होली में गरजता कमजोर आदमी मेरी लोकतंत्र में आस्था को बढ़ा देता है

मुझे आज होली में दुनिया का वो सबसे बड़ा दार्शनिक याद आ रहा जो केवल हिंदुस्तान के गांव में पैदा होता है।

New Delhi, Mar 03 : आज मन एक सूखी ठूंठ डाल है जिस पर बस घर-द्वार दोस्त की यादों के कुछ सूखे पलाश लटके हुए हैं जो शाम तक झड़ भी जायेंगे शायद। ये सोच के केलेज़े में हुक उठ जाती है कि घर के पीछे आम गाझ पर कोयल कुक रही होगी। मैं उन कोयलों को गूंगी हो जाने की बेअसर बददुआ दे रहा हूँ।बाड़ी में जो मटर गदराया होगा उसे छुड़ा के खाने का सुख अब पास नही है। चारों तरफ एक जकड़न है जिससे छूटा आदमी ही मटर छुड़ा सकता है खेत में बैठ के। ये काम गुलामों मजबूरों के नसीब में नही।

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टेशू के फूल कभी हाथ से मसल कर रंग बना होली खेला करता था। बचपन के सारे जमा फूल लुटा चूका हूँ। अब कुछ तस्वीरें हैं पास में उन दिनों की जिसमे कुछ फूल दिख रहे जमीन पर बिखरे हुए। ये वही टेशू वाले फूल हैं। अब उन्हीं टेशू की टीस से घायल हूँ। मेरी हसरतें बौरायी बकरी हो जाना चाहती हैं जो पलाश के जंगलों में फुदक फुदक कुलाचे भरना चाहती है। ये बकरी एक बार खेत में घुस चना चर लेना चाहती है और वापस खा पी के दुआर के देहरी पे आ जमीन पर लोट जाना चाहती है। मैं अभी घर की वो काली बिल्ली हो जाना चाहता हूँ जो रसोई में रखे होली के बने पुए झपट्टा मार लपक भाग निकले और कहीं किसी कोने बैठ चूहों के संग बाँट के खाये। मुझे गांव का हर वो मताल पियक्कड़ आज ग़जब याद आ रहा जिसके तन पर एक कपड़ा नही होगा पर मन पे रेशमी टांका टका होगा और वो सड़क पे हर आते जाते आदमी से” होली है..होली है कह के गले लिपट जाता होगा।

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मुझे आज हर वो साहसी भंगेड़ी गंजेड़ी याद आ रहा है जो आज भोरे से पीने बैठा होगा और दुपहर तक बेहिचक ग्राम के प्रधान तक को गाली दे देने का कूवत जमा कर चुका होगा। मैं गांव जा आज उस ताड़ी दारु पिये मतवाले के लिए सीटी बजाना चाहता था जो दिन भर पीने के बाद जब शाम हिलता डुलता जब अपने घर की ओर जायेगा, रास्ते में मिलते कई इज़्ज़तदारों का रंग उतारता जायेगा और सारे संभ्रांत लोग मिल के भी उसका कुछ ना बिगाड़ पाएंगे।
मुझे आज होली में दुनिया का वो सबसे बड़ा दार्शनिक याद आ रहा जो केवल हिंदुस्तान के गांव में पैदा होता है और एक क्वार्टर बोतल में लोटा भर पानी मिला पीने के बाद ये अमृत वचन बोल मुझे ऊर्जा से भर देता है” भक्क्क $%%###, किसी से डरते हैं क्या? जो पैसा वाला है $%%### अपने घर होगा। हमारा कोई चलाता है क्या?”

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आधी बोतल दारु से चल रहा ऐसा आदमी मेरा आदर्श है जो बीच सड़क पर दुनिया में राज करने वाली पूंजी को ठोकर मार आगे बढ़ता जाता है।
आज गांव के चौराहे पर कुरता फाड़ के चिल्ला रहा वो मेरा प्रिय आदर्श मार्टिन लूथर किंग मुझे बहुत याद आ रहा जो आधी बाल्टी ताड़ी पी और एक बाल्टी कीचड़ देंह पर सान सीना तान के खड़ा होगा और जोर जोर से छाती ठोंक के कह रहा होगा “हट्ट $%%### कोई विधायक सांसद नही मानते हम। $%%### हम जिताएं हैं और $%%### तुम लोग ऐश करता है रे। चमड़ा छिल देंगे अबकी चुनाव में। हरा दूँगा $%%### सबको।  i am वोटर $%%###। हम मालिक हैं, you are नौकर बे.. हट्ट किसी से नही डरते। बुलाओ विधायक के। देख लेब ओकरा..हो होय बुरा ने मानो होली है र्रर”
उसके गले से उतरा दारू मेरे लिए वो गंगाजल है जिसे पी के आज लोकतंत्र का सबसे दबा कुचला आदमी शेर की तरह दहाड़ता है। होली का अवसर और उस अवसर पर गरजता ऐसा एक कमजोर आम आदमी मेरी लोकतंत्र में आस्था को बढ़ा देता है। मैं यहीं पानी पी पी के सोंच रहा हूँ कि शायद एक दिन ऐसा आएगा जब आदमी बिना पिये भी इतनी जोर से गरज पायेगा लोकतंत्र में।

मुझे अपने टोले मुहल्ले के वो बुढऊ गांधी बहुत जोर से याद आ रहे जो शाम जान बूझ के दुआर पे सफ़ेद धोती कुरता पहिन बैठ जाएंगे और हर घर आये लोगों के सामने अपना दुनो गोड़ बढ़ा देंगे अबीर रखवाने के लिए। कुछ खचड़े लड़के चरण से विद्रोह कर बूढ़ा बाबा के गाल तक जाएंगे और बाबा बड़ी विनम्रता से कहेंगे “बस बस एक ठो टीका लगा दो ख़ाली, रंग फंग खेलना लौंडों लफाड़ का काम है। और तुम्हारा आईएएस के तैयारी के का हुआ? कब ले के अयिबो भाई लाल बत्ती। अब उहे देख के मरेंगे.. बस रखना याद। जल्दी करो भाई, 8- 10 साल हो गया, बड़ा उम्मीद है तुमसे, गांव में सबके आशा है बस तुम्ही से।”

ये कह वो बूढ़ा इतने अहिंसात्मक तरीके से सामने वाले काबियाट लड़के की हत्या कर चुका होता है कि इस अदा पे दस गांधी कुर्बान करता हूँ।
मुझे अकेले इस कमरे में बैठे माँ याद आ रही जो रंग खेलने जाते लफुआ से दौड़ के पीछे पीछे आ कहती है” कुछ खा के जो, फेर खेलत रहिये रंग फंग.. दिन भर भूखले खंराई मार दिही”
अंत में मुझे याद आ रही मेरी बुढ़िया नानी जिसने एक बार मुझसे कहा था “हरा रंग मत लगहिये, करिया हो जइबे.. ललका लगावल कर”
इतना भर याद आया ही है कि गाल पर लोर ढरक गया है। मैंने उसे दोनों हाथों से गाल पर मल लिया है। ये मेरी नानी का भेजा गया लाल रंग है। ये मुझे गोरा किये रहेगा। कौन कहेगा अब कि मैंने होली नही खेली। हाँ, मैंने रंग खेल लिया। अब नहाने जा रहा हूँ नानी।जय हो।

(नीलोत्पल मृणाल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)