RSS के सपने का भारत असल में गुलाम भारत है- Kanhaiya Kumar

आरएसएस के सपनों का भारत असल में एक ग़ुलाम भारत है जिसमें सिर्फ़ धनपशुओं, धर्म के ठेकेदारों, दंगाइयों, बलात्कारियों आदि को आज़ादी मिलती है।

New Delhi, Mar 24 : आज 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का शहादत दिवस मनाते समय हमें यह याद रखना चाहिए कि वे जिन बुराइयों के ख़िलाफ़ ज़िंदगी भर लड़ते रहे, आज उन्हीं बुराइयों को समाज में फैलाने के काम में लगे लोग सरकार चला रहे हैं। नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी, मेहुल चोकसे जैसे लोगों को जनता की गाढ़ी मेहनत की कमाई लूटकर विदेश भाग जाने की छूट मिली हुई है और संतोषी को आधार कार्ड नहीं होने के कारण ‘भात-भात’ कहते हुए भूख से मरना पड़ता है। हालिया दशकों में तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। करोड़ों युवा बेरोज़गार हैं।

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जिस देश में मात्र 4.5% आबादी ग्रैजुएशन या इससे आगे की पढ़ाई तक पहुँच पाती है, उसमें ऑटोनोमी की तलवार चलाकर शिक्षा को सरकारी फ़ंडिंग से दूर करके उसे अमीरों तक सीमित किया जा रहा है। न शिक्षा रहेगी न सवाल उठेंगे। हेफ़ा (हायर एजुकेशन फ़ंडिंग एजेंसी) जैसी साज़िश शिक्षा को अधिकार न रहने देकर बाज़ार का माल बना रही है। सरकारी संस्थान भी लोन लेंगे और कभी फ़ीस बढ़ाकर तो कभी शिक्षकों का वेतन घटाकर वापस करेंगे। मतलब जो आपका अधिकार है उसे बाज़ार में कीमत देकर ख़रीदने पर मजबूर किया जा रहा है।

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जब संसद में ऑटोनोमी वाला कानून नहीं बन पाया तो यूजीसी के कंधे पर बंदूक रखकर नियम बना दिया गया। वंचित तबकों ने कैंपसों में आना शुरू ही किया था कि आरक्षण को ख़त्म कर दिया गया। जेएनयू की एडमिशन पॉलिसी बदल दी गई जिसके कारण लिखित परीक्षा में आरक्षण लागू ही नहीं हुआ।
सामाजिक न्याय की हत्या के साथ-साथ जेंडर समानता के सिद्धांत पर भी लगातार हमले हो रहे हैं। यौन उत्पीड़न के मामले में आठ एफ़आईआर होने के बावजूद संघी प्रोफ़ेसर को एक घंटे में बेल मिल जाती है और बीएचयू में लाइब्रेरी को 24 घंटे खुला रखने की माँग करने वाले विद्यार्थियों को पकड़ने के लिए एक दर्जन से ज़्यादा थानों की पुलिस भेज दी जाती है।

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आरएसएस के सपनों का भारत असल में एक ग़ुलाम भारत है जिसमें सिर्फ़ धनपशुओं, धर्म के ठेकेदारों, दंगाइयों, बलात्कारियों आदि को आज़ादी मिलती है। लेकिन दमन है तो संघर्ष भी है। युवा सड़कों पर बार-बार निकल रहे हैं। जैसा कि आप इन नई-पुरानी तस्वीरों में देख सकते हैं, जेएनयू, डीयू जैसे विश्वविद्यालयो के शिक्षक शिक्षा को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। किसान आवाज़ उठा रहे हैं। लड़कियाँ कैंपसों में आज़ादी के नारे लगाकर हॉस्टलों को जेल बनाने की साज़िश का विरोध कर रही हैं। उन सबकी आवाज़ भगत सिंह की आवाज़ है। आइए, इस आवाज़ में हम अपनी आवाज़ मिलाएँ।