चीन : कूटनीति या घुटनेटेकू नीति

चीन दलाई लामा को धर्मगुरु नहीं मानता, वह उन्हें ‘खतरनाक अलगाववादी’ मानता है। वह उन्हें भेड़ के वेश में भेड़िया कहता है

New Delhi, Mar 03 : भारत अब चीन के आगे घुटने टेक रहा है या कोई बहुत गहरी कूटनीति कर रहा है, यह समझ पाना मुश्किल है। भारत सरकार ने अपने सभी नेताओं और अफसरों को एक निर्देश भेजा है कि वे दलाई लामा के किसी समारोह में भाग न ले। तिब्बत की प्रवासी सरकार दलाई लामा के भारत-आगमन की षष्टि-पूर्ति मनानेवाली है। भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने 22 फरवरी को इस आशय का पत्र केबिनेट सचिव पी के सिंह को भेजा और सिन्हा ने उसे सारे मंत्रियों और अफसरों को भेज दिया।

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गोखले ने यह पत्र अपनी पेइचिंग यात्रा के एक दिन पहले भेजा था। जाहिर है कि प्रधानमंत्री को बताए बिना यह निर्देश जारी नहीं हुआ होगा। चीन दलाई लामा को धर्मगुरु नहीं मानता। वह उन्हें ‘खतरनाक अलगाववादी’ मानता है। वह उन्हें भेड़ के वेश में भेड़िया कहता है। पिछले साल जब दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश गए और उनका स्वागत वहां मुख्यमंत्री पेमा खंडू और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने किया तो चीनी विदेश मंत्री बौखला गया। उन्होंने अपनी भारत-यात्रा स्थगित कर दी, ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ पर दी जानेवाली जानकारी बंद कर दी और भूटान के दोकलाम पर कब्जा कर लिया।

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ब्रिक्स की बैठक में मोदी को बुलाना था, इसलिए चीन ने दोकलाम पर नरमी का नाटक किया। मुठभेड़ खत्म हो गई। जब गोखले पेइचिंग में थे, उसी समय चीन ने आतंक को वित्तीय समर्थन देने के पाकिस्तानी रवैए का विरेाध करके भारत को खुश कर दिया। अब जून में शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए मोदी फिर चीन जानेवाले हैं। हो सकता है कि चीन के साथ भारत की कोई सौदेबाजी हुई हो। भारत दलाई लामा का समर्थन न करे तो चीन पाकिस्तान का नहीं करेगा लेकिन यह सौदा भारत को मंहगा पड़ सकता है, क्योंकि पाकिस्तान तो चीन का पट्ठा है जबकि चीन आजकल भारत के हर पड़ौसी देश में अपना जाल बिछा रहा है।

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भारत ने तिब्बत को China का अंग मान लिया है और दलाई लामा ने भी मान लिया है। ऐसे में भारत को चाहिए कि वह China को समझाए कि वह दलाई लामा से सीधी बात करे। Dalai lamaयदि दलाई लामा से बनाई गई यह दूरी तात्कालिक है और कूटनीतिक पैंतरा है तो कोई बात नहीं है लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो यह मोदी सरकार का दब्बूपन ही माना जाएगा।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)