बीजेपी कल आज़म खान को भी शामिल कर ले तो हैरान मत होइएगा !

अगर बीजेपी कल को आज़म खान को भी शामिल कर ले तो हैरान मत होइएगा। आज़म के दाहिने हाथ वसीम रिज़वी पहले ही बीजेपी के केसरिया तिलक को माथे लगाकर पवित्र हो चुके हैं।

New Delhi, Mar 14 : जो लोग नरेश अग्रवाल के बीजेपी में शामिल होने से बौखलाए हैं, उनके लिए ख़बर है। भाजपा में शिवपाल यादव को लेने की कहानी काफी आगे बढ़ चुकी है। मामला रुका सिर्फ इसलिए है कि शिवपाल को कोई जल्दी नही है। वे अभी तेल और तेल की धार देख रहे हैं। वही शिवपाल जिन्हें जी भरकर गरिया कर और corrupt बताकर बीजेपी ने चुनावी बिगुल फूंका था।

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स्वामी प्रसाद मौर्या से लेकर मुकुल रॉय और सुखराम से लेकर नारायण राणे तक BJP के ही घोषित सारे के सारे भ्रष्ट अचानक ही रातों रात पवित्र हो गए। उन्होंने बस BJP को छू भर लिया। सारे पाप धुल गए। अगर BJP कल को आज़म खान को भी शामिल कर ले तो हैरान मत होइएगा। आज़म के दाहिने हाथ वसीम रिज़वी पहले ही बीजेपी के केसरिया तिलक को माथे लगाकर पवित्र हो चुके हैं। वसीम रिज़वी शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन हैं। वे और आज़म दोनो ही वक़्फ़ घोटाले को लेकर सीबीआई जांच के दायरे में हैं। इस जांच की सिफारिश योगी सरकार ने ही की है।

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मगर जांच घोषित होते ही वसीम रिज़वी राम भक्त हो गए। रामलला के हो गए। अब वो मदरसों को आतंकवाद की फैक्ट्री और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को आतंकी संगठन बता रहे हैं। naresh agarwal bjpबीजेपी को ये suit करता है। सो उनको अभयदान मिल गया है। वे अब बीजेपी के हैं। बीजेपी उनकी है।

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भक्त BJP अध्यक्ष को चाणक्य बता रहे हैं। तर्क दे रहे हैं कि चाणक्य ने कहीं 2 सीटों से सरकार बना ली तो कहीं नरेश अग्रवाल को पार्टी में शामिल कर बीजेपी के हिस्से राज्यसभा चुनावो में एक और वोट जोड़ दिया। नरेश अग्रवाल के बेटे का वोट। गुरू गया तो एक रोज़ मौर्य वंश भी। चाणक्य का ही सींचा हुआ मौर्य वंश। वो भी अपनो के ही हाथों। मौर्य वंश का अंतिम सम्राट वृहद्रथ अपने ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग के हाथों मारा गया। कोई बाहरी नही आया था। जाना सभी को है। राजीव गांधी के ज़माने में 415 सीटें हासिल कर रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस भी एक रोज़ चली ही गई और महज 2 सीटों से सरकार बनाकर 21वें राज्य में सत्ता का परचम लहराने वाली बीजेपी भी एक रोज़ निपटेगी ही। ये तो प्रकृति का नियम है। पर इतिहास याद क्या रखेगा? सत्ता की जोड़तोड़ के लिए कुछ भी कर गुजरने की सनक! या फिर सत्ता के अहंकार की नदी में सिद्धांतों के अंतहीन अस्थि-विसर्जन की दास्तां!! या फिर दोनों!!!

(टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)