त्रिपुरा में मार्क्सवाद हारा नहीं है, अवसरवादियों का गठजोड़ जीता है

त्रिपुरा : ऐसी कौन सी बात है कि बीजेपी वहाँ लेफ़्ट और कांग्रेस के गढ़ में घुसकर जीतती है और जहाँ जीत नहीं पाती है, वहाँ विधायक ख़रीद कर सरकार बना लेती है।

New Delhi, Mar 10 : त्रिपुरा के चुनाव में न मार्क्सवाद हारा है और न ही संघियों की विचारधारा की जीत हुई है। इसमें जीत हुई है उन अवसरवादियों के गठजोड़ की जो लेफ़्ट, राइट और सेंटर, यानी हर तरह की पार्टी में पाए जाते हैं। ये वो धनकुबेर हैं जो किसी भी नैतिकता को ताक पर रखकर धन जमा करते हैं और जो लोग इनकी तरह होना चाहते हैं, उनको अपने कुनबे में शामिल करके एक अवसरवादी गिरोह का निर्माण करते हैं।

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त्रिपुरा की जनता को जीत की बधाई के साथ कहना चाहता हूँ कि बीजेपी ने अपनी वास्तविक विचारधारा की बुनियाद पर चुनाव लड़ा ही नहीं। बीजेपी ने इस बार गाय, गोबर, मंदिर, हिंदू और सबसे बड़ी बात, राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को चुनाव का मुद्दा नहीं बनाया। ईसाई तुष्टीकरण और मुस्लिम तुष्टीकरण भी मुद्दा नहीं था। बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी नारा था ‘चलो पलटाई’, यानी अबकी बार कुछ भी हो जाए, लेकिन सरकार तो बीजेपी की ही बनेगी। इस लाइन पर संघ ऐंड कंपनी ने भरपूर मेहनत की और वे सभी तरह के अवसरवादियों को इकट्ठा करके जीत गए। जहाँ सीधे चुनाव नहीं जीत पाए, वहाँ चुनाव के बाद ख़रीद-फ़रोख़्त करके सरकार बना रहे हैं।

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सवाल यह है कि नॉर्थ-ईस्ट में चुनाव जीतना बीजेपी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है। पहली बात तो यह कि बीजेपी अपनी इस छवि को बदलना चाहती है कि वह उत्तर भारत या काऊ बेल्ट की पार्टी है। वह हिंदुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों को भी अपने दायरे में लाना चाहती है। मतबल संख्या की दृष्टि से नॉर्थ-ईस्ट का चुनावी महत्व भले ही ज़्यादा न हो लेकिन नेशनल पार्टी के परसेप्शन के लिए इस क्षेत्र पर कब्ज़ा ज़रूरी है। दूसरा, यह इलाका वर्षों से अशांत रहा है। इसका फ़ायदा कभी भी तथाकथित मेनलैंड के लोगों को नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के ख़िलाफ़ एकजुट करके उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कश्मीर का नाम सुनते ही बहुत से लोग अपनी रोजी-रोटी का सवाल भूल जाते हैं। तीसरा, यह इलाका संसाधनों से भरपूर है। अशांति को जान- बूझकर कायम रखा गया है ताकि शांति-सुरक्षा के नाम पर भरपूर घपला किया जा सके और अबाध गति के साथ यहाँ के संसाधनों को लूटा जा सके। ध्यान देने वाली बात है कि त्रिपुरा नॉर्थ-ईस्ट का एकमात्र राज्य है जहाँ आफ़्सपा नहीं था। कई वर्षों से वहां शांतिपूर्ण माहौल है। कई आतंकवादी और अलगाववादी संगठनों ने मुख्यधारा को अपना लिया था। उन्हीं में से एक आईटीपीएफ़ के साथ बीजेपी ने अलायंस किया। कुल मिलाकर, नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी के जीतने पर उसके दोनों हाथों में लडडू है। वहाँ सरकार में शामिल इन अलगाववादी लोगों के समर्थन से अशांति होगी तो मेनलैंड इंडिया में देश की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने के नाम पर बीजेपी की राजनीति चालू रहेगी। मतलब गड़बड़ी भी फैलाएगी बीजेपी और रोकेगी भी बीजेपी। जब ज़रूरत होगी तब आदिवासी, हिंदू और ईसाई को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर देगी।

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यदि नॉर्थ-ईस्ट के चुनाव का निष्पक्ष विश्लेषण किया जाए तो सवाल लेफ़्ट पर भी उठता है। ऐसी कौन सी बात है कि बीजेपी वहाँ लेफ़्ट और कांग्रेस के गढ़ में घुसकर जीतती है और जहाँ जीत नहीं पाती है, वहाँ विधायक ख़रीद कर सरकार बना लेती है या ईवीएमहैक कर लेती है और हम चुपचाप देखते रह जाते हैं। इसका मतलब साफ़ है कि हमारी नाक के नीचे अवसरवादी फलते-फूलते रहते हैं और हम वैचारिक मुकाबले की ज़रूरत तक नहीं समझते। विचारधारा में सेंध लगाकर अवसरवादी पनपते रहते हैं और अवसर मिलने पर एकजुट होकर लोकतंत्र का गला घोंट देते हैं।

आज का युवा ख़ुद के लिए अवसर तलाश रहा है और ये अवसरवादी सत्ताधारी लोग युवा शक्ति को गुमराह कर रहे हैं। यदि देश और लोकतंत्र को आगे बढ़ाना है तो त्रिपुरा पर आँसू बहाने के बजाय जनता के आँसू पोंछने का काम करना ज़रूरी है। हम भले ही आरएसएस को गंभीरता से न लें पर वह अपने विरोधियों से आगे रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठा है। चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद त्रिपुरा में अब तक 250 से अधिक ऑफ़िसों को जलाया जा चुका है। हर जगह लेनिन, पेरियार, बाबा साहेब, महात्मा गांधी और अन्य महामानवों की मूर्तियाँ तोड़ी जा रही है ताकि मनुवाद और गैरबराबरी के खिलाफ लड़ रहे लोगों का हौसला तोड़ा जा सके। हत्याओं और हमलों का यह सिलसिला अभी जारी रहेगा। यदि हम इसे रोकना चाहते हैं तो देश को तोड़ने वाली ताकतों के ख़िलाफ़ हम सबको अपनी-अपनी जगह पर अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होगी।
यह लड़ाई सिर्फ़ चुनाव की नहीं है, यह संविधान और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है। इस लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए तमाम प्रगतिशील लोगों को एकजुट होकर लड़ना होगा। मूर्ति टूटने पर दुखी होने के बजाय जिनकी मूर्ति तोड़ी गई है, उनके विचारों से लोगों को जोड़ना होगा। तभी समाज से असमानता और अन्नयाय को मिटाया जा सकता है।

(छात्रनेता कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)