भाजपा देश को कांग्रेसमुक्त कर पाए या नहीं, लेकिन कांग्रेस ज़रूर डूबते-डूबते वाममुक्त कर जाएगी
कांग्रेस के मामले में सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है- पिछली बार 36 फीसदी वोट लाने वाली कांग्रेस इस बार डेढ़ फीसदी पर सिमट गई है।
New Delhi, Mar 03 : त्रिपुरा का चुनाव परिणाम संसदीय वामपंथी दलों, खासकर सीपीएम के लिए एक ज़रूरी संदेश है कि अब वाम राजनीति करना कांग्रेस के कंधे पर चढ़कर मुमकिन नहीं रह गया है। इस नतीजे ने सीपीएम के भीतर येचुरी-करात डिबेट में करात की लाइन को पुष्ट करने का काम किया है और केरल के वाम बनाम कांग्रेस के समीकरण को सही ठहराया है। ज़रा आंकड़ों पर नज़र डालें।
पिछली बार यानी 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार सीपीएम के वोटों में पांच फीसदी की गिरावट आई है- 48 से घटकर 43 फीसदी। कांग्रेस के मामले में सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है- पिछली बार 36 फीसदी वोट लाने वाली कांग्रेस इस बार डेढ़ फीसदी पर सिमट गई है। मतलब ये कि भाजपा को साफ तौर पर 40 फीसदी वोटों की बढ़त त्रिपुरा में फोकट में मिली है। डेढ़ फीसदी वोट उसके पिछली बार थे। कुल हुए 41.5 फीसदी जबकि अभी चुनाव आयोग की साइट भाजपा के 42.4 फीसदी वोट दिखा रही है। यानी संघ की कुल मेहनत 0.7 फीसदी सकारात्मक वोट हासिल करने में गई। बाकी सब नकारात्मक वोट है मने भाजपा की कांग्रेसमुक्त परियोजना वाला वोट।
इसलिए मुझे लगता है कि त्रिपुरा के मौजूदा जनादेश और पश्चिम बंगाल में दो चुनाव पहले के जनादेश की अगर तुलना की जाए, तो एक दिलचस्प संदेश निकलेगा। ममता बनर्जी के पहली बार विजयी होने के वक्त शायद सीपीएम इस बात को न समझ पाई हो कि कांग्रेस के साथ रहकर जीतना अब मुश्किल होता जा रहा है, लेकिन इस बार उसके नेताओं को यह बात समझ में आएगी। सवाल उठता है कि फिर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मोर्चे का क्या होगा? ये सवाल तभी तक है जब तक वाम दल कांग्रेस के कंधे पर सिर रखकर सपने देखेंगे। कंधा झटक कर अपना काम खड़ा करने और अपनी पहचान वापस पाने की किसी कार्ययोजना के बगैर यह उहापोह बनी रहेगी कि कांग्रेस को छोड़ें या पकड़ें।
कुल मिलाकर निष्कर्ष एक ही है- भाजपा देश को कांग्रेसमुक्त कर पाए या नहीं, लेकिन Congress ज़रूर डूबते-डूबते देश को वाममुक्त कर जाएगी। बात दरअसल यों है कि भाजपा कांग्रेसमुक्त का नारा देकर दरअसल Congress के सहारे देश को वाममुक्त करने का प्रोजेक्ट चला रही है। एक बार राजनीति वाममुक्त हो गई, फिर कौन बताने आएगा कि भइया भाजपा और कांग्रेस दरअसल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? तो आखिरी सबक ये है कि वाम राजनीति को न्यूनतम इसलिए बचे रहना होगा ताकि वह कांग्रेस और बीजेपी की नूराकुश्ती पर लगातार टॉर्च मारती रहे। आज की स्थिति में यह भी नहीं हो रहा है। सबसे बड़ा संकट यहां है।