‘उच्च शिक्षा तहस-नहस अभियान’ को नहीं रोका गया तो शिक्षण संस्थान सेठों की दुकान बन जाएगी
जब JNU और BHU जैसे संस्थानों के शिक्षक छात्र बोलने की हिम्मत नही करते तब निजी संस्थानों के छात्र और शिक्षक किस भरोसे बोलेंगे?
New Delhi, Mar 22 : ६० चुनिन्दा विश्व विद्यालयों को स्वायत्तता देने का फैसला अचानक आसमान से टपका फैसला नहीं है. ये शिक्षा को बर्बाद करने, उसे व्यापार बनाने, भ्रष्ट करने के उसी अभियान का एक और चरण है जिसकी शुरुआत प्रजातंत्र के क्रमशः अपहरण के साथ कई दशक पहले शुरू हुई थी. कालेजों में शिक्षक जमाने से नहीं हैं लेकिन जो बोल सक्ते थे, वे सब मुंह सिये बैठे हैं.
जनता की रूचि बच्चों को पढ़ाने में नहीं, उन्हें चोरी से पास कराने और प्रमाणपत्र भर दिलाने भर में है. समर्थ नागरिकों के स्वार्थ जब सामूहिक हित से भारी हो जाते हैं और आम जनता अपनी मूर्खता में बड़े फैसलों के प्रति भी उदासीन रहे, तो और क्या उम्मीद करेंगे आप? चौंतीस बरस पहले मैं भी आरा के एक निजी कालेज में अंग्रेजी का लेक्चरर नियुक्त हुआ. वहां सात साल से मुफ्त काम कर रहे लोगों का यकीन था कि वह कालेज शीघ्र सरकार के अधीन हो जाएगा और फिर उसके सभी कर्मी जो अभी जवानी कुर्बान कर रहे हैं, वे बैठे बिठाए सरकारी हो जाएँगे. 1984 से 2018 आ गया. उस कालेज के स्टाफ की जवानी ही नहीं, जिन्दगी बर्बाद हुई.
साथ ही उनके परिवार और लाखों छात्रों की भी. देश भर में ऐसे कालेजों की भरमार है. जिस बीएचयू को अभी स्वायत्तता दी गई वहीँ छेड़खानी के खिलाफ वीसी से शिकायत करने गई छात्राओं पे लाठी चार्ज हुआ, बनारस के क्रान्ति वीर सड़कों पर नहीं उतरे. उसी बीएचयू के अधीन चार निजी कालेज हैं. उनका वेतन तो यूजीसी देती है लेकिन प्रबंधन निजी है. क्यों भला ? ताकि सवर्ण कब्ज़ा बना रहे, भ्रष्ट आमदनी बनी रहे और कर्मियों का शोषण जारी रहे. क्या यूजीसी ये मान चुकी है वह कि निजी और स्वायत्त प्रबंधन की काबिलियत की बराबरी नहीं कर सकती? एक मामला है देश भर के कालेजों की गुणवत्ता जांच करने का. इसे नैक कहते हैं. ये शैक्षिक संस्थानों की जांच कर उन्हें प्रमाणपत्र जारी करती है. जब इसकी टीम आती है तो कालेजों में रंगाई पुताई पढ़ाई सब होने लगती है, बस दो चार दिन. फिर टीम को हर तरह से प्रसन्न कर प्रिंसिपल और प्रबंधन प्रमाणपत्र हथिया लेते हैं. उस आधार पर संस्थान को ग्रांट मिलता है और फिर उसकी लूट खसोट होती है.
जब jnu और bhu जैसे संस्थानों के शिक्षक छात्र बोलने की हिम्मत नही करते तब निजी संस्थानों के छात्र और शिक्षक किस भरोसे बोलेंगे? आज गृह मंत्रालय के अनुसार BSF के भोजन आपूर्ति में गड़बड़ी पाई गई और गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई की गई. क्या की गई, ये नहीं बताया और ये भी नहीं बताया न किसी ने पूछा कि BSF के जिस जवान तेज बहादुर यादव को खाने की शिकायत वाइरल करने पर बर्खास्त कर दिया गया था अब उसकी शिकायत वाजिब पाए जाने पर उसे फिर से बहाल क्यों नहीं किया जाना चाहिए? लेकिन हमारे देश के नागरिकों को इस सवाल से मतलब नहीं. जब नागरिकों की सामूहिक चेतना स्वार्थ के मोतियाबिंद से इतनी ग्रस्त हो तो भला उन्हें क्या दिखेगा?