जातिय या धार्मिक दंगों की जड़ें ऐसे ही राजनीति के मंचों से पोषित होती है

राजनीति के बदले मिज़ाज में कांग्रेस के युवा सम्राट राहुल गांधी ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में यह घोषणा की कि “मोदी” शब्द भ्रष्ट का पर्याय बन गया है।

New Delhi, Mar 20 : I M KHAN BUT NOT A TERRORIST ! इस डायलॉग से अब खान हटाकर आप अपने अपने टाइटल को यूज़ करने के लिये तैयार हो जाईये, क्या पता कब कौन आपको आपके टाइटल के जरिये किस अपराध का जिम्मेवार घोषित कर दे! किस पल आप आतंकी, भ्रष्ट, हत्यारे, हमलावर, चोर, उचक्के या फिर बलात्कारी घोषित कर दिया जाए !
राजनीति के बदले मिज़ाज में कांग्रेस के युवा सम्राट राहुल गांधी ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में यह घोषणा की कि “मोदी” शब्द भ्रष्ट का पर्याय बन गया है तो जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोर्चा संभालते हुए कहा कि “गांधी” जोड़ लेने से कोई महात्मा नहीं हो जाता, सबको मालूम है कि आप बेल पर बाहर हैं!

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देश के राजनीतिक नेतृत्व की दो धुरियों से जो विमर्श उभरा है उसके व्यापक मायने अगर निकाले जाएं तो फिर अपनी सत्ता लोलुपता और प्रतिद्वंदिता में राहुल और निर्मला का आरोप प्रत्यारोप मोदी बनाम गांधी है,Rahul Gandhi1 लेकिन इन दो प्रतिस्पर्धी विचारधाराओ के वाहकों के लिये या फिर आमजन के लिए तो एक जाति और व्यक्ति सूचक टाइटल के अपराधी होने से उस जात या धर्म के हर व्यक्ति को उसी खाँचे में फिट कर दिया जाए।

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यानी अगर कोई कुमार टाइटल का व्यक्ति आतंकी हो तो कोई मेरा प्रतिद्वंदी मुझे भी आतंकी के कटघरे में खड़ा कर दे, Rahul Gandhi2कोई यादव अगर चारा घोटाला में बंद हो तो क्या समूचे यादव सूचक लोग भ्रष्ट हो जाएंगे, अगर कोई सिंह बलात्कारी हो तो क्या सभी सिंह टाइटल धारक बलात्कारी कहे जा सकते है.
इस सोच के विभत्स रूप या परिणाम का अंदाजा आप दो दंगो से लगा सकते है- 1.गुजरात दंगा और दूसरा 2. सिख दंगा.

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गोधरा कांड को अंजाम देने वाले अपराधियो के नृशंष अपराध का बदला दंगाईयो ने नृदोष मुसलमानों से लिया और दंगे की आग में मासूम, महिला, बुजुर्ग, युवा कोई भी नही बचा। यही हालत सिख दंगे में दिल्ली की हुई। इंदिरा गांधी का हत्यारा सिख था लेकिन दंगाईयो ने समूचे सिख समाज का रक्त सड़कों पर बहाया।
व्यक्तिगत अपराध या फिर संगठित अपराध की सजा सम्पूर्ण समाज को देने की परिणीति ही जातीय या फिर धार्मिक दंगे होते है और इसकी जड़ें राजनीति के ऐसे ही मंचो से पोषित होती है जब किसी एक के करनी का हिसाब उसकी जाति या धर्म से मांगा जाता है।

(टीवी पत्रकार मधुरेंद्र कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)