‘जिन बहस में गोडसेवादी बैठें वहां से कम से कम बच्चों को हटा लें’

बहस इस बात पर होगी ही कि क्या कुछ किताबों को तब तक प्रतिबंधित नहीं कर देना चाहिए जब तक कि समाज इतना परिपक्व नहीं हो जाता कि उनमें दी गई दलीलों से प्रेरित होकर हत्या नहीं करता?

New Delhi, Mar 26 : नाथूराम गोड़से के विचारों को डिफेंड करने वाले व्यक्ति में किसी की हत्या करने का पूरा पोटेंशियल है. ऐसे हर व्यक्ति पर कड़ी निगरानी रखने की ज़रूरत है. अब तो ऐसे कई लोग टीवी न्यूज़ चैनल्स पर बहस करने भी आते हैं. प्रशासन को उनकी पहचान करने में सुविधा रहेगी. विचार अलग होना कोई बुरी बात नहीं है. इसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए. इस एक बात के आधार पर मैं नाथूराम की किताब बिकने का लंबे समय तक समर्थक रहा हूं.

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मैंने खुद वो किताब खरीदी और पढ़ी है. लेखक को पाठक होने के नाते खत भी लिखा है, लेकिन इस नाजुक दौर में संभावित हत्यारे अगर उस किताब को हत्याओं के लिए तर्क के तौर पर इस्तेमाल करें तो बहस होना लाज़िमी है. बहस इस बात पर होगी ही कि क्या कुछ किताबों को तब तक प्रतिबंधित नहीं कर देना चाहिए जब तक कि समाज इतना परिपक्व नहीं हो जाता कि उनमें दी गई दलीलों से प्रेरित होकर हत्या नहीं करता? किताब को तर्क के लिए इस्तेमाल करना बहस की परंपरा को समृद्ध बनाता है मगर बहस से आगे बात हत्याओं के आह्वान तक चली जाए तो लोगों की जान को खतरे में नहीं डाला जा सकता.

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अगर ये परोक्ष आह्वान टीवी के मंच से होने लगा है तो ज़िम्मेदारी टीवी पर ऐसे आह्वानकर्ताओं को बुलाने वालों की भी बनती है और साथ ही पुलिस की भी.. कि वो ऐसे तत्वों को टीवी कार्यक्रम के बीच से ही गिरफ्तार कर लें. आपको सुनने में ये कठोर लग सकता है पर घटना होने से पहले रोकथाम होनी चाहिए. अलग विचार के नाम पर देश के नागरिकों की हत्या के छिपे आह्वान को बर्दाश्त करना कतई गलत है. लोगों के बीच में लगातार झूठ बेचे जाने के बाद अब बेशर्मी से मंचों पर गांधी के हत्यारे को सम्मान दिलाने की कोशिश करती राजनीति पर शर्मिंदा होना चाहिए.

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टीवी डिबेट में ज़ुबानी जमाखर्च के लिए बुलाए गए हिंसक प्रवृत्ति के आह्वानकर्ताओं से अपने बच्चों को बचाइए. एक निश्चित उम्र तक के बच्चों को आप कड़े जतन के साथ हिंसक और नग्नतापूर्ण फिल्में दिखाने से बचाते हैं. प्रयास कीजिए कि जिस बहस में गोड़सेवादी बैठें वहां से कम से कम बच्चों को हटा लें. आप जिसे बहुत सुविधाजनक ढंग से सुन रहे हैं वो वैसी ही खूनी क्लास है जैसी सरहद पार हाफिज़ सईद अपने रंगरूटों को देता होगा. आप अगली पीढ़ी और खुद को आतंकवादी और कम से कम मानसिक आतंकवादी तो नहीं ही बनाना चाहते होंगे. आगे आपकी मर्ज़ी है.

(टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)