भगत सिंह ने लेनिन को पढकर कहा था, ‘एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने दो’

भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए फाँसी को गले लगाने से कुछ ही देर पहले लेनिन की किताब पढ़ रहे थे।

New Delhi, Mar 08 : त्रिपुरा में कुछ उपद्रवियों ने लेनिन की मूर्ति गिरा दी, जिसके बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी कुछ महापुरुषों की मूर्ति तोड़ने की कोशिश की गई, इस घटना के बाद पूरे देश में ये बहस तेज हो गई है, दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहा है। जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया कुमार ने भी इस मामले पर फेसबुक पर कुछ लिखा है, आइये आपको बताते हैं कि छात्रनेता ने क्या लिखा है।

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कुछ लोग कह रहे हैं कि लेनिन विदेशी थे इसलिए भारत में उनकी मूर्ति का क्या औचित्य है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए फाँसी को गले लगाने से कुछ ही देर पहले लेनिन की किताब पढ़ रहे थे। उन्होंने कहा था, “एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने दो।”
क्या विदेशियों को दूर रखने वाले तर्क से हमें अपने देश में विदेशी वैज्ञानिकों के आविष्कारों को जला देना होगा या प्रगतिशील विदेशी विचारकों के विचारों को बर्बरता की टोकरी में फेंक देना होगा? leninकल वे कहेंगे कि भारत में सेब गिरेगा तो नीचे नहीं जाएगा क्योंकि इसका वैज्ञानिक आधार बताने वाला न्यूटन भारत में नहीं जन्मा था।

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संसद भवन और राष्ट्रपति भवन भी विदेशी इंंजीनियर ने बनाया, तो क्या उन्हें भी गिरा देना चाहिए? विज्ञान और विचार देश की सीमा से परे होते हैं। leninवे राष्ट्रवाद के जिस ब्रांड को कॉपी-पेस्ट कर रहे हैं, वह भी हिटलर और मुसोलिनी का है।

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आरएसएस जो ड्रेस पहनता है, वह भी विदेशी है। न्यूटन और डार्विन भी नागपुर में नहीं पैदा हुए थे। lenin Tripuraउन्हें मूर्तियाँ गिराने दीजिए, आप मूर्ति वाले व्यक्ति की विचारधारा को जीवन में मूर्त रूप देने की कोशिश कीजिए।

(छात्रनेता कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)