटाया गया. उनकी जगह दत्त नामक एक एसपी जिले में नियुक्त हुए. घटना की तपीश ज्यादा थी तो दिल्ली से प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी भागलपुर पहुंचे लेकिन एयरपोर्ट पर ही पुलिसवालों के विरोध का सामना करना पड़ा.
एसपी को हटाये जाने के विरोध में नारे लगते रहे और यह विरोध इतना तगड़ा था या इस कदर उन्मादी स्वरूप लिये हुए था कि देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इसके सामने विवश नजर आ रहे थे और वे भागलपुर पहुंचकर भी प्रभावित इलाके में नहीं जा सके, सिर्फ अस्पतालों में जाकर लौट गये. उस समय बिहार में कांग्रेसी सत्ता थी और कांग्रेसी आपस में ही दंगे के बहाने अपनी राजनीति साधने में लगे हुए थे.
तब मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे और उनके पहले मुख्यमंत्री रहे भागवत झा आजाद से उनके राजनीतिक रिश्ते 36 के थे. सत्येंद्र नारायण सिन्हा दंगे को रोकने में एक नाकाम मुख्यमंत्री की तरह साबित हुए और उन्हें अपने पद से जाना पड़ा और उनकी जगह जगन्नाथ मिश्र को सीएम की कुरसी मिली. बाद में सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने अपनी आत्मकथा ‘ मेरी यादें-मेरी भूलें’ में लिखा कि मेरे कांग्रेस के लोगों ने मेरे साथ खेल किया. उन्होंने सीधे तौर पर आजाद के खेल की ओर इशारा किया. सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने यह भी लिखा कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी अनावश्यक रूप से राज्य की सत्ता में हस्तक्षेप कर मामले को गलत दिशा में जाने दिया. एसपी द्विवेदी को हटाने के पहले एक बार राज्य सरकार से बात करनी चाहिए थी, जो प्रधानमंत्री ने नहीं किया था.