अखिलेश यादव : इतनी साफगोई और सहजता नई पीढी के कितने नेताओं में होती है ?

अखिलेश यादव में थोड़ी-बहुत मासूमियत शायद अब भी बची हुई है। लेकिन राजनेता के तौर पर वक्त के साथ वे बहुत मंजे हैं।

New Delhi, Mar 15 : फूलपुर और गोरखपुर के नतीज़ों से ठीक दो दिन पहले की बात है। किसी रिपोर्टर ने अखिलेश यादव से संभावित नतीजों के बारे में पूछा। अखिलेश यादव ने जवाब दिया- जब तक अंतिम परिणाम ना आ जाये कुछ भी कहना संभव नहीं है।
पिछली बार हमने अपने बेहतर काम के आधार पर वोट मांगा था और बुरी तरह हार गये थे। विश्लेषण करने वालों ने कहा कि बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग हमसे बहुत बेहतर थी। इस बार हमने नई सोशल इंजीनियरिंग की है। बदलते वक्त के साथ राजनीति बदलती है, हम भी बदले हैं, अब देखते हैं, क्या परिणाम निकलता है।

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इतनी साफगोई और सहजता नई पीढ़ी कितने नेताओं में होती है? एक पत्रकार के तौर पर मैने अखिलेश यादव को पहली 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान देखा था। akhilesh yadavमैं नया टीवी का पत्रकार था और वे नये नेता थे। बाल सुलभ उत्सुकता के साथ टीवी कैमरे के सामने दोस्तो को बटोरकर फोटो खिंचवा रहे थे।

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थोड़ी-बहुत मासूमियत शायद अब भी बची हुई है। लेकिन राजनेता के तौर पर वक्त के साथ वे बहुत मंजे हैं। 2012 के चुनाव में आस्तीन समेटकर ललकार रहे राहुल गांधी के कैंपेन का जवाब अखिलेश ने शांत भाव से दिया और जीते। akhilesh yadav2017 में करारी के बावजूद बिना किसी शिकन के प्रेस कांफ्रेंस में आये और अब 2018 में विपक्ष की राजनीति को नया जीवन देने वाले नतीजों के बाद भी उसी तरह संयंत दिखे।

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गोरखपुर और फूलपुर के नतीजों का सियासी असर अपनी जगह लेकिन मुंहफट राजनीति के दौर में अखिलेश जैसे युवा नेताओं की उपस्थिति यह भरोसा ज़रूर जगाती है कि Akhilesh Yadavसार्वजनिक जीवन में गिरती मर्यादा को थामने वाले लोग भी हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)