ग्रंथों ने हमारे समाज को आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आर्थिक समृद्धि का भी मंत्र दिया
विचार योग्य है कि 1000 ईस्वी के आसपास ऐसा क्या हुआ कि 4000 वर्षों से समृद्ध समाज अचानक अधोगामी हो गयी ?
New Delhi, Mar 04 : सन् 1000 में विश्व की कुल आय में भारत का योगदान 28 प्रतिशत था। सन 1600 में 22 प्रतिशत और 1820 में 16 प्रतिशत रहा। 1950 में 3 प्रतिशत और आज करीब 8 प्रतिशत है। बहुत धीेरे -धीरे बढ़ रहा है। ऐसा क्या हुआ कि एक समय हमारा ( समाज का) योगदान 28 प्रतिशत था अब मात्र 7 दशमलव 73 प्रतिशत है ?
इसके बारे में मैं अर्थशास्त्री डा. भरत झुनझुनवाला की कुछ पंक्तियां यहां उधृत कर रहा हूं —
‘यह पतन सन 1000 के बाद शुरू हुआ। इसके पहले करीब 4000 वर्षों तक हम समृद्ध थे।
सिंधु घाटी, महाभारतकालीन इंद्रप्रस्थ, बौद्धकालीन लिच्छवी, मौर्य, विक्रमादित्य, गुप्त, हर्ष और चालुक्य साम्राज्यों ने हमें निरंतर समृद्धि प्रदान की।
इन 4000 वर्षों में हमारे प्रमुख ग्रंथ जैसे वेद, उपनिषद, रामायण और महा भारत की रचना हो चुकी थी। अतः मानना चाहिए कि इन ग्रंथों ने हमारे समाज को आध्यात्मिक उन्नति के साथ- साथ आर्थिक समृद्धि व राजनीतिक वैभव का मंत्र दिया था।
सन 1000 के बाद महमूद गजनी, मुगल एवं ब्रिटिश लोगों ने हम पर धावा बोला और हमें परास्त किया। विचार योग्य है कि 1000 ईस्वी के आसपास ऐसा क्या हुआ कि 4000 वर्षों से समृद्ध समाज अचानक अधोगामी हो गयी ?’ यह तो झुनझुनवाला का सवाल है। अपने लेख में उन्होंने उसका जवाब भी देने की कोशिश की है। पर मैं अपने मित्रों से इस विषय पर कुछ जानना चाहता हूं। जरूरत पड़ेगी तो डा. झुनझुनवाला के जवाबों पर भी बाद में चर्चा हो जाएगी।